नई दिल्ली। आम चुनाव से ठीक पहले किसानों के आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार सतर्क हो गई है। दिल्ली की सुरक्षा को चाक चौबंद कर दिया गया है। सीमाओं पर अवरोधक लगा दिए गए हैं। वहीं किसानों के मान मुनव्वल का प्रयास सरकार की ओर से किया जा रहा है। तीन—तीन केंद्रीय मंत्रियों को इस काम में लगाया गया है पर अभी तक समाधान नहीं निकल पाया है। सरकार किसान संगठनों को समझाने में जुटी हुई है। दूसरी ओर किसान पंजाब से दिल्ली की ओर कूच कर चुके हैं। उन्हें हरियाणा और पंजाब की सीमा शंभू बॉर्डर पर रोका गया है। सीमा पर लगाए गए अवरोधक को तोड़कर किसान आगे बढ़ना चाहते हैं। किसानों के आक्रामक रूख को देख पुलिस बल का प्रयोग किया गया। उन पर आंसू गैस के गोले भी दागे गए। मामला तनावपूर्ण बना हुआ है।
किसान आंदोलन को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है। दिल्ली का प्रसिद्ध लाल किला पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई मेट्रो स्टेशनों पर प्रवेश बंद कर दिया गया है। सनद रहे कि 2020 में संसद से तीन कृषि कानून के पास होने के बाद किसानों ने दिल्ली जाम कर दी थी। 16 महीने तक किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहे। केंद्र के कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद आंदोलन समाप्त हुआ था। अब किसान फिर दिल्ली आ रहे हैं क्योंकि केंद्र से बातचीत बेनतीजा रही है। वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी वाला कानून, पेंशन और कर्ज माफी, 2020-21 प्रदर्शनों में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा की मांग कर रहे हैं।
बातचीत से हल निकालना चाहती सरकार
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि दो बार की किसानों से बातचीत की गई है। समाधान के लिए और चर्चा जरूरी है। बातचीत से समाधान मुमकिन है। बातचीत से ही रास्ता निकलेगा। उन्होंने कहा कि किसान ध्यान रखें कि कुछ तत्व इसका लाभ लेने की कोशिश न करें। बहुत सारी शक्तियां हैं उनके बीच जो किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। ऐसे लोगों से बचें। सरकार पर विश्वास रखें। सरकार किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्ध है।
200 से अधिक किसान संगठनों शामिल
दिल्ली चलो मार्च को करीब 200 से अधिक संगठनों का समर्थन प्राप्त हैं। इसमें संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) किसान मजदूर संघर्ष समिति प्रमुख हैं। इसमें इस बार भारतीय किसान यूनियन शामिल नहीं है। दूसरी तरफ संयुक्त किसान मोर्चा के साथ भारतीय किसान यूनियन ने 16 फरवरी को भारत बंद का आह्वान किया है।
डल्लेवाल के नेतृत्व में हो रहा आंदोलन
जगजीत सिंह डल्लेवाल के नेतृत्व में कृषि संगठन भारतीय किसान यूनान (एकता सिद्धूपुर) के नेतृत्व में इस आंदोलन की शुरुआत हुई। डल्लेवाल ने समानांतर संगठन एसकेएम (गैर-राजनीतिक) का गठन किया है। संयुक्त किसान मोर्चा(गैर-राजनीतिक) के तहत 150 से अधिक किसान संगठन जुड़े हैं। इसमें हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश के कृषि समूह भी शामिल हैं। इसने किसान मजदूर मोर्चा के साथ हाथ मिलाया और ‘दिल्ली चलो 2.0’ के आह्वान के साथ अमृतसर और बरनाला में रैलियां कीं।
हाथ सेंकने में जुटी कांग्रेस
केंद्र सरकार के खिलाफ चल रहे इस आंदोलन को देख कांग्रेस इसका फायदा उठाने में जुट गई है। कांग्रेस ने किसान आंदोलन का समर्थन करना शुरू कर दिया है। किसानों के समर्थन में राहुल गांधी से लेकर पूरी कांग्रेस मैदान में उतर चुकी है। इस बाबत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि पूरा बॉर्डर सील कर दिया गया है जैसे ये कोई दुश्मन देशों का बॉर्डर हो। हरियाणा-पंजाब, दिल्ली से सटे राजस्थान और उत्तर प्रदेश से सटे दिल्ली के पड़ोसी जिलों में इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से बंद कर दी गई हैं वो भी तब जब बोर्ड पेपर सर पर हैं। दिल्ली के चारो तरफ के जिलों में मौखिक हिदायत दी गई है कि किसी किसान के ट्रैक्टर में 10 लीटर से ज्यादा डीजल ना डाला जाएगा। चौतरफा जुल्म का आलम है। अन्नदाता किसानों की हुंकार से डरी हुई मोदी सरकार एक बार फिर 100 साल पहले अंग्रेज़ों द्वारा दमनकारी 1917 के बिहार के चंपारण किसान आंदोलन और खेड़ा आंदोलन की याद दिला रही है।।
वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा, “दिन रात ‘झूठ की खेती’ करने वाले मोदी ने 10 वर्षों में किसानों को सिर्फ ठगा है। दो गुनी आमदनी का वादा कर मोदी ने अन्नदाताओं को एमएसपी के लिए भी तरसा डाला। महंगाई तले दबे किसानों को फसलों का सही दाम न मिलने के कारण उनके कर्ज़े 60% बढ़ गए। नतीजा, लगभग 30 किसानों ने रोज अपनी जान गंवाई। धोखा जिसकी यूएसपी हो, वो एमएसपी के नाम पर किसानों के साथ सिर्फ राजनीति कर सकता है, न्याय नहीं। किसानों की राह में कीलें बिछाने वाले भरोसे के लायक नहीं हैं, इनको दिल्ली से उखाड़ फेंको, किसान को न्याय और मुनाफा कांग्रेस देगी। राहुल गांधी ने एम एस पी की गारंटी देने का वादा किया है।
by Umesh Kumar