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- ग्लेशियर की सतह के सीधे संपर्क में आने वाली हवा के बीच तापमान में अंतर बढ़ जाता है।
- ग्लेशियर की सतह पर तापमान में वृद्धि होती है और सतह के वायु द्रव्यमान में ठंडक बढ़ जाती है।
नई दिल्ली । हिमालय के ग्लेशियर खुद को बचाए रखने के लिए भारी संघर्ष कर रहे हैं। दुनिया भर में बढ़ते तापमान ने हिमालय के ग्लेशियरों को बर्फ की सतह के संपर्क में आने वाली हवा को तेजी से ठंडा करने के लिए मजबूर किया है। आने वाली ठंडी हवाएं ग्लेशियरों को ठंडा करने और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में मदद करती हैं। हिमालय दुनिया की कई सबसे ऊंची चोटियों का घर है। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, भूटान और नेपाल से गुजरते हुए, भूगोल का यह अविश्वसनीय विस्तार एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और पारिस्थितिक स्थान है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन से क्षेत्र को खतरा है और फौरीतौर पर जो दिख रहा है उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं। इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रिया (आईएसटीए) के प्रोफेसर फ्रांसेस्का पेलिसियोटी की अगुवाई में शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने यह अध्ययन किया है। इस शोध को नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित किया गया है।
ग्लोबल वार्मिंग के बावजूद ऐसे ठंडे रहते हैं ग्लेशियर
ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर के ऊपर गर्म वातावरणीय हवा और ग्लेशियर की सतह के सीधे संपर्क में आने वाली हवा के बीच तापमान में अंतर बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार इससे ग्लेशियर की सतह पर तापमान में वृद्धि होती है और सतह के वायु द्रव्यमान में ठंडक बढ़ जाती है। जिसके कारण, ठंडी और शुष्क सतह की हवा सघन हो जाती है और ढलानों से नीचे घाटियों में बहती है। इस वजह से ग्लेशियरों के निचले हिस्से और आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र ठंडे हो जाते हैं।
बचाने का अभी भी मौका
शोधकर्ताओं की टीम इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि कौन से ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए सकारात्मक (शीतलन) प्रतिक्रिया कर सकते हैं और कितने समय तक यह जारी रहती है। एशिया में विशाल मात्रा में बर्फ हैं और इनका प्रतिक्रिया करने का समय लंबा है। इसलिए शोधकर्ताओं को विश्वास है कि हमारे पास अभी भी ग्लेशियरों को बचाने का मौका है। शोधकर्ताओं के अनुसार हिमालय की स्थिति अधिक खराब है। एक अध्ययन में पाया कि यदि कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं की गई तो हिंदूकुश-हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र के लगभग दो-तिहाई ग्लेशियर गायब हो सकते हैं।