- सुहागन महिलाएं यह व्रत करती हैं
- लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं।
कजरी तीज का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है।भाद्रपद महीने की शुरुआत में तीसरे ही दिन भगवान शिव-पार्वती की पूजा और व्रत किया जाता है। वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए सुहागन महिलाएं यह व्रत करती हैं और लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं। आज ये व्रत किया जा रहा है। इसके अगले ही दिन भगवान गणेश की पूजा के साथ हेरंब संकष्टी चतुर्थी रहेगी। जो कि 3 सितंबर को रहेगी। इस दिन महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ इकट्ठा होती हैं पूरा दिन नाच गाना करती हैं।
कजरी तीज व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत गरीब था। एक बार ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने की कजली तीज का व्रत किया। उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से कहा कि उसने तीज माता का व्रत रखा है। उसे चने का सत्तू चाहिए । ब्राह्मण ने बोला कि वो सत्तू कहां से लाएगा तो उसकी पत्नी ने कहा कहीं से ले आओ। इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सत्तू चाहिए फिर चाहे वो चोरी करे या डाका डाले। लेकिन उसके लिए सत्तू लेकर आए।
रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकलकर साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने साहूकार की दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर लिया और सवा किलो तोल लिया। फिर इन सब से सत्तू बना लिया। जैसे ही वो जाने लगा वैसे ही आवाज सुनकर साहुकार जाग गया और ब्राह्मण को पकड़ लिया।
तब ब्राह्मण ने बताया कि वो चोर नहीं है। वो एक एक गरीब ब्राह्मण है। उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत किया है, इसलिए सिर्फ यह सवा किलो का सत्तू बनाकर ले जाने आया था। जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसके पास से सत्तू के अलावा और कुछ नहीं मिला।
वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि के लिए सुहागन महिलाएं यह व्रत करती हैं और लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं। कजरी तीज के दिन घर में झूला डाला जाता है और औरतें इसमें झूला झूलती हैं। इस दिन महिलाएं अपनी सहेलियों के साथ इकट्ठा होती हैं पूरा दिन नाच गाना करती हैं।
पति और बच्चों की लंबी उम्र के लिए करती महिलाएं रखती है व्रत
सुहागन महिलाएं कजरी तीज का व्रत अपने पति और बच्चों की लंबी उम्र के लिए करती हैं। ये व्रत साल के पांच तीज व्रतों में शामिल है। पूरे दिन व्रत रखकर महिलाएं प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। प्रदोष काल दिन और रात के मिलन का वक्त होता है। यानी शाम को शिव पूजा की जाती है। इसके बाद व्रत खोला जाता है।मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।