उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा ने अपना परचम लहराकर आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार कर दी है। निकाय चुनाव की जीत ने बता दिया है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए एक बार फिर तारणहार बनने को तैयार है। इस जीत ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काम काज पर मुहर लगा दी है।
वहीं दूसरी ओर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल कर दक्षिण में भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। हालांकि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का मिजाज पूरी तरह से भिन्न रहा। यह चुनाव स्थानीय बनकर केंद्रित रह गया। इतना ही नहीं प्रदेश के कुछ नेताओं के आपसी कलह ने भी भाजपा को डुबाने का काम किया। इन सबका असर चुनाव परिणाम में देखने को मिला।
वहीं उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा की लगभग एकतरफा जीत ने विपक्ष को कड़ा संदेश दे दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में हुए इस चुनाव में विपक्ष भाजपा के आगे कहीं खड़ा नहीं दिखा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काम काज पर लोगों ने भरोसा जताया। इतना ही नहीं माफियाओं के खात्मे के लिए मुख्यमंत्री की नीतियों पर जनता ने मुहर लगाने का काम किया। निकाय चुनाव परिणाम का संदेश यह बताता है कि लोकसभा चुनाव में भी उत्तर प्रदेश ही भाजपा को सबसे अधिक सीट दिलाने वाला राज्य होगा। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ की दावेदारी को लेकर भी चर्चा होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
कर्नाटक की हार से सबक लेगी भाजपा
कर्नाटक में भाजपा की पराजय ने पार्टी को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली और रोड शो ने भी भाजपा को जीत नहीं दिला पायी। भाजपा ने इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे को आगे लाने की कोशिश की, पर उसमें भी कामयाब नहीं हो पायी। इतना ही नहीं बजरंग दल पर प्रतिबंध के विरोध को भुनाने की उनकी कोशिश भी कामयाब नहीं हो पायी। अपनी परंपरागत लिंगायत वोट बैंक को साधने में भी भाजपा असफल रही। इस हार ने भाजपा के लिए दक्षिण का द्वार लगभग बंद सा कर दिया है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिण के द्वार पर लगे इस झटके से उबरने के लिए भाजपा को नई रणनीति पर काम करना होगा।
हार पर समीक्षा के लिए भाजपा करेगी बैठक
कर्नाटक में भाजपा को मिली हार के कारणों और भविष्य में ऐसी गलतियों दोबारा न हो, इसको लेकर पार्टी में बैठक होगी। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा की अध्यक्षता में दो—तीन दिनों के अंदर यह बैठक आयोजित की जाएगी। इस बैठक में प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और चुनावी प्रभारियों से रिपोर्ट ली जाएगी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट जाएगी।
खड़गे को अध्यक्ष बनाने का दांव हुआ कामयाब
कांग्रेस ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मल्लिकार्जुन खड़गे को बिठाया। खड़गे कर्नाटक से आते हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का यह दांव काम कर गया। कांग्रेस कर्नाटक की जनता को यह संदेश देने में कामयाब हो गई कि पार्टी के सबसे अहम पद पर उनके राज्य के प्रतिनिधि को जगह दी गई है। इतना ही नहीं कांग्रेस ने इस विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा। कांग्रेस नेताओं ने अपने प्रचार के दौरान किसी भी राष्ट्रीय मुद्दों का उल्लेख तक नहीं किया। यहां तक कि राहुल गांधी के भाषणों में भी ज्यादातर स्थानीय मुद्दे ही हावी रहे। पार्टी का इसका पूर्ण लाभ मिला। कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताते हुए बहुमत के साथ सरकार में बैठने का मौका दे दिया।
मध्यप्रदेश के लिए भाजपा हुई गंभीर
कर्नाटक चुनाव में हार के बाद मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। मध्यप्रदेश के साथ—साथ छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। सरकार के खिलाफ बना माहौल भाजपा के लिए इन दोनों राज्यों में अवसर है। लेकिन मध्यप्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में फिर से जीत हासिल करना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी। खासकर कर्नाटक हार के बाद यह चुनौती और भी बढ़ जाती है।
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