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विधायी प्रारुपण हमारे लोकतंत्र का बहुत महत्वपूर्ण अंग है कि इसके बारे में जानकारी का अभाव न केवल कानूनों और पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को निर्बल करता है बल्कि न्यायपालिका के कार्यों को भी प्रभावित करता है। लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है इसलिए इसके स्किल में समयानुसार बदलाव, बढ़ोत्तरी और अधिक दक्षता होती रहनी चाहिए। केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज संसद भवन में संसदीय लोकतंत्र शोध और प्रशिक्षण संस्थान (प्राइड) के सहयोग से संवैधानिक और संसदीय अध्ययन संस्थान (आईसीपीएस) द्वारा आयोजित संसद, राज्य विधानसभाओं, विभिन्न मंत्रालयों और वैधानिक निकायों के केंद्र और राज्यों के अधिकारियों के लिए आयोजित लेजिस्लेटिव ड्राफ्टिंग सम्बन्धी ट्रेनिंग प्रोग्राम का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, अर्जुन राम मेघवाल और केन्द्रीय गृह सचिव सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र को दुनिया सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में जानती है और एक प्रकार से लोकतंत्र का जन्म ही भारत में हुआ था और इसका विचार भी भारत में आया था। उन्होंने कहा कि आज भारत में हर जगह पर लोकतंत्र की जननी के संस्कार को हमने समाहित किया हुआ है। भारत के संविधान को दुनिया का सबसे परिपूर्ण संविधान माना जाता है और हमारे संविधान निर्माताओं ने न सिर्फ देश के परंपरागत लोकतांत्रिक संस्कारों को इसमें शामिल किया बल्कि इसे आज के समय की जरूरतों के अनुसार आधुनिक बनाने का प्रयास भी किया। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के 3 मुख्य स्तंभ होते हैं- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका और इन 3 स्तंभों पर हमारी पूरी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को बनाने का काम हमारे संविधान निर्माताओं ने किया। इन तीनों व्यवस्थाओं के काम अच्छे से विभाजित किए गए हैं। लेजिस्लेचर का काम है लोक कल्याण और लोगों की समस्याओं पर विचार करना और कानूनी तरीके से उनका समाधान निकालना। दुनियाभर में हर क्षेत्र में आ रहे बदलावों पर संसद में चर्चा करके उन बदलावों के अनुरूप हमारे व्यवस्था तंत्र नए कानून बनाकर या पुराने कानूनों में समय के अनुसार संशोधन करके प्रासंगिक बनाना होता है और ये विधायिका का काम है, और, इसके बाद बनने वाले कानून की स्पिरिट के आधार पर इस पर अमल का काम एग्जीक्यूटिव करती है। विवाद होने पर कानून की व्याख्या के लिए ज्यूडिशियरी को हमारे यहां स्वतंत्र रूप से काम करने का अधिकार दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन तीनों स्तंभों के बीच हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बांटने का काम हमारे संविधान निर्माताओं ने किया। वहीं इस मौके पर मौजूद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि लोकतंत्र में वाद—विवाद और चर्चा सकारात्मक और रचनात्मक होना जरूरी है। लोकतांत्रिक समाज कानून से चलता है। कानून को स्पष्ट होना चाहिए। ताकि जब इसके कार्यान्वयन की बात आए तो समय और संसाधनों की बचत हो सके। प्रारूपकारों से कानूनों का मसौदा तैयार करते समय सावधान रहने का आग्रह करते हुए, उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि प्रारूपकारों को विधायी प्रारूपण संबंधी अपने ज्ञान को नियमित रूप से अद्यतन करते रहना चाहिए । उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि विधानों की भाषा सरल और स्पष्ट हो। प्रारूपकारों को संवैधानिक प्रावधानों के साथ-साथ समसामयिक मुद्दों से परिचित होने की भी सलाह लोकसभा अध्यक्ष ने दी।