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उज्जैन के मोहन का हुआ मध्यप्रदेश


भोपाल. मध्यप्रदेश में भी भाजपा नेतृत्व ने चौंकाया। मुख्यमंत्री पद की चर्चाओं में चमकते चेहरों के बीच राज्य के 33 वें मुख्यमंत्री के रूप में उज्जैन के डॉ. मोहन यादव को चुना गया जो दौड़ में नहीं दिख रहे थे। उन्हें आज राजधानी में तीन पर्यवेक्षकों की उपस्थिति में भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया। वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का स्थान लेंगे जो 18 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे। पहली बार राज्य में दो उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा बनाए गए हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव है। 
58 वर्षीय डॉ. मोहन यादव शिवराज सिंह की निवृत्त सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री थे। वह उज्जैन दक्षिण से विधायक हैं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े रहे हैं। उनका चुनाव करने के लिए पार्टी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, के. लक्ष्मण व आशा लाकड़ा को नियुक्त किया था जिन्होंने आज शाम चार बजे विधायकों की राय के बाद डॉ. यादव का नाम तय किया। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंपा जिसे स्वीकृत कर लिया गया।
शिवराज के पैर छुए
शिवराज के लिए भावुक करने वाला पल उपस्थित हुआ। नए मुख्यमंत्री यादव ने मंच पर ही उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
तीन बार विधायक हैं, संघ की भी पसंद
प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बीच पिछले 8 दिनों में करीब 10 बार अलग-अलग बैठकों के दौर चले। बैठकों के मंथन से डॉ. मोहन यादव निकलकर आए। सोमवार को चले गहमागहमी भरे घटनाक्रम में भाजपा की ओर से यह चौंकाने वाला फैसला सामने आया। जिसमे तय हुआ कि डॉ. मोहन यादव को मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। वह 2013 में पहली बार उज्जैन दक्षिण सीट से विधायक बने। इसके बाद 2018 में दूसरी बार और 2023 में तीसरी बार विधायक चुने गए। 2 जुलाई 2020 को उन्होंने श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्यप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली।
अभाविप से राजनीति की शुरुआत
डॉ. यादव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संग के पदाधिकारी रहे। उन्होंने राजनीति का कखग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से सीखा। वह सबसे पहले वर्ष 1982 में माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव एवं 1984 में अध्‍यक्ष चुने गए थे। वह 1984 मेंअखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद उज्‍जैन के नगर मंत्री एवं 1986 में विभाग प्रमुख बने। श्री यादव साल 1988 में अभाविप मध्‍यप्रदेश के सहमंत्री एवं राष्‍ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्‍य बने। 1989-90 में परिषद की प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री तथा सन 1991-92 में राष्‍ट्रीय मंत्री बने। श्री यादव 1993-95 तक राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ, उज्‍जैन नगर के पदाधिकारी रहे।

फोटो सेशन में पीछे की पंक्ति में थे...
मुख्यमंत्री की दौड़ में निवृत्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और वीडी शर्मा के नाम शामिल थे। इस दौड़ में मोहन यादव का नाम तक शामिल नहीं था। इतना ही नहीं, विधायक दल की बैठक से पहले हुए फोटो सेशन में भी मोहन यादव पीछे वाली पंक्ति में बैठे थे। 
भाजपा का दो तिहाई बहुमत
प्रदेश में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। उसको 163 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि कमलनाथ के चेहरे पर लड़ रही कांग्रेस महज 66 सीटों पर सिमट गई।

छोटा सा कार्यकर्ता....
मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होते ही डॉ. मोहन यादव ने भाजपा केंद्रीय नेतृत्व और विधायकों का आभार जताया है। उन्होंने कहा कि मैं पार्टी का एक छोटा सा कार्यकर्ता हूं। प्यार और सहयोग के लिए पार्टी की राज्य के नेतृत्व और केंद्रीय नेतृत्व का बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाऊंगा।

उज्जैन से दूसरे मुख्यमंत्री
डॉ. मोहन यादव उज्जैन शहर से चुने जाने वाले दूसरे मुख्यमंत्री होंगे। इसके पूर्व कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी 1972 से 1975 तक मुख्यमंत्री रहे। 
मालवा से सातवें मुख्यमंत्री 
डॉ. यादव मालवा अंचल से चुने जाने वाले सातवें मुख्यमंत्री हैं। इसके पूर्व इस इलाके से भगवंत राव मंडलोई, कैलाश नाथ काटजू, प्रकाश चंद्र सेठी, कैलाश जोशी, वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री रहे।

उप मुख्यमंत्री पांचवी बार
मप्र में उपमुख्यमंत्री का पद पांचवी बार सृजित किया जा रहा है। भाजपा (पूर्व जनसंघ) की ओर से दूसरी बार उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति की गई है। यह संयोग है कि राज्य में पहली बार उपमुख्यमंत्री पद पर इसी दल (जनसंघ) के वीरेन्द्र कुमार सखलेचा नियुक्त हुए थे। दो उपमुख्यमंत्री पहली बार बनाए गए हैं। 
मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री दोनों मालवा से
राज्य के मुख्यमंत्री के साथ ही एक उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा भी उज्जैन संभाग से हैं। इस तरह राज्य की कमान में दो प्रमुख व्यक्ति मालवा से हैं।
सोशल इंजीनियरिंग
जातीय गणित देखें तो मुख्यमंत्री ओबीसी समुदाय से हैं तो उपमुख्यमंत्रियों में से एक अनुसूचित जाति से और एक सवर्ण समुदाय से हैं। सवर्ण समुदाय से आने वाले राजेन्द्र शुक्ल विंध्य से हैं जो मालवा के बाद भाजपा का बड़ा गढ़ बना है। 
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री
1. रविशंकर शुक्ल            1956 – 1956   कांग्रेस
2. भगवत राव मंडलोई      1957 – 1957   कांग्रेस
3. कैलाश नाथ काटजू       1957 – 1957   कांग्रेस
4. कैलाश नाथ काटजू       1957 – 1962   कांग्रेस
5. भगवंत राव मंडलोई      1962 – 1963   कांग्रेस
6. द्वारका प्रसाद मिश्रा       1963 – 1967   कांग्रेस
7. द्वारका प्रसाद मिश्रा       1967 – 1967   कांग्रेस
8 . गोविंद नारायण सिंह      1967 – 1969  संयुक्त विधायक दल
9. राजा नरेशचन्द्र सिंह      1969 – 1969   कांग्रेस
10. श्यामाचरण शुक्ल         1969 – 1972   कांग्रेस
11. प्रकाश चन्द्र सेठी          1972 – 1972   कांग्रेस
12. प्रकाश चन्द्र सेठी          1972 – 1975   कांग्रेस
13. श्यामाचरण शुक्ल         1975 – 1977   कांग्रेस
राष्ट्रपति शासन               1977 – 1977
14. कैलाश चन्द्र जोशी        1977 – 1978   जनता पार्टी
15. वीरेन्द्र कुमार सकलेचा      1978 – 1980   जनता पार्टी
16. सुंदरलाल पटवा            1980 – 1980   जनता पार्टी
राष्ट्रपति शासन                1980 – 1980
17. अर्जुन सिंह                  1980 – 1985   कांग्रेस
18 अर्जुन सिंह                   1985 - 1985
19. मोतीलाल वोरा             1985 – 1988   कांग्रेस
20. अर्जुन सिंह                  1988 – 1989   कांग्रेस
21. मोतीलाल वोरा             1989 – 1989   कांग्रेस
22. श्यामाचरण शुक्ल            1989 – 1990   कांग्रेस
23. सुंदरलाल पटवा              1990 – 1992  भाजपा
राष्ट्रपति शासन                  1992 – 1993
24. दिग्विजय सिंह            1993-1998 कांग्रेस
25. दिग्विजय सिंह             1998 – 2003  कांग्रेस
26. उमा भारती                 2003 – 2004  भाजपा
27. बाबूलाल गौर               2004 – 2005  भाजपा
28.शिवराज सिंह चौहान          2005 – 2008 भाजपा
29. शिवराज सिंह चौहान         2008-2013 भाजपा
30 . शिवराज सिंह चौहान         2013-2018 भाजपा
31. कमलनाथ                  2018-2020
32. शिवराज सिंह चौहान          2020-2023
33. डॉ. मोहन यादव             2023-
मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश का निशाना उप्र-बिहार 
अजय सेतिया 
मध्यप्रदेश में यादव और छतीसगढ़ में आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने बड़ा संदेश दिया है| वैसे तो शिवराज सिंह चौहान भी पिछड़े समुदाय से थे लेकिन नाम के पीछे यादव लगा हो, वह बिहार और यूपी के यादवों पर निश्चित ही असर डालेगा| विधानसभा चुनाव नतीजों में अगर भाजपा ने कांग्रेस को झटका दिया था| तो मोहन यादव को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने सपा और राजद को बड़ा झटका दिया है क्योंकि इन दोनों दलों का आधार ही यादव वोट बैंक है| लोकसभा चुनावों को सामने रखकर संघ परिवार ने सोशल इंजीनियरिंग का बड़ा दांव चला है। गोविन्दाचार्य ने भाजपा में सोशल इंजीनियरिंग की जो बुनियाद रखी थी, संघ उसे नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के माध्यम से क्रियान्वित कर रहा है| यूपी बिहार के यादवों को छोड़कर बाकी पिछड़ी जातियां पहले से ही भाजपा के साथ हैं| मध्यप्रदेश में यादव को मुख्यमंत्री बनाने से अब यूपी बिहार के यादव भी भाजपा से जुड़ेंगे| 
दोनों मुख्यमंत्री संघ और विद्यार्थी परिषद पृष्ठभूमि के हैं| इन दोनों राज्यों में बदलाव के बाद अब यह मानकर चलना चाहिए कि राजस्थान में भी कोई चौंकाने वाला चेहरा हो सकता है| शुरू में जैसे लगता था कि संघ भी वसुंधरा राजे को ही मुख्यमंत्री बनाए रखना चाहता है, वह अब सही नहीं लगता| वसुंधरा राजे ने जिस तरह भाजपा विधायकों से मुलाकातों का सिलसिला शुरू किया है, उसे संघ तो क्या भाजपा भी पसंद नहीं करती | विद्यार्थी परिषद की ही पृष्ठभूमि के भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें समझाया है कि वह गुटबाजी को बढावा न दें| लेकिन वसुंधरा राजे 20-25 विधायक अपने साथ दिखाकर एक साल की मोहलत मांग रही हैं, लेकिन अगर संघ ने किसी को मुख्यमंत्री बनवाने का फैसला करवाया है, तो बदलाव संभव नहीं होगा|
ऐसा नहीं है की पहले विद्यार्थी परिषद के लोग पार्टी और सरकार में नहीं थे| अरुण जेटली और अनंत कुमार विद्यार्थी परिषद से ही थे| फर्क यह है कि अब भारतीय जनता पार्टी की सारी कमान विद्यार्थी परिषद के हाथ में आ गई है| नरेंद्र मोदी की भले ही विद्यार्थी परिषद में सीधी भूमिका नहीं रही, लेकिन अमित शाह, धर्मेन्द्र प्रधान, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह सब विद्यार्थी परिषद से ही हैं तो हो सकता है कि राजस्थान की पर्ची भी किसी विद्यार्थी परिषद वाले के पक्ष में ही निकले| वहां पर्यवेक्षक भी विद्यार्थी परिषद पृष्ठभूमि के राजनाथ सिंह को बनाकर भेजा गया है| देखते हैं, राजस्थान में किस की किस्मत जागती है। जब पूरी तरह अनुशासित रहने वाले और विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे शिवराज सिंह चौहान को बड़े उद्देश्य के लिए बदल दिया गया तो राजस्थान क्यों नहीं|

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