38
- अंधाधुंध निर्माण पर निगरानी बरतने और जरूरत पड़ने पर अंकुश लगाने के लिए भी कहा है।
- मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में लगातार प्रदूषण बढ़ता बहुत खतरनाक संकेत है।
नई दिल्ली । दिल्ली और एनसीआर की फिजा में जितनी जहरीली हवा के कण घूम रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक कण देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में मौजूद हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो अगर ऐसी ही परिस्थितियां लगातार बनी रहीं, तो तटीय इलाकों के शहरों में दिल्ली एनसीआर से ज्यादा खतरनाक हालात पैदा हो सकते हैं। फिलहाल केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड समेत इस दिशा में काम करने वाली तमाम एजेंसियों ने इन शहरों के लिए न सिर्फ चेतावनी जारी की है, बल्कि ऐसे इलाकों में हो रहे अंधाधुंध निर्माण पर निगरानी बरतने और जरूरत पड़ने पर अंकुश लगाने के लिए भी कहा है। बीते कुछ दिनों में मुंबई जैसे महानगरों में वायु की गुणवत्ता सबसे खराब की श्रेणी में पहुंच चुकी है। बीते कुछ दिनों से जिस तरीके से दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है, ठीक इसी तरीके से समुद्री इलाकों में बसे शहरों में भी एक्यूआई लेवल ‘वेरी पुअर’ की श्रेणी में पहुंच चुका है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में भी वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एयर पॉल्यूशन कंट्रोल यूनिट के प्रमुख कार्यक्रम प्रबंधक विवेक चट्टोपाध्याय कहते हैं कि मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में लगातार प्रदूषण बढ़ता बहुत खतरनाक संकेत है। इसके पीछे का तर्क देते हुए वह कहते हैं कि मुंबई में एयर क्वालिटी इंडेक्स 350 के करीब पहुंच चुका है, जो कि आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है। वह कहते हैं कि यह चिंता की बात इसलिए सबसे ज्यादा है क्योंकि समुद्र के किनारे बसे शहरों और राज्यों को इस बात का हमेशा से अंदाजा रहा है कि समुद्री हवाओं के चलते इन शहरों में प्रदूषण कम होता है। लेकिन जिस तरह से लगातार शहरों में निर्माण और वाहनों की संख्या बढ़ रही है, उससे यहां की समुद्री हवाएं इन शहरों के प्रदूषण को खत्म नहीं कर पा रही हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अपने आंकलन के मुताबिक मुंबई की हवा में सबसे जहरीले कण पीएम-1 दिल्ली की तुलना में ज्यादा पाए गए। वह कहते हैं कि दिल्ली में पीएम 2.5 ज्यादा है जबकि उससे भी महीन कण जो कि सीधे रक्त की कणिकाओं में जाते हैं वह पीएम-1 मुंबई में ज्यादा हैं। इसके पीछे का कारण बताते हुए विवेक चट्टोपाध्याय कहते हैं कि मुंबई में जिस तरह से ऊंची-ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं उससे समुद्र की ओर से बहने वाली हवाओ में अवरोध पैदा हो रहा है और इन ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों के बीच में “कैन्यान इफेक्ट” बन जाता है। जिसके चलते प्रदूषण के कण शहर में ही मौजूद रहते हैं और हवाएं भी बेअसर हो जाती हैं। वह कहते हैं कि मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों में शुरुआती दौर से यह माना जाता रहा है कि यहां की हवाएं शहर के प्रदूषण को खत्म कर देती हैं, लेकिन अब यह ट्रेंड बदल रहा है। बीते कुछ समय से इन शहरों की एक्यूआई प्रभावित हो रही है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने भी समुद्री किनारों पर बसे शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण पर चिंता जताई है। बोर्ड के वैज्ञानिकों के मुताबिक इन शहरों के लिए भी बाकायदा गाइडलाइंस जारी की गई है और राज्यों को कड़े कदम उठाने के लिए कहा गया है। सीपीसीबी के मुताबिक इन राज्यों में समय-समय पर अस्पतालों के बीच से रेस्पिरेटरी डाटा इकट्ठा करने और पब्लिक हेल्थ प्रोटक्शन प्लान के मुताबिक रणनीति बनाने के लिए निर्देश दिए गए हैं। सीसीबी के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यह निर्देश सिर्फ महाराष्ट्र के लिए नहीं बल्कि उन सभी समुद्री किनारों पर बसे हुए शहरों और राज्यों की जिम्मेदार अथॉरिटी को दिए गए हैं, जहां पर यह पहले से माना जाता रहा है कि समुद्री हवाओं से प्रदूषण कम होता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के एयर पॉल्यूशन कंट्रोल यूनिट के प्रिंसिपल प्रोग्राम मैनेजर विवेक चट्टोपाध्याय कहते हैं कि अब यह तथ्य सही नहीं है कि समुद्र के इलाकों में प्रदूषण नहीं होता।