सांस्कृतिक संध्या के अंतर्गत शहीद भवन में नृत्य नाटिका, संगीत व नाट्य प्रस्तुति
भोपाल। शहीद भवन में मंगलवार को पीपल्स थियेटर ग्र्रुप द्वारा नाटक वीरांगना झलकारी का मंचन किया गया। यह नाटक 45 दिवसीय ग्र्रीष्म रंगमंच कार्यशाला में तैयार किया गया है, जिसमें 55 कलाकारों ने अभिनय का प्रदर्शन किया। खास बात यह रही कि नाट्य प्रस्तुति में पहली बार 40 नन्हे कलाकारों ने पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी। सिन्धु धौलपुरे द्वारा निर्देशित इस नाटक का लेखन ईलाशंकर गुहा द्वारा किया गया हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत मोहित सोनी द्वारा निर्देशित नृत्य नाटिका पार्वती नंदन से हुई। इसके बाद संगीतज्ञ सुरेंद्र वानखेड़े के निर्देशन में आजादी के तराने रंग संगीत कि प्रस्तुति दी गई। इसमें स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित क्रांतिकारियों द्वारा लिखित नज़्में व कविताओं को सुनाया गया।
रानी लक्ष्मीबाई को बचाने अंग्रेज सेना को भ्रम में डाला
कहानी झलकारी बाई के जन्म से शुरु होती हैं। जहां पर नट और नटी हरबोले के साथ झलकारी बाई कि वीरता की गाथा सुना रहें होते हैं। झलकारी बाई जब कम उम्र की थीं तभी मां की मृत्यु हो गई थी। उनके पिता ने उन्हें एक पुत्र की तरह पाला और उन्हें घुड़सवारी, तीर चलाना, तलवार बाजी जैसे सभी युद्ध कौशल पारंगत किया। झलकारी जितनी बहादुर थी, उतने ही बहादुर सैनिक झांसी के पूरन कोरी से उनका विवाह हुआ।
वहीं जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी की बहादुरी के किस्से सुने तो झलकारी को तुरंत ही रानी दुर्गा महिला सेना में शामिल करने का आदेश दे दिया। झलकारी ने यहां बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया। 1857 के विद्रोह के समय जनरल ह्यïूरोज ने अपनी विशाल सेना के साथ झांसी पर आक्रमण किया। रानी ने वीरतापूर्वक अपने सैन्य दल से उस विशाल सेना का सामना किया।
झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई के प्राण बचाने के लिये खुद को रानी बताते हुए लडऩे का निर्णय लिया। उन्होंने पूरी अंग्रेजी सेना को भ्रम में रखा ताकि रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित बाहर निकल सकें।
Heroic and mighty Jhalkari came alive on the stage.