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ज्ञानवापी मामले में अदालत ने जदुनाथ सरकार के साक्ष्यों को माना प्रमाण, जानें कौन है मशहूर इतिहासकार

शिवकुमार विवेक। काशी विश्वनाथ मंदिर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हाल के फैसले के आने के बाद इतिहासकार जदुनाथ सरकार फिर चर्चा में आ गए हैं। निर्णय में न्यायालय उनके साक्ष्यों का हवाला दिया है। जदुनाथ सरकार देश के नामी-गिरामी इतिहासकार हैं। वर्ष 2020 में उनकी 150 वीं जयंती मनाई गई। उस समय ‘द टेलीग्राफ: ने लिखा था- वह अब एक भुला दिए गए व्यक्ति हैं लेकिन निकट अतीत में एक समय था जब, जैसा कि दीपेश चक्रवर्ती ने उन पर लिखी सर्वश्रेष्ठ पुस्तक ‘द कॉलिंग ऑफ हिस्ट्री ‘सर जदुनाथ एंड हिज अंपायर आफ ट्रुथ’ में लिखा था-जदुनाथ एक ऐसा नाम था जिसे हर शिक्षित भारतीय जानता था। वह सहज रूप से सबसे अधिक सम्मानित भारतीय इतिहासकार थे। हालांकि ‘द टेलीग्राफ अपने झुकाव के अनुसार उनकी आलोचना करने से भी नहीं चूकता। अपने इस लेख में रूद्रगंशु मुखर्जी लिखते हैं कि यदुनाथ सरकार शायद उस लंबी बौद्धिक श्रंखला के अंतिम प्रतिनिधि थे जो 19वीं शताब्दी की शुरुआत में राममोहन राय के साथ शुरू हुई थी जिन्होंने ब्रिटिश शासन को एक उपहार के रूप में स्वीकार किया था। 

जदुनाथ सरकार एकमात्र ऐसे इतिहासकार हैं जिन्होंने औरंगजेब से संबंधित साक्ष्यों को बहुत विशद रूप से पांच खंडों में एकत्र किया है। ये पांच खंड उसके व्यक्तित्व और कृतित्व की कई परतों को खोलते हैं। इनमें औरंगजेब के हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ने की नीति काफी बहुत स्पष्ट खुलासा किया गया है। इन्हीं साक्ष्यों को काशी ज्ञानवापी मामले का आधार बनाया गया। उनकी ये पुस्तकें पुस्तकालयों और पुस्तक विक्रय केंद्रों पर तो उपलब्ध हैं ही, दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने भी अपने पुस्तकालय में ई- पुस्तकों के रूप में इन्हें उपलब्ध कराया है।

ऐसे साक्ष्यों के कारण काशी ज्ञानवापी का मामला अयोध्या जन्मभूमि मामले से अलग है। जन्मभूमि मामले में ऐसे दस्तावेजी सबूत कम थे जबकि काशी ज्ञानवापी के मामले में औरंगजेब के समकालीन साक्ष्य की उपलब्धता है और ऐसे ही साक्ष्यों को जदुनाथ सरकार सामने लाए। राम मंदिर के विध्वंस का कोई समकालीन लिखित रिकॉर्ड नहीं था। 2 अप्रैल 1528 की बाबर की डायरी के कुछ पन्ने उपलब्ध थे‌।जिस दिन वह अयोध्या में दाखिल हुआ, उसका कोई रिकॉर्ड नहीं था उसकी डायरी सितंबर 1528 में फिर से शुरू हुई। उस समय तक बाबर पहले ही अयोध्या छोड़ चुका था। कुछ पुरालेख साक्ष्य और यहां तक कि यात्रियों के 17वीं शताब्दी के वृतांत उपलब्ध थे। विशेष रूप से एक ऑस्ट्रियाई पुजारी जोसेफ टिफिनथ्रेलर द्वारा छोड़ा गया रिकॉर्ड, जब उसने 1770 में अयोध्या का दौरा किया था। 

 औरंगजेब का उनका इतिहास और वास्तव में उनकी अन्य सभी प्रमुख पुस्तक बहुत ही ठोस और स्पष्ट आख्यानों में अंतर्निहित हैं। उन्होंने औरंगजेब की त्रासदी को मानवीय कारकों और नियति के बीच संघर्ष के भीतर स्थित पाया। 

जदुनाथ ने औरंगजेब के बारे में अपने इतिहास के पांचवी और अंतिम खंड के आरंभ में इन साक्ष्यों का उल्लेख किया है। जदुनाथ ने दशनाम संन्यासियों का इतिहास भी लिखा है जिसमें बताया गया है कि किस तरह इस अखाड़े के संन्यासियों ने विश्वनाथ मंदिर को बचाने के लिए औरंगजेब से संघर्ष किया था। उन्होंने लिखा था-‘ मैं इस बात की चिंता नहीं करता कि सत्य प्रिय है या अप्रिय और आधुनिक घटनाक्रम से सामंजस्य रखता है या नहीं। यदि आवश्यकता हुई तो मैं अपने मित्रों और समाज के उपहास एवं आलोचना को सत्य का उपदेश देने के लिए धैर्यपूर्वक सहन करूंगा लेकिन फिर भी मैं सत्य अन्वेषण करूंगा। डब्ल्यू एच मोरलैंड के जन्म लेने के 2 वर्ष बाद जन्म लेने वाले जदुनाथ सरकार भी मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन के एक प्रसिद्ध इतिहासकार हैं। उन्होंने औरंगजेब, मुगल साम्राज्य के पतन, मुगल प्रशासन एवं शिवाजी को अपने लेखन का केंद्र बनाया। उनके जीवनीकार लिखते हैं- साहित्य के एक उत्सुक छात्र के रूप में सरकार औरंगजेब के शासनकाल की ओर आकर्षित हुए क्योंकि इसमें एक गहन और नाटकीय त्रासदी के तत्व शामिल थे। सरकार ने भी मोरलैंड के समान मध्यकालीन भारतीय इतिहास के लेखन हेतु अथक परिश्रम एवं शोध कार्य संपन्न किया । मोरलैंड की तरह उन्होंने भी अपने इतिहास लेखन हेतु कई भाषाएं सीखीं। इरफान हबीब ने यदि मोरलैंड के कार्य को आगे बढ़ाया तो आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव को सरकार के काम को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।

 उनका जन्म 10 दिसंबर 1870 को पूर्वी बंगाल में हुआ था ।1898 में वह कोलकाता में अंग्रेजी के प्रोफेसर बने और 1899 से 1901 तक पटना कॉलेज के इतिहास विभाग से जुड़े रहे। 1901 में उनका शोध कार्य ‘इंडिया आफ औरंगज़ेब’ प्रकाशित हुआ। 1917 से 1919 तक वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। बाद में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए। 1901 में 9 वर्ष के गहन शोध के पश्चात उनके शोध कृति ‘इंडिया आफ औरंगज़ेब’ आई और 24 वर्ष के गहन शोध एवं अथक परिश्रम के उपरांत पांच खंडों में हिस्ट्री आफ औरंगज़ेब प्रकाशित हुई 1919 में उनकी कृति ‘शिवाजी एंड हिज टाइम्स’ प्रकाशित हुई। औरंगजेब सहित अन्य विषयों पर उनके कार्यों की प्रमाणिकता इससे पता चलती है कि उन्होंने अपने लेखन में सामाजिक इतिहास के अलावा फारसी में उपलब्ध सैकड़ो अखबारों का भी अवलोकन किया। मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर उनका कार्य भागीरथी प्रयास माना गया है। हेनरी बेवरेज ने उन्हें बंगाली गिब्बन की उपाधि देते हुए लिखा है कि सरकार के समस्त ग्रंथ उत्तम हैं। कदाचित सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘शिवाजी और हिज टाइम’ है। औरंगजेब के कार्यों के लिए मुस्लिम समाज का कोपभाजन भी बनना पड़ा। जदुनाथ सरकार ने औरंगजेब के व्यक्तित्व और कृतित्व का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया है। उन्होंने उसके बारे में लिखा है कि अपनी असलियत छिपाने के लिए उसने मजहब का सहारा लिया। जनता की निगाह में इज्जत पाने के लिए यह जरूरी था कि वह इस्लाम के कट्टर समर्थक का बाना बनाए और दिखाएं कि खुदा की मर्जी से बाध्य होकर और आधे मन से वह धार्मिक सुधार का काम पूरा कर रहा है। ऑड्रे ट्रुश्के लिखते हैं- औरंगजेब ने 1669 में बनारस विश्वनाथ मंदिर का बड़ा हिस्सा ढहा दिया था। मंदिर का निर्माण अकबर के शासनकाल के दौरान राजा मानसिंह ने करवाया था, जो जय सिंह के पड़पोते हैं। कई लोगों का मानना ​​है कि उन्होंने 1666 में शिवाजी और उनके बेटे संभाजी को मुगल दरबार से भागने में मदद की थी। 1670 में औरंगजेब ने वीर सिंह बुंदेला द्वारा मथुरा में निर्मित केशव देव मंदिर को तुड़वा दिया। बाद के वर्षों में औरंगजेब ने इसी तरह के कारणों से जोधपुर, खंडेला और अन्य जगहों पर मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। विश्वनाथ और केशवदेव दोनों मंदिरों के पूर्व किनारों पर मस्जिदें बनाई गई थीं। इनके अलावा कई विदेशी इतिहासकारों जैसे कोएनार्ड एल्स्ट, हेनरी एम इलियट आदि ने इन परिघटनाओं का उल्लेख किया है।

वाराणसी में औरंगजेब द्वारा विश्वनाथ मंदिर के विनाश के साक्ष्य साकी मुस्ताद खान द्वारा फारसी में लिखित मासीर ए आलमगिरी मैं उल्लिखित है जिसका अनुवाद यदुनाथ सरकार ने ही किया था। किताब के अनुसार औरंगजेब को पता चला कि बनारस में काफिरों द्वारा अपनी झूठी पुस्तकों से शिक्षा दी जा रही है जिसे पढ़ने ब्राह्मण सहित मुस्लिम छात्र भी यहां पहुंच रहे हैं। इसके बाद इस्लाम को स्थापित करने के लिए औरंगजेब सभी प्रांतो के मुखियाओं को काफिरों के स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश देते हैं और इन काफिरों की धर्म की शिक्षाओं और शिक्षा के ढांचे को पूरी तत्परता से गिरने का आदेश देते हैं। 2 सितंबर 1669 को यह बताया गया कि सम्राट के आदेश के अनुसार उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। किताबों की श्रंखला में तीसरी किताब दिल्ली उत्तर प्रदेश राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात महाराष्ट्र के मंदिरों के गिराने का विवरण देती है। 

साकी मुस्ताद खान ने 2 सितंबर 1669 को अपनी प्रविष्टि में लिखा की खबर अदालत तक पहुंच गई है की सम्राट के आदेश के अनुसार उनके अधिकारियों ने बनारस में विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया है। औरंगजेब ने 1658-59 में अपने पिता शाहजहां को कैद करने और अपने भाई दारा शिकोह की हत्या करने के बाद गद्दी संभाली थी। मासीर ए आलमगिरी में 1668-69 से लेकर 1707 में औरंगजेब की मृत्यु तक लगभग 5 दशकों का वर्णन है।

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