Home » सकट चौथ पर 100 वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग,इस तरह करें भगवान गणेश की आराधना

सकट चौथ पर 100 वर्षों बाद बन रहा दुर्लभ संयोग,इस तरह करें भगवान गणेश की आराधना

प्रतिवर्ष माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को ‘संकष्टी चतुर्थी’ पर्व मनाया जाता है, जिसे ‘सकट चौथ’ भी कहा जाता है। संकष्टी चतुर्थी अर्थात् संकटों को हरने वाली चतुर्थी। नारद पुराण के अनुसार प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं और माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के व्रत का बहुत महत्त्व है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ तथा पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘संकष्टी चतुर्थी’ कहा जाता है। इस चतुर्थी को ‘माघी चौथ’, ‘सकट चौथ’ तथा ‘तिल चौथ’ भी कहा जाता है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास की सकट चौथ का शुभारंभ 29 जनवरी को प्रातः 6 बजकर 10 मिनट पर होगा और इसका समापन 30 जनवरी को प्रातः 8 बजकर 54 मिनट पर होगा, इसलिए उदया तिथि के नियमानुसार सकट चौथ व्रत 29 जनवरी को रखा जाएगा। इस दिन विघ्नहर्ता और संकटों को दूर करने वाले भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन गणपति बप्पा की विधि-विधान पूर्वक पूजा-व्रत करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस विशेष अवसर पर महिलाएं संतान की दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत करके रात को चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं और अपने बच्चों लिए प्रार्थना करती हैं।

मान्यता है कि इस दिन चंद्र देव को जल अर्पित करने से संतान को रोग नहीं होता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह भी मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है और संतान को लंबी आयु तथा अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। संतानों को सभी प्रकार की आपदाओं से बचाने के लिए यह व्रत किया जाता है। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से रुके हुए मांगलिक कार्य भी सम्पन्न होते हैं और इस दिन चन्द्रमा के दर्शन से भगवान गणेश के दर्शन का भी पुण्य फल मिलता है।

भगवान गणेश को बुद्धि के स्वामी तथा चंद्रमा को मन के स्वामी माना गया है और इन दोनों के संयोग के परिणामस्वरूप यह व्रत मानसिक शांति, कार्यों में सफलता, प्रतिष्ठा में बुद्धि और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। सभी मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार इस व्रत को सविधि सम्पन्न करने के लिए एक ही नियम है कि चंद्रमा का उदय और चतुर्थी दोनों का संयोग होना चाहिए यानी चंद्रमा को अर्ध्य तभी दिया जा सकता है, जब चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय हो रहा हो और चन्द्र देव अर्ध्य तभी स्वीकार करेंगे, जब वे चतुर्थी तिथि में विद्यमान हो क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से भगवान गणेश जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करते हैं। मान्यता है कि इस दिन किया गया व्रत और पूजा-पाठ वर्ष पर्यन्त सुख-शांति और पारिवारिक विकास में सहायक सिद्ध होता है। वैसे तो भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए इस व्रत को कोई भी कर सकता है लेकिन अधिकांशतः सुहागिन स्त्रियां ही परिवार की सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत करती हैं। संकष्टी चतुर्थी को तिलकुट, सकट चौथ, माघ चतुर्थी इत्यादि कई नामों से जाना जाता है। बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस व्रत को ‘तिलवा’ और ‘तिलकुटा’ भी कहा जाता है। वैसे तो संतान की तरक्की और उसकी खुशहाली के लिए संकष्टी चतुर्थी पर्व देश के कई राज्यों में मनाया जाता है लेकिन खासकर उत्तर भारतीयों का यह प्रमुख पर्व है।

हिन्दू शास्त्र परम्परा के अनुसार इस दिन गुड़ और तिल का पिंड बनाकर उसे पर्वत रूप समझकर दान किया जाता है, जिसे गुड़-धेनु कहा जाता है। इस दिन महिलाएं प्रातः स्नान के बाद निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्र दर्शन के पश्चात् व्रत खोलती हैं। कुछ स्थानों पर महिलाएं इस दिन कुछ नहीं खाती, वहीं कुछ स्थानों पर महिलाएं व्रत खोलने के बाद खिचड़ी, मूंगफली और फलाहार करती हैं। शकरकंद खाने का इस दिन सर्वाधिक महत्व माना गया है। इस व्रत में काले तिल और गुड़ से बने गणेश को भोग लगाया जाता है और उन्हें चावल का बना आटा भी चढ़ाया जाता है। अन्य सभी देवी-देवताओं में भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना गया है और भगवान गणेश के लिए किए जाने वाले अन्य सभी व्रतों में संकष्टी चतुर्थी व्रत काफी प्रचलित है, जिसे तिलकूट चतुर्थी भी कहा जाता है। इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन सौ वर्षों के बाद मंगल, शुक्र और बुध धनु राशि में होंगे, जिससे त्रिग्रही योग बनेगा, साथ ही इस दिन शोभन योग भी बन रहा है और इन शुभ योग का संयोग तुला, मीन, कुंभ राशि वालों की व्यवसाय संबंधी समस्याओं का निवारण करेगा तथा उन्हें गणपति बप्पा की कृपा से धन लाभ के अवसर प्राप्त होंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन से कुछ राशियों का भाग्य चमक जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सकट चौथ की कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें एक कथा काफी प्रचलित है।

कथानुसार, एक बार देवों के देव महादेव भगवान शिव ने गणेश और कार्तिकेय से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। तब भगवान शिव ने कहा कि तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा। यह सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए किन्तु गणेश सोचने लगे कि यदि वे अपने वाहन चूहे के ऊपर चढ़कर सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो उन्हें इस कार्य में बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा और वे अपने स्थान से उठे तथा अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस वहीं बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय ने स्वयं को विजयी बताया। भगवान शिव ने गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करने का कारण पूछा तो गणेश जी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश को ही देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी और उन्हें आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा श्रद्धापूर्वक पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्ध्य देगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश ने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा सकट चौथ के ही दिन की थी, जिस कारण इस व्रत का विशेष महत्व माना गया है।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd