Home » सच्चाई का सामना नहीं कर सका विपक्ष

सच्चाई का सामना नहीं कर सका विपक्ष

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोल रहे थे, तब विपक्ष ने अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन किया। पिछले दिनों में विपक्ष की ओर से जिन मुद्दों को उठाया गया था, उन सब पर जब प्रधानमंत्री मोदी ने सच्चाई को प्रस्तुत करना शुरू किया तो समूचा विपक्ष सदन से बाहर चला गया। जबकि विपक्ष ही हो-हल्ला कर रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी नीट, मणिपुर, संविधान और रोजगार पर चुप्पी साधकर बैठे हैं। सरकार को इन मुद्दों पर जवाब देना चाहिए। हैरानी की बात है कि जब सरकार की ओर से प्रधानमंत्री जवाब दे रहे थे, तब विपक्ष सच सुनने की जगह सदन से बाहर भाग गया। याद हो, बीते दिन लोकसभा में भी विपक्ष ने सभी प्रकार की संसदीय मर्यादाओं का उल्लंघन किया। प्रधानमंत्री जितनी देर बोले, उतनी देर तक लगातार हो-हल्ला मचाया। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी विपक्ष के सांसदों को वेल में जाकर हंगामा करने के लिए उकसा रहे थे, जिस पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें फटकार लगाई थी। राज्यसभा में भी प्रारंभ में विपक्षी सांसदों ने खूब हंगामा किया लेकिन जब वे थक गए तो सदन के बाहर चले गए। विपक्ष का यह व्यवहार बताता है कि उससे रचनात्मक सहयोग की उम्मीद बेमानी है। वह सरकार के साथ टकराव के मूड में है। देखना होगा कि पिछले दस वर्षों में जिस प्रकार विपक्ष ने हंगामा खड़ा करके संसद का समय बर्बाद किया है क्या यही रवैया आगामी पाँच साल भी रहेगा? यदि विपक्ष का यही रवैया रहता है, तो यह बहुत खेदजनक होगा। सत्तापक्ष की ओर से विपक्ष को धैर्यपूर्वक सुना जा रहा है लेकिन विपक्ष अपनी कुंठा को ही प्रदर्शित कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने उपरोक्त मुद्दों के साथ ही भ्रष्टाचार, सीबीआई-ईडी, जम्मू-कश्मीर, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति पर भी खुलकर बोला। संविधान पर भी विपक्ष के विमर्श की कलई खोलने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया। निश्चित ही अपने झूठे विमर्श को हवा में उड़ाता देखकर विपक्ष हताश हुआ होगा। इसलिए अपने पूछे हुए प्रश्नों के जवाब सुनने की जगह सदन से भागना उचित समझा। दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले दस वर्षों में विपक्ष ने उच्च सदन की गरिमा को बहुत निचले स्तर पर पहुँचाने का कार्य किया है। सभापति जगदीप धनखड़ को भी यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि “विपक्ष के लोग सदन को छोड़कर नहीं गए बल्कि मर्यादा छोड़कर गए हैं। वे लोग मुझे नहीं, संविधान को पीठ दिखा रहे हैं। भारत के संविधान के अपमान की इससे बड़ी बात नहीं हो सकती”। सभापति ने उचित ही कहा कि उच्च सदन का दायित्व है कि वह देश के सामने एक आचरण प्रस्तुत करे। लेकिन यह कहने में कोई संकोच नहीं कि पिछले 10 वर्षों में विपक्ष ने उच्च सदन को भी हो-हल्ला का स्थान बना दिया है। यह बौद्धिक विमर्श की पीठ बननी चाहिए। विपक्ष की मानसिकता को देखिए कि उसकी ओर से मणिपुर और नीट पर जवाब तो माँगा गया लेकिन स्वयं ने एक बार भी पश्चिम बंगाल की वैचारिक एवं राजनीतिक हिंसा पर चुप्पी साध रखी है। प्रधानमंत्री मोदी ने पश्चिम बंगाल की हिंसा पर न केवल बोला बल्कि विपक्ष को भी कठघरे में खड़ा किया। नि:संदेह, यदि विपक्ष वाकई संवेदनशील है, तब उसे पश्चिम बंगाल की हिंसा पर भी सदन में सवाल उठाने चाहिए थे लेकिन सुविधा की राजनीति करनेवाली कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखना ही उपयुक्त समझा। प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रख दिया। दरअसल, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की बात जब भी आएगी तब आपातकाल का जिक्र स्वाभाविक ही होगा। हैरानी की बात है कि संविधान हाथ में लेकर माहौल बनानेवाली कांग्रेस आपातकाल के जिक्र से बिदकती क्यों है? कहना होगा कि लोकसभा से लेकर राज्यसभा तक कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष सच्चाई का सामना नहीं कर सका। ‘डरो मत’ का नारा लगानेवाले सच्चाई से डर गए। यदि उनमें धैर्य और साहस होता तब निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी के उत्तर को शांति से सुनते। विपक्ष को यह समझना होगा कि सदन में उसका काम केवल हंगामा खड़ा करना नहीं है। चीखने-चिल्लाने की बजाय रचनात्मक बहस के लिए विपक्ष को आगे आना चाहिए।

Swadesh Bhopal group of newspapers has its editions from Bhopal, Raipur, Bilaspur, Jabalpur and Sagar in madhya pradesh (India). Swadesh.in is news portal and web TV.

@2023 – All Right Reserved. Designed and Developed by Sortd