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- भगवान शंकर की तपस्या करके उनसे मदद मांगी जिसके बाद महादेव ने गंगा से कहा कि वे उनकी जटाओं से होकर गुजरे
इक्ष्वाकु राजा सगर ने एक बार अश्वमेध यज्ञ किया । उनका यज्ञ सफलता पूर्वक चल रहा था । यह देख कर देवराज इन्द्र , राजा सगर के पराक्रम से डर गए और उन्होने चालाकी से अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को चुरा कर कपिलमुनी के आश्रम में बाँध दिया । राजा सगर को जब पता चला उनका घोड़ा किसी ने पकड़ लिया है तो उन्होने अपने साठ हजार पुत्रों को युद्ध करने के लिए भेजा । पुत्रों ने कपिलमुनि के यहां पहुचकर उन्हें युद्ध के लिए ललकारा लेकिन कपिलमुनि उस समय ध्यान मग्न थे । तपस्या में लीन कपिल मुनि की आँखें खुल गई क्रोधित होकर उन्होने उन सभी को श्राप से भस्म कर दिया । राजा सगर के पुत्र जब वापस नहीं लौटे तो उन्होने अपने पौत्र अंशमान को अश्व ढूंढने के लिए भेजा । अंशुमन अश्व को ढूंढते – ढूंढते कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे । वहाँ उन्होने अपने चाचाओं की भस्म का स्तूप पड़ा देखा तभी पक्षीराज गरूड़ उड़ते हुए वहां पहुचे और बताया कि ‘ ये सब कपिल मुनि के शाप से हुआ है तब अंशुमन ने कपिलमुनी से क्षमा मांगी और अपने चाचाओं की आत्मा की शांति का उपाय पुछा तब मुनि ने कहा कि यदि पवित्र गंगा जल उनके चाचाओं पर पड़ेगा तो उनकी आत्मा को शांति मिल जाएगी। अशुंमन ने बहुत कोशिश की लेकिन वे अपने चाचाओं को कपिल मुनि के कोप से मुक्त नहीं करा पाएं। बाद में उनके पोते राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तपस्या करने की बीड़ा उठाई । पूर्वजों का उद्धार करने के लिए भगीरथ ने कठोर तपस्या की तब माँ गंगा ने प्रकट होकर कहा कि यदि वे सीधे धरती पर अवतरित होंगी तो इससे समस्त भूलोक पर तबाही मच जाएगी उसके बाद राजा ने भगवान शंकर की तपस्या करके उनसे मदद मांगी जिसके बाद महादेव ने गंगा से कहा कि वे उनकी जटाओं से होकर गुजरे ,इससे धरती को नुकसान नहीं होगा। इस तरह गंगा धरती पर अवतरित हुई और उसके बाद भगीरथ पतित पावनी गंगा को गंगोत्री से गंगा सागर तक लेकर गए और गंगा के पानी से राजा सागर के 60 हजार पुत्रों की आत्मा को शांति और मुक्ति दिलाने में सफल हो सकें। (रिंकी कुमारी)