Home » यूएई में गूंजेगा सनातन धर्म का शंखनाद! 14 फरवरी को पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन, जानिये अबू धाबी में निर्मित इस मंदिर की खासियत

यूएई में गूंजेगा सनातन धर्म का शंखनाद! 14 फरवरी को पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन, जानिये अबू धाबी में निर्मित इस मंदिर की खासियत

संयुक्त अरब अमीरात में आने वाले समय में यहां सनातन धर्म का शंखनाद गूंजेगा। जिसकी ध्वनि पूरी दुनिया में सुनाई देगी। यूएई की राजधानी अबूधाबी में बीएपीएस स्वामी नारायण मंदिर बनकर कर तैयार हो गया है। अब बस मंदिर में घंटों की आवाज गूंजेगी, भगवान की प्रतिमा के आगे दीप जलेंगे, आरती होगी, होम-हवन होगा, प्रसाद की मिठास होगी, भक्त भक्ति से सराबोर होंगे और इस पावन दिन की वो तारीख होगी, 14 फरवरी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा और उद्धाटन में शामिल होने अबू धाबी पहुंचेंगे और 18 फरवरी से मंदिर के द्वार आम जनता के लिए खोल दिए जाएंगे।

27 एकड़ में 700 करोड़ से हुआ तैयार

मंदिर की विशेषताओं की बात करें तो इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। मंदिर को ऐसे डिजाइन किया गया है कि जो एक बार देखे वो देखता ही रह जाए। 700 करोड़ रुपये की लागत से बना ये मंदिर भारतीय प्राचीन मंदिर निर्माण शैली का अद्भुत उदाहरण है। 27 एकड़ में फैले इस मंदिर को बनाने में राजस्थान से अबू धाबी तक गुलाबी बलुआ पत्थर पहुंचाया गया था। इन पत्थरों पर यूएई की भीषण गर्मी का भी कोई असर नहीं होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने किया था परियोजना का उद्घाटन

मंदिर को भारतीय कारीगरों ने स्वरूप दिया है। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2018 में पीएम मोदी ने मंदिर के लिए परियोजना का उद्घाटन किया था और दिसंबर 2019 में मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। अबू धाबी का ये हिंदू मंदिर एशिया का सबसे बड़ा मंदिर होगा, जिसकी ऊंचाई 32.92 मीटर, लंबाई 79.86 मीटर और चौड़ाई 54.86 मीटर है। इस मंदिर को पूरी तरह बनाने में 18 लाख ईंटों का प्रयोग किया गया है। बीएपीएस संस्था के नेतृत्व में बने इस मंदिर में 7 शिखरों का निर्माण किया गया है। जिसके हर शिखर में देवी-देवताओं की आकृतियों को उकेरा गया है। इतना ही नहीं मंदिर के बाहरी हिस्से में 96 घंटियां लगाई गईं हैं। जिससे इश मंदिर भव्यता अलग ही दिखती है साथ ही मंदिर के अंदर पत्थरों पर जो नक्काशी की गई है। उसमें रामायण और महाभारत के साथ-साथ हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं का भी वर्णन किया गया है। यह मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र बनेगा बल्कि सौहार्द और सामंजस्य के प्रतीक के रूप में भी जाना जाएगा।

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