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- केंद्रीय अध्यादेश के मुद्दे पर लंबे समय से केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी चल रही है।
- आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों से समर्थन भी जुटाने की कोशिश कर रही है।
नई दिल्ली, दिल्ली में प्रशासकों पर नियंत्रण के लिए लाए गए केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। बता दें कि दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को केंद्रीय अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करेगा। बता दें कि दिल्ली सरकार ने अध्यादेश आने के तुरंत बाद ही कह दिया था कि वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। केंद्र सरकार के अध्यादेश के तहत दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर और तैनाती से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का हक उपराज्यपाल को दिया गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 के तहत दिल्ली में सेवा देने वाले दानिक्स कैडर के ग्रुप ए के अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण गठित होगा।
अध्यादेश के तहत किया गया प्राधिकरण का गठन
इस प्राधिकरण के तीन सदस्य होंगे। जिनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली के गृह प्रधान सचिव होंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री को इस प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया है। बता दें कि दानिक्स कैडर में दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विस के अधिकारी शामिल किए जाते हैं। हालांकि अधिकारियों के तबादले और तैनाती का आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अध्यादेश लाई थी सरकार
बता दें कि दिल्ली की आप सरकार आरोप लगाती रही है कि केंद्र सरकार एलजी के माध्यम से उसे काम नहीं करने दे रही है। आप सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। जहां सुप्रीम कोर्ट ने बीती 11 मई को दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला दिया और साफ किया था कि दिल्ली सरकार ही दिल्ली के नौकरशाहों के तबादले और उनकी तैनाती कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आम आदमी पार्टी ने अपनी जीत बताया था लेकिन उनकी ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रही क्योंकि केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 ले आई।