सुप्रीम कोर्ट ने कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली अरविंद केजरीवाल की याचिका पर शुक्रवार (10 मई) को अपना फैसला सुनाया और उन्हें अंतरिम जमानत दे दी। शीर्ष अदालत के फैसले से केजरीवाल तिहाड़ जेल से बाहर निकल सकेंगे और मौजूदा लोकसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी और विपक्षी सहयोगियों के लिए प्रचार कर सकेंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मौजूदा लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अंतरिम जमानत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
राष्ट्रीय राजधानी में आम चुनाव के छठे चरण में 25 मई को मतदान होगा जिसमें आप 4 सीटों पर जबकि कांग्रेस 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। केजरीवाल को मतदान की आखिरी तारीख 1 जून तक अंतरिम जमानत दी गई है और उन्हें 2 जून को आत्मसमर्पण करना होगा।
आपको बता दें, केजरीवाल को इस साल 21 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत के तहत तिहाड़ की सलाखों के पीछे हैं। 7 मई को पीठ ने जिसमें न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता भी शामिल थे, केजरीवाल को अंतरिम जमानत पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ केजरीवाल को मौजूदा आम चुनावों में प्रचार करने में सक्षम बनाने के लिए अंतरिम जमानत देने पर आदेश सुनाए बिना उठ गई थी। केजरीवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी और ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया गया। जिसके बाद आज अदालत ने सुनवाई करते हुए सीएम केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दे दी है।
अंतरिम जमानत देते हुए कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”हमें कोई आम रेखा नहीं खींचनी चाहिए। उन्हें मार्च में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें पहले या बाद में भी गिरफ्तार किया जा सकता था। अब 21 दिन इधर-उधर होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। 2 जून को सरेंडर करेंगे अरविंद केजरीवाल।
केजरीवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 5 जून तक अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए, जिससे अदालत ने इनकार कर दिया। एसजी तुषार मेहता ने अंतरिम जमानत देते समय अदालत से सख्त शर्तें लगाने का आग्रह किया। एसजी ने कहा, कड़ी शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी जानी चाहिए। उन्हें मामले के बारे में बात नहीं करनी चाहिए।
केजरीवाल की गिरफ़्तारी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 9 अप्रैल को केजरीवाल की गिरफ्तारी को बरकरार रखते हुए कहा था कि इसमें कोई अवैधता नहीं थी और बार-बार समन जारी करने और जांच में शामिल होने से इनकार करने के बाद ईडी के पास “थोड़ा विकल्प” बचा था। यह मामला 2021-22 के लिए दिल्ली सरकार की अब समाप्त हो चुकी उत्पाद शुल्क नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित है।