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जनवरी में 4.7 फीसदी रह सकती है खुदरा महंगाई, जून से सस्ता कर्ज संभव

जरूरी वस्तुओं की कीमतें दिसंबर की तुलना में जनवरी में औसतन एक फीसदी तक घटी हैं।
नई दिल्ली,
जरूरी वस्तुओं के दाम घटने से जनवरी में खुदरा महंगाई घटकर 4.7 फीसदी पर आ सकती है। बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के अनुसार, 20 मुख्य वस्तुओं में से 18 की कीमतें घटी हैं। इसका सीधा असर महंगाई के कम होने पर दिखेगा। हालांकि, फरवरी के अब तक के पांच दिनों में भी कुछ वस्तुओं के भाव में गिरावट दिख रही है।
जरूरी वस्तुओं की कीमतें दिसंबर की तुलना में जनवरी में औसतन एक फीसदी तक घटी हैं। यह सितंबर, 2023 के बाद सबसे ज्यादा गिरावट है। इनमें खासकर सब्जियों के दाम तेजी से घटे हैं। ऊर्जा की कीमतें इस दौरान स्थिर रही हैं। जिन सब्जियों के दाम तेजी से घटे हैं, उनमें आलू प्रमुख रूप से है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सभी तरह के खाद्य तेलों के खुदरा दाम भी जनवरी में घटे हैं। इनके अलावा, दालों की कीमतें भी कम हो रही हैं। वनस्पति तेल के दाम जहां 9.7 फीसदी घटे हैं, वहीं मसूर दाल की कीमतें 0.5 फीसदी घटी हैं। आलू के दाम 1.8 फीसदी तक घट गए हैं।

आगे मुद्रास्फीति के और कम होने की उम्मीद

खाद्य मूल्य वृद्धि में नरमी और तेल की कम कीमतों से आने वाले महीनों में महंगाई और कम हो सकती है। चालू वित्त वर्ष में औसत महंगाई दर 5.4 फीसदी रहने की उम्मीद है। अगले वित्त वर्ष में यह 4.7 फीसदी रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि फरवरी में भी जरूरी वस्तुओं के दाम घट रहे हैं। खासकर सब्जियों पर इसका असर दिख रहा है।

असर…कम हो सकती है किस्त

महंगाई कम होने का असर यह होगा कि आपके कर्ज की किस्त आगे कम हो सकती है। आरबीआई ने लगातार छठीं बार रेपो दर को जस का तस रखा है। ऐसी उम्मीद है कि आम चुनाव के बाद जून से रेपो दर में कटौती का सिलसिला शुरू हो सकता है। जब महंगाई काबू में होगी तो आरबीआई वृद्धि दर पर जोर देगा। इसके लिए ब्याज दरों को घटाने की कवायद करनी होगी। उम्मीद है कि इस साल के अंत तक ब्याज दरें आधा फीसदी तक घट सकती हैं।

छह बार से स्थिर हैं रेपो दर

आरबीआई ने महंगाई को काबू में लाने के लिए एक साल से रेपो दर को 6.5 फीसदी पर यथावत रखा है। लगातार छठी बार इसने दरों को जस का तस रखा है। चूंकि आम चुनाव हैं, इसलिए अप्रैल में भी दरों को जस का तस रखे जाने की उम्मीद है। जून में दरें घट सकती हैं क्योंकि जुलाई में बजट है। कोरोना से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार दरों को घटाने का सिलसिला शुरू किया था, हालांकि बाद में महंगाई की उच्च दरों को काबू में लाने के लिए रेपो दर में 2.5 फीसदी तक की बढ़ोतरी की गई थी।

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