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- भारतीय वैज्ञानिक सहित अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में होने वाली ध्वनि की खोज की है.
- वैज्ञानिकों ने बताया है कि ब्रह्मांड में होने वाली आवाज किसी रेस्टोरेंट के शोरगुल जैसी है.
नई दिल्ली. करीब 15 साल तक के आंकड़े जुटाने के बाद भारत सहित कई देशों के वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्मांड में गूंजने वाली आवाज को लेकर बड़ा खुलासा किया गया है. ब्रह्मांड में गूंजने वाली ‘हम्म्म्म’ की आवाज को लेकर वैज्ञानिकों के पुष्टि की है कि ये ध्वनि ब्रह्मांड में हमेशा गूंजती रहती है. इसे सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे कि आप किसी बहुत शोरगुल वाली जगह पर बैठे हों. वैज्ञानिकों ने बताया है कि ये आवाज ग्रैविटेशनल वेव यानी कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों की वजह से निकलती है. भारत, अमेरिका, यूरोप, चीन और ऑस्ट्रेलिया के साइंटिस्टों को रेडियो टेलिस्कोप के जरिये इस बात का सबूत मिला है. हालांकि पहले ये दावा किया जाता था कि ब्रह्मांड में कोई आवाज नहीं होती है.
गैस के चलते अंतरिक्ष में ट्रैवल करते हैं साउंड वेव
इससे पूर्व नासा ने भी कहा था कि यह मानना गलत है कि अंतरिक्ष में कोई आवाज नहीं होती है. क्योंकि आकाशगंगा खाली है, जिससे साउंड वेव को ट्रैवल करने का कोई रास्ता नहीं मिलता. ये आवाज एक कंपन है. आवाज की खोज किये वैज्ञानिकों का कहना है कि अंतरिक्ष में कई जगह पर गैस हैं, जिनके चलते साउंड वेव घूमती रहती हैं. साल 2022 के अगस्त महीने में नासा ने पर्सियस आकाश गंगा समूह के केंद्र में एक बड़े ब्लैक होल की ध्वनि को खोजा था. नासा ने इस ब्लैक होल से निकलने वाली ध्वनि को दुनिया के समक्ष जारी किया था.
साइंटिस्ट अल्वर्ट आइंसटीन ने भी की थी ब्रह्मांड की आवाज की घोषणा
खगोलविदों द्वारा खोजी गई ब्रह्मांड की आवाज की तुलना अल्वर्ट आइंसटीन की एक घोषणा से की गई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि गुरुत्वाकर्षण तरंगों जैसी एक अन्य ध्वनि ब्रह्मांड में मौजूद है. नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा संचालित, पुणे में स्थित भारत का विशाल मेट्रोवेव रेडियो टेलीस्कोप दुनिया के छह सबसे बड़े रेडियो टेलीस्कोपों में से एक था, जिसने नैनो-हर्ट्ज गुरुत्वाकर्षण तरंगों की इस खोज का मार्ग प्रशस्त किया.
गुरुत्वाकर्षण तरंगों की पहली खोज के आठ साल बाद खोजी गई आवाज
यह बड़ी घोषणा गुरुत्वाकर्षण तरंगों की पहली खोज के आठ साल बाद आई है, जिसे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक सदी पहले प्रस्तावित किया था. गुरुवार को प्रकाशित दो अलग-अलग अध्ययनों में, भारतीय पल्सर टाइमिंग एरे (आईएनपीटीए) और यूरोपीय पल्सर टाइमिंग एरे (ईपीटीए) का प्रतिनिधित्व करने वाले रेडियो खगोलविदों ने साझा किया कि इन पल्सर से निकलने वाले संकेतों में एक समय विचलन देखा गया था. कुल मिलाकर, दुनिया के छह सबसे शक्तिशाली और बड़े रेडियो टेलीस्कोप – यूजीएमआरटी, वेस्टरबर्क सिंथेसिस रेडियो टेलीस्कोप, एफ़ल्सबर्ग रेडियो टेलीस्कोप, लोवेल टेलीस्कोप, नानके रेडियो टेलीस्कोप और सार्डिनिया रेडियो टेलीस्कोप शामिल थे.