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मध्य प्रदेश के 7 ऐसे भव्य, ऐतिहासिक और खूबसूरत पर्यटल स्थल, जहाँ एक बार दर्शन करके मन हो जायेगा तृप्त

अगर आप भी मध्य प्रदेश के ओम्कारेश्वर में इस्थापित नई आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची मूर्ति के दर्शन करने के लिए मध्य प्रदेश आने की सोच रहे है तो जान लीजिये मध्य प्रदेश कुछ भव्य, प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिरो के बारे जहाँ एक बार जरूर घूमने जाये।

महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन)


महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है।
महाकाल मंदिर का उल्लेख कई प्राचीन भारतीय काव्य ग्रंथों में भी मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार यह मंदिर अत्यंत भव्य एवं भव्य था। इसकी नींव एवं चबूतरा पत्थरों से निर्मित किया गया था। मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका हुआ था। गुप्त काल से पहले मंदिरों पर कोई शिखर नहीं थे। मंदिरों की छतें अधिकतर सपाट होती थीं। संभवतः इसी तथ्य के कारण, रघुवंशम में कालिदास ने इस मंदिर को ‘निकेतन’ के रूप में वर्णित किया था। राजा का महल मंदिर के आसपास था। मेघदूतम् (पूर्व मेघ) के आरंभिक भाग में कालिदास ने महाकाल मंदिर का आकर्षक वर्णन किया है।


ओंकारेश्वर मंदिर (खंडवा)


ओंकारेश्वर के पवित्र शहर में दो प्राचीन मंदिर हैं ओंकारेश्वर एक हिन्दू मंदिर है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। एक ओंकारेश्वर और दूसरा अमरेश्वर या ममलेश्वर, । भगवान शिव को समर्पित, ओंकारेश्वर मंदिर को शिव के 12 प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंग मंदिरों में चौथा माना जाता है। इसके अलावा, केदारेश्वर मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर, नागर घाट, अभय घाट और ओंकार घाट ओंकारेश्वर के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।महा शिवरात्रि ओंकारेश्वर में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जब पूरे द्वीप को रोशनी से सजाया जाता है और कई तीर्थयात्री मंदिर में आते हैं।


कर्ण मठ मंदिर (अमरकंटक)


नर्मदा उद्गम मंदिर के नजदीक, प्राचीन मंदिरों का एक समूह है जिसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किया जाता है। इस परिसर में सबसे बड़ा मंदिर राजा लक्ष्मीकर्ण द्वारा निर्मित कर्ण मंदिर है, जिन्हें त्रिपुरी के कलचुरियों के राजा कर्ण के रूप में भी जाना जाता है। कर्ण मंदिर तीन अलग-अलग मंदिरों का आभास देता है, जो एक ऊंचे मंच पर ट्रेफिल के पत्ते की तरह व्यवस्थित हैं और एक मंडप से जुड़े हुए हैं जो कभी पूरा नहीं हुआ था। यह परिसर का सबसे पुराना मंदिर प्रतीत होता है और काफी हद तक उपेक्षित है।


कन्दारिया महादेव मंदिर (खजुराहो)


खजुराहो के मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है। मंदिर का निर्माणकाल 999 सन् ई मे राजा धंगदेव चंदेल ने करवाया था. है तथा इसकी लंबाई १०२’, चौड़ाई ६६’ और ऊँचाई १०१’ है। स्थानीय मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।


मंदिर का प्रवेश द्वार पंचायतन शैली का बना हुआ है। इस पर विषाणयुक्त और समुज्जवल देवताओं और संगीतज्ञों इत्यादि से अलंकृत तोरण तथा भव्य ज्यतोरण देखने योग्य हैं। मंदिर की जंघा पर मंडप और मुखमंडप के बाहरी भाग के कक्षासन्न पर राजसेना, वेदिका कलक, आसन्नपट्ट, कक्षासन्न है। मंदिर का छत कपोत भाग से शुरु होता है तथा व्रंदिका से छत को उठाता गया है।मुख्यमंडप चार भद्रक- स्तंभों पर बनाया गया है। इसका ऊपरी आधा भाग आसन्न प के ऊपर है तथा नीचे का आधा भाग आसन्नप के नीचे स्थित है। इस भाग को कमलों से सजाया गया है।


ताज-उल-मस्जिद (भोपाल)


ताज-उल मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। मध्यप्रदेश का भोपाल शहर झीलों का शहर कहा जाता है, लेकिन यहां स्थित ताज-उल मस्जिद मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। ताज-उल मस्जिद भोपाल के मोतिया तालाब के पास स्थित है। अगर आप भोपाल जाएं, तो ताज-उल मस्जिद जाए बिना आपके भोपाल का सफर अधूरा है। ताज-उल का अर्थ है “मस्जिदों का ताज”। देखने में ये मस्जिद काफी खूबसरत है और यहां सजे गुंबद वाकई किसी ताज से कम नहीं दिखते। । इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल के आठवें शासक शाहजहांँ बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में यह मस्जिद पूरी तरह से बनकर तैयार हो सकी।


सांची स्तूप (सांची)


सांची रायसेन जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यहां स्थित सांची स्तूप पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं।यह एक बौद्ध स्मारक है। सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था।[1] बाद में इस सांची के स्तूप को सम्राट अग्निमित्र शुंग जीर्णोद्धार करके और बड़ा और विशाल बना दिया । इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था


भरत मिलाप मंदिर(चित्रकूट)


इस मंदिर को उस स्थान के रूप में जाना जाता है जहां भरत ने भगवान राम से उनके वनवास के दौरान मुलाकात की और उन्हें अयोध्या लौटने और राज्य पर शासन करने के लिए मनाया। किंवदंतियों का कहना है कि दोनों भाइयों की मुलाकात इतनी भावभीनी थी कि इससे चित्रकूट की चट्टानों और पहाड़ों तक के आँसू बह निकले। कई चमत्कारों की पहाड़ी के रूप में जानी जाने वाली इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान राम और उनके भाइयों के पैरों के निशान हैं, जो आज भी प्रतिवर्ष हजारों भक्तों द्वारा देखे और पूजे जाते हैं।

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