आगामी लोकसभा चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता का मामला तूल पकड़ता देख कांग्रेस हलकान है। कांग्रेस को लगने लगा कि इस मामले को यही नहीं रोका गया तो एक बार देश में फिर मोदी की लहर चल पड़ेगी। ऐसे में भाजपा को हराना कांग्रेस के लिए सपना बन कर रह जाएगा। कांग्रेस ने अपने सपने धूमिल होता देख विधि आयोग की मंशा पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
दरअसल विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता को लेकर फिर से विचार विमर्श के लिए एक विज्ञप्ति जारी की। आयोग ने समान नागरिक संहिता पर आम जनता और धार्मिक संस्थानों से राय मांगी है। आयोग ने इस बारे में 30 दिनों के भीतर लोगों को अपनी राय देने को कहा है। इस विज्ञप्ति के आते ही समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक दलों के बीच चर्चा शुरू हो गई। विज्ञप्ति जारी होते ही कांग्रेस को विधि आयोग की मंशा ही संदेहजनक लगने लगी। कांग्रेस ने आयोग पर निशाना साधते हुए कहा है कि यह भाजपा की महत्वाकांक्षा साधने वाला प्रेस नोट है। इस समय इस मुद्दे को हवा देना का प्रयास मोदी सरकार के ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने और उसकी नाकामियों से ध्यान भटकाने का स्पष्ट कारण नजर आता है। विपक्षी दल ने आयोग को दो टूक नसीहत भी दी है। कांग्रेस ने कहा है कि आयोग को समझना चाहिए कि उसके लिए भाजपा नहीं राष्ट्रहित ज्यादा महत्वपूर्ण है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि भारत के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को एक प्रेस नोट के माध्यम से समान नागरिक संहिता पर फिर से विचार विमर्श करने का अपना इरादा जताया है। कानून और न्याय मंत्रालय के प्रेस नोट में दिए एक संदर्भ से स्पष्ट है कि यह पहले भी किया गया था। उन्होंने कहा कि ऐसे में आयोग के समान नागरिक संहिता को लेकर फिर से विचार विमर्श का फैसला आश्चर्यजनक है। उन्होंने यह भी कहा कि 21वें विधि आयोग ने इस विषय की विस्तृत और व्यापक समीक्षा करने के बाद पाया कि समान नागरिक संहिता की न तो इस स्टेज पर आवश्यकता है और न ही वांछित है। ऐसे में ये सरकार के ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने जैसा नजर आ रहा है। कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि आखिर सरकार दोबारा यह कदम क्यों उठा रही है। इसको लेकर प्रेस नोट में ‘विषय के महत्व, प्रासंगिकता और अदालती आदेशों’ जैसे अस्पष्ट संदर्भ या तर्क के अलावा कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है।
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