उत्तर-दक्षिण विभाजन के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं को खारिज करती है.
नई दिल्ली, वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने हर किसी का ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि यह उत्तर-दक्षिण विभाजन के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं को खारिज करती है. सर्वे में साइट पर मौजूदा और पहले से मौजूद संरचनाओं की जांच करने पर 12वीं से 17वीं शताब्दी के बीच के संस्कृत और द्रविड़ दोनों भाषाओं में शिलालेख मिले, जो विभाजन के बजाय संस्कृतियों के एकीकरण का संकेत देते हैं.
साइट पर संस्कृत और द्रविड़ दोनों शिलालेखों की मौजूदगी से पता चलता है कि यह आध्यात्मिक संबंध किसी भी राजनीतिक या भौगोलिक विभाजन से पहले का है, जो भारतीय इतिहास को समझने में इसके महत्व और प्रासंगिकता को मजबूत करता है.
‘एकीकृत समाज का संकेत देती हैं शिलालेख’
महत्वपूर्ण बात यह है कि ये निष्कर्ष भारत में उत्तर-दक्षिण विभाजन की बातों का खंडन करते हैं. एक ऐसा दावा जिसे अक्सर भाषाई, सांस्कृतिक या यहां तक कि नस्लीय आधार पर विभाजन पैदा करने के लिए प्रयोग किया गया है. दोनों भाषा शिलालेखों की उपस्थिति एक अधिक एकीकृत समाज की ओर संकेत करती है, जहां भाषाई विविधता को स्वीकार और सम्मान दोनों किया जाता था. एक विभाजित समाज का चित्रण करने के बजाय ये शिलालेख पूरे इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप में विविध संस्कृतियों के संगम के बारे में बात करते हैं.