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सिखों के पहले शहीद गुरू थे श्री गुरु अर्जुन देव

  • योगेश कुमार गोयल
    श्री गुरु अर्जुन देव सिख धर्म के पहले शहीद थे और उनके बलिदान को सिख धर्म में सबसे महान माना जाता है। उनका शहीदी पर्व सिख कैलेंडर में तीसरे महीने ज्येष्ठ के 24वें दिन मनाया जाता है, जो पश्चिमी कैलेंडर में प्रतिवर्ष मई अथवा जून के महीने में होता है। इस वर्ष यह 23 मई को है। गुरु अर्जुन देव सिख धर्म के पहले शहीद थे, जिनकी शहादत को स्मरण करने और उन्हें सम्मानित करने के लिए यह दिन चिह्नित किया गया। सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी को धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक के रूप में स्मरण किया जाता है। उनके पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे तथा नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे और गुरु अर्जुन देव के पुत्र हरगोविंद सिंह सिखों के छठे गुरु बने। अमृतसर के गोइंदवाल साहिब में जन्मे गुरु अर्जुन देव के मन में सभी धर्मों के प्रति अथाह सम्मान था, जो दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते थे। अर्जुन देव को 18 वर्ष की आयु में वर्ष 1581 में पिता गुरु रामदास जी द्वारा सिखों का पांचवां गुरु नियुक्त किया गया था।
    शांत व गंभीर स्वभाव के स्वामी तथा धर्म के रक्षक गुरु अर्जुन देव जी को अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक का दर्जा प्राप्त है, जिनमें निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्त्तव्य निष्ठता, धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भावना जैसे गुण कूट-कूटकर समाये थे। उन्हें उनकी विनम्रता के लिए भी स्मरण किया जाता है। दरअसल उनके बारे में कहा जाता है कि अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने कभी किसी को कोई दुर्वचन नहीं कहे। आध्यात्मिक जगत में सर्वोच्च स्थान प्राप्त गुरु अर्जुन देव को शहीदों के सरताज और शांतिपुंज के अलावा ब्रह्मज्ञानी माना जाता है। वह आध्यात्मिक चिंतक और उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक भी थे, जो सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी डटकर खड़े रहे तथा अपने 43 वर्षों के जीवनकाल में उन्होंने जीवन पर्यन्त धर्म के नाम पर आडम्बरों तथा अंधविश्वासों पर कड़ा प्रहार किया।
    प्रतिदिन प्रातःकाल लाखों लोग शांति हासिल करने के लिए ‘सुखमनी साहिब’ का पाठ करते हैं, जो गुरु अर्जुनदेव जी की अमर-वाणी है, जिसमें 24 अष्टपदी हैं। सुखमनी अर्थात् सुखों की मणि यानी मन को सुख देने वाली वाणी, जो मानसिक तनाव की अवस्था का शुद्धिकरण भी करती है।
    यह सूत्रात्मक शैली की राग गाउडी में रची गई उत्कृष्ट रचना मानी जाती है, जिसमें साधना, नाम-सुमिरन तथा उसके प्रभावों, सेवा, त्याग, मानसिक सुख-दुख तथा मुक्ति की उन अवस्थाओं का उल्लेख है, जिनकी प्राप्ति कर मानव अपार सुखों की प्राप्ति कर सकता है। सभी गुरूओं की बानी के अलावा अन्य धर्मों के प्रमुख संतों के भजनों को भी संकलित कर गुरु अर्जुन देव ने ही एक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ बनाया, जो मानव जाति को सबसे बड़ी देन मानी गई है। सम्पूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कुल 36 महान संतों और गुरूओं की वाणियों का संकलन किया गया। इसमें कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें से कुल 30 रागों में 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी के ही हैं जबकि अन्य शब्द महान् संत कबीर, संत रविदास, संत नामदेव, संत रामानंद, बाबा फरीद, भाई मरदाना, भक्त धन्ना, भक्त पीपा, भक्त सैन, भक्त भीखन, भक्त परमांनद, बाबा सुंदर इत्यादि के हैं। गुरु ग्रंथ साहिब जी का सम्पादन गुरु अर्जुनदेव ने भाई गुरदास की सहायता से किया था।

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