भोपाल। मध्यप्रदेश में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने इस वर्ष हुए विधानसभा के चुनाव में दो तिहाई से अधिक बहुमत से सत्ता बरकरार रखी है। वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा को प्रदेश में 163 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस को 66 सीटें प्राप्त हुई हैं। मध्यप्रदेश में अपने पांव जमाने के लिए इस बार आम आदमी पार्टी और असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी भी प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था, लेकिन एक भी उम्मीदवार नहीं जीत सके। वहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी खाता नहीं खोल सकीं। भाजपा और कांग्रेस के अलावा मतदाताओं ने किसी पर भरोसा नहीं किया। लेकिन रतलाम जिले की सैलाना विधानसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी ने जीत दर्ज कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है।
जय आदिवसी युवा संगठन के नेता कमलेश्वर डोडियार ने भारत आदिवासी पार्टी के बैनर तले पहली बार चुनाव लड़े और जोरदार जीत दर्ज की। वे 2018 में भी चुनाव लड़े थे लेकिर हार गए थे। रतलाम जिले की आदिवासी बहुल सैलाना सीट पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी दूसरे और भाजपा उम्मीदवार तीसरे पायदान पर रहे। दूसरी बार चुनाव लड़ रहे कमलेश्वर डोडियार को 2018 में 18726 मत मिले थे।
दोनों दलों के वोट में सेंधमारी
सैलाना प्रदेश की इकलौती विधानसभा सीट है, जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को मुंहकी खानी पड़ी है। भाजपा ने यहां से संगीता चारेल को उम्मीदवार बनाया था, जबकि कांग्रेस से हर्ष विजय गेहलोत यहां से उम्मीदवार थे। गेहलोत को 2018 के मुकाबले इस बार 6996 मत कम मिले, वहीं भाजपा से तीसरी बार मैदान में रही संगीता चारेल को 4515 मत कम मिले। डोडियार ने दोनों दलों के मतों में सेंध लगाई है। कमलेश्वर डोडियार ने भारत आदिवासी पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़कर सफलता के झंडे गाड़े हैं। उनकी जीत में आदिवासी समाज के युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
युवाओं की टोली ने गाड़ दिए झंडे
युवाओं की टीम ने गांव-गांव, मजरे, टोले, फलियों में जाकर मतदाताओं को अपनी पार्टी (जयस) का नारा देते हुए साथ देने के लिए जमकर मेहनत की। जिला पंचायत के चुनाव में चार वार्डों में जयस समर्थक उम्मीदवार सदस्य बने थे। चारों सदस्यों ने युवाओं को जोड़कर जो टीम बनाई, उसी टीम ने डोडियार के पक्ष में जमकर प्रचार किया और चुनावी प्रबंधन को संभाला। नतीजा यह हुआ कि सैलाना सीट पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को मुंहकी खानी पड़ी है।
कांग्रेस और भाजपा के साथ यह जीत ओवैसी और केजरीवाल की पार्टी के साथ समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के लिए भी सबक है। क्योंकि समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश से सटे ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र में अपना प्रभाव दिखाती आई है। हर विधानसभा चुनाव में कुछ न कुछ सीटें इन दोनों दलों को मिलते थे। लेकिन इस बार एक भी सीट इन दोनों दलों को नहीं मिली, जबकि दोनों दलों ने कई उम्मीदवार उतारे थे।