कर्नाटक में चार दिन बाद भी मुख्यमंत्री पद का फैसला नहीं हो सका है। आलाकमान पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारामैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच रस्साकशी चल रही है। दोनों दिल्ली में हैं और सत्ता की साझेदारी के दिन भर में कई फार्मूले उनके सामने रखे गए किंतु एक मानता है तो दूसरा अड़ता है। शिवकुमार की मांग है कि या तो उन्हें सब कुछ दीजिए वरना कुछ नहीं दीजिए। आलाकमान का पलड़ा सिद्धारामैया के पक्ष में झुका रहा।
दिल्ली में दोनों नेताओं ने राहुल गांधी से मुलाकात की। राहुल के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों के बीच सुलह का रास्ता निकालने में जुटे रहे। शिवकुमार ने अपने भाई और लोकसभा सांसद डी.के. सुरेश के साथ शाम को खरगे से करीब चालीस मिनट तक मुलाकात की। शिवकुमार के खरगे के आवास छोड़ने के बाद, सिद्धारमैया ने कांग्रेस अध्यक्ष से भी मुलाकात की।
पर समझा जाता है कि डीके न तो सिद्धारामैया के बाद आधे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव स्वीकार कर रहे हैं और न ही उपमुख्यमंत्री का पद। कांग्रेस उनके बराबर दो और उपमुख्यमंत्री मुसलमान व अन्य समुदाय के लिए बनाना चाहती है। सूत्रों का दावा है कि पर्यवेक्षक सुशील कुमार शिंदे, जितेंद्र सिंह और दीपक बाबरिया के बाद अधिकतर विधायकों ने शीर्ष पद के लिए सिद्धारमैया को पसंद किया। अंतिम फैसला लेने से पहले उनके कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से परामर्श करने की संभावना है। अधिक संभावना बेंगलुरु में निर्णय घोषित किए जाने की है। कांग्रेस गुरुवार तक शपथ ग्रहण समारोह कराना चाहती है। सिद्धारमैया को राहुल गांधी और वेणुगोपाल पसंद करते हैं, तो शिवकुमार सोनिया गांधी के साथ अच्छे रिश्ते रखते हैं।
मप्र, छग और राजस्थान की छाया
मप्र का सबकः मप्र में 2018 में कांग्रेस की सत्ता के दो दावेदारों कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच तालमेल नहीं हो सका। इस दौरान भी यह फार्मूला रखा गया कि दोनों के बीच सत्ता की साझेदारी कर दी जाए। पर कमलनाथ ने अपनी उम्र का वास्ता देकर मुख्यमंत्री पद पा लिया। ज्योतिरादित्य इंतजार करने के लिए तैयार नहीं थे। उपेक्षा से दुखी थे।
छग में साझेदारी का धोखाः छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भूपेश बघेल व टीएस सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का समझौता कराया गया था लेकिन भूपेश बघेल ने गद्दी छोड़ने से इंकार कर दिया। सिंहदेव अपने कसबल दिखाकर ही रह गए।
राजस्थान का फार्मूला फेलः राजस्थान में मुख्यमंत्री पद अशोक गेहलोत को मिला तो त्तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया किंतु यह बंटवारा भी कामयाब नहीं हुआ।
समझा जाता है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसके प्रभाव को देखते हुए बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद साझा करने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
शिवकुमार का दावा
शिवकुमार के समर्थकों का कहना है कि यह एक चालबाजी है। कांग्रेस ने उनकी अध्यक्षता में राज्य में इतनी सारी सीटें जीती हैं और लोकसभा चुनावों के लिए अच्छे प्रदर्शन के लिए भी उत्सुक हैं।
सिद्धारामैया का दावा
सिद्धारमैया के समर्थकों का कहना है कि वह एक पुराने योद्धा और एक अनुभवी हैं।