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नवरात्रि में माता रानी के इन शक्तिपीठों के जरूर करें दर्शन, सारी मनोकामना होगी पूरी

कालीघाट शक्तिपीठ, कोलकाता


कालीघाट शक्तिपीठ या कालीघाट काली मन्दिर बांगाल के कोलकाता मे स्थित काली देवी का मन्दिर है। यह भारत की 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी ने की थी।यह मंदिर काली भक्तों के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। इस मंदिर में देवी काली के प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सती के शरीर के अंग प्रत्यंग जहाँ भी गिरे वहाँ शक्तिपीठ बन गये। ब्रह्म रंध्र गिरने से हिंगलाज, शीश गिरने से शाकम्भरी देवी, विंध्यवासिनी, पूर्णगिरि, ज्वालामुखी, महाकाली आदि शक्तिपीठ बन गये। माँ सती के दायें पैर की कुछ अंगुलिया इसी जगह गिरी थीं।


कामाख्या मन्दिर, कामाख्या


माता कामाख्या को समर्पित कामाख्या देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में कई ऐसी रोचक घटनाएं घटित होती हैं जो व्यक्ति को अचरज में डाल देती हैं। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। मूर्ति के स्थान पर यहां एक योनि-कुण्ड स्थित है। जो फूलों से ढका रहता है। इस कुंड की खासियत यह है कि इस कुंड से हमेशा पानी निकलता रहता है।

22 जून से 25 जून के बीच मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, जिस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रहता है। माना जाता है कि इन दिनों माता सती रजस्वला रहती हैं। इन 3 दिनों के लिए पुरुषों को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती। वहीं, 26 जून को सुबह भक्तों के लिए मंदिर खोला जाता है, जिसके बाद भक्त माता के दर्शन कर सकते हैं। भक्तों को यहां पर अनोखा प्रसाद मिलता है। तीन दिन देवी सती के मासिक धर्म के चलते माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है। तीन दिन बाद कपड़े का रंग लाल हो जाता है, तो इसे भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।


तारा तारिणी, गंजम


ओडिशा के गंजम जिले के ब्रह्मपुर शहर में स्थित है तारा तारिणी आदि शक्ति पीठ। विभिन्न पौराणिक मान्यताओं के आधार पर माना जाता है कि भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में 51 अथवा 52 शक्तिपीठ हैं, लेकिन 4 ऐसे स्थान हैं, जिन्हें आदि शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। तारा तारिणी मंदिर उन्हीं आदि शक्ति पीठों में से एक है, जिसे ‘स्तन पीठ’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहाँ माता सती के दोनों स्तन, ऋषिकुल्या नदी के किनारे स्थित कुमारी पहाड़ी पर गिरे थे। तारा तारिणी मंदिर को शाक्त संप्रदाय के उन प्रमुख स्थानों के रूप में जाना जाता है, जहाँ तंत्र विद्या का प्राचीन इतिहास रहा है।

ब्रह्मपुर शहर के उत्तर में 30 किलोमीटर (किमी) की दूरी पर स्थित तारा तारिणी आदि शक्तिपीठ में दो अत्यंत प्राचीन पत्थर की प्रतिमाएँ हैं, जो देवी तारा और तारिणी का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन प्रतिमाओं को स्वर्ण और चाँदी के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। इसके अलावा इन दो प्रतिमाओं के बीच में पीतल के दो मुख स्थित हैं, जिन्हें जीवंत प्रतिमा के रूप में जाना जाता है।


विमला शक्तिपीठ, ओडिशा


विमला शक्तिपीठ ओडिशा राज्य के पुरी शहर के जगन्नाथ मन्दिर मे मोह्जुद है। यह शक्तिपीठ बहुत प्राचीन मनि जाति है। देवी विमला शक्ति स्वरुपिणि है जो जगन्नाथ जी को निवेदन किया गया नैवेद्य सब्से पहले ग्रहण करती है। उस्के वाद हि सब लोगोमे प्रसाद महाप्रसाद के रूप मैं बंट जाता है। देवी के मन्दिर मे शरद ऋतु मे दुर्गा पुजन का त्योहार मनया जाता है जो कि महालया के ७ दिन पहलेवालि अष्टमी से गुप्त नवरत्रि के रूप मैं होके महालया के बाद प्रकट नवरत्रि के रूप नवमी तक होति है। इसको षोडश दिनात्मक या १६ दिन चलनेवाली शारदिय उत्सव कह्ते है जो कि पुरे भारत मे विरल है। देवी विमला और याजपुर नगर में स्थित विरजा एक हि शक्ति मानि जाति है। विरजा देवी के मन्दिर से विमला देवी के मन्दिर तक का पुरा स्थान विरजमण्डल के रूप मैं मानि जाति है।


बिरजा मंदिर, जाजपुर


बिरजा मंदिर जाजपुर के अद्भुत मंदिरों में से एक है, जो भारतीय राज्य ओडिशा में स्थित है। यह पवित्र तीर्थस्थल सती को समर्पित है जिन्होंने बिराजा माँ के रूप में देवी – दुर्गा (शक्ति) का अवतार लिया था। बिरजा मंदिर जाजपुर के अद्भुत मंदिरों में से एक है, जो भारतीय राज्य ओडिशा में स्थित है। यह पवित्र तीर्थस्थल सती को समर्पित है जिन्होंने बिराजा माँ के रूप में देवी- दुर्गा (शक्ति) का अवतार लिया था। बैतरणी के नदी-तट पर स्थित, मंदिर 51 में से एक शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। भगवान स्वेता बरहा के एक सुनिश्चित देवता जिन्हें भगवान विष्णु के प्रकट होने के रूप में प्रसिद्ध किया गया है क्योंकि मंदिर के आसपास के क्षेत्र में श्वेत वर को खूबसूरती से रखा गया है।नवरात्रि और दुर्गा पूजा एक वर्ष में दो बार अत्यंत उत्साह और भक्ति के साथ मंदिर के अंदर मनाया जाने वाला धार्मिक त्योहार है।


कोल्हापुर या शिवहरकर, महाराष्ट्र


महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित यह शक्तिपीठ है, जहां माता की आंखें गिरी थीं। यहां की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव हैं। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराणों में प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है। कोल्हापुर सड़क, रेलवे और वायु मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम बस स्टैंड कोल्हापुर में है। हैदराबाद, मुम्बई आदि जैसे विभिन्न शहरों से कई सीधी बसें हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन कोल्हापुर में है।

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