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चीन सीमा के पास एकाएक गरजीं भारतीय सेना की ‘बड़ी तोपें’, बरसाने लगीं गोले

  • भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी युद्ध अभ्यास में बड़े स्तर पर हथियारों को शामिल किया है.
  • सेना अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग जिलों में एक गोलीबारी की ट्रेनिंग अभ्यास कर रही है.
    नई दिल्ली
    . पिछले काफी लंबे समय से भारत-चीन के बीच तनाव का माहौल बना हुआ है. ग्लवान हिंसा के बाद से एक बार फिर सीमा विवाद को लेकर दोनों देश लगातार आमने-सामने हैं. इस बीच भारत चीन को बड़ा झटका देने की तैयारी कर रहा है. इसी कड़ी में भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी युद्ध अभ्यास में बड़े स्तर पर हथियारों को शामिल किया है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सेना अरुणाचल प्रदेश के तवांग और पश्चिम कामेंग जिलों में एक गोलीबारी की ट्रेनिंग अभ्यास कर रही है. इस अभ्यास को बुलंद भारत का नाम दिया गया है. सेना ने कई भारी हथियारों का इस्तेमाल किया. इसमें 155 मिमी बोफोर्स होवित्जर, 105 मिमी फील्ड गन और 120 मिमी मोर्टार भी शामिल है. बता दें कि पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ सैन्य टकराव बढ़ता जा रहा है. ऐसे में चीन की तरफ से घुसपैठ को रोकने के लिए एलएसी पर कई शक्तिशाली हथियारों को तैनात किया गया है. इनमें पुरानी 105 एमएम फील्ड गन, बोफोर्स, उन्नत धनुष, शारंग गन, पिनाका और स्मर्च मल्टी रॉकेट सिस्टम, नए एम-77 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर और विंटराइज्ड के 9 सेल्फ प्रोपेल्ड ट्रैक्ड गन शामिल हैं. चीन ने सिक्किम-अरुणाचल प्रदेश सीमा पर भी अपनी हरकतें तेज कर दी हैं, जिसके परिणामस्वरूप 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर के यांग्त्से में प्रतिद्वंद्वी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी. सेना और भारतीय वायुसेना युद्ध की तैयारी का परीक्षण करने के लिए कई अभ्यास कर रही है. सूत्रों ने कहा कि बुलंद भारत अभ्यास में विशेष बलों, उड्डयन तत्वों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के साथ कोऑर्डिनेशन में तोपखाने और पैदल सेना की निगरानी और मारक क्षमता का “तालमेलपूर्ण अनुप्रयोग” शामिल था. रणनीतिक तौर पर कमजोर सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर विशेष ध्यान देने के साथ भारत ने इस क्षेत्र में आक्रामक और साथ ही रक्षात्मक क्षमताओं को मजबूत किया है. पिछले महीने ही सेना और भारतीय वायुसेना ने विशेष बलों के मल्टी-मोड रैपिड इंसर्शन के साथ-साथ विशेष रूप से नामित और सुसज्जित इकाइयों के पूर्वी थिएटर में सी-17 ग्लोबमास्टर-III के साथ-साथ चिनूक जैसे रणनीतिक एयरलिफ्टों द्वारा भी अभ्यास किया गया था.

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