कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने हिन्दू मंदिरों पर टैक्स लगाकर बता दिया है कि वह धार्मिक आधार पर भेदभाव की अपनी नीति पर काम करती रहेगी। कांग्रेस ने सदैव ही सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दिया है। मुस्लिम और ईसाई समुदाय का तुष्टीकरण और हिन्दू समुदाय के हितों पर कुठराघात, यही सब कांग्रेस के 60 वर्षों से अधिक के शासन में देखने को मिला है। अभी भी जैसे ही कांग्रेस को कहीं सत्ता में बैठने का मौका मिलता है, तो वह इसी नीति का पालन करती है। कांग्रेस के माथे पर लगा ‘हिन्दू विरोधी पार्टी’ का टीका, अकारण नहीं है। स्वयं कांग्रेस अपने आचार-व्यवहार से हिन्दू विरोधी पार्टी की छाप को गहरा करती रहती है क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा करने से अन्य समुदायों के वोट उसकी झोली में आकर गिर जाएंगे। अन्यथा क्या कारण है कि कांग्रेस ने केवल हिन्दू मंदिरों पर ही टैक्स लगाया है? मस्जिद, दरगाह और चर्च की आय पर कांग्रेस सरकार ने टैक्स क्यों नहीं लगाया है? कर्नाटक सरकार के निर्णय की तुलना मुगलिया सल्तनत के जजिया कर से की जा रही है, जिसमें केवल गैर-मुस्लिमों से टैक्स लिया जाता था। केवल हिन्दू मंदिरों से टैक्स वसूलना जजिया कर ही तो कहलाएगा। तथाकथित सेकुलर दृष्टिकोण तो यही कहता है कि यदि सरकार धार्मिक स्थलों की आय पर कर लगाना चाहती है, तो उसे सभी धार्मिक स्थलों को इसके दायरे में लाना चाहिए। लेकिन कांग्रेस की कर्नाटक सरकार ने केवल हिन्दू धर्मस्थलों को निशाना बनाया है। जबकि यही कांग्रेस यह भी कहती है कि मंदिरों के निर्माण में शासकीय धन व्यय नहीं होना चाहिए, तब फिर मंदिरों की आय का सरकार को अन्य कार्यों के लिए क्यों उपयोग करना चाहिए? क्या मंदिरों की आय पर निगाह डालना सेकुलरिज्म के विरुद्ध नहीं है? दूसरी बात यह है कि कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में जिस हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक को पारित किया, उसके अनुसार सरकार केवल मंदिरों की आय का 10 प्रतिशत टैक्स ही नहीं लेगी अपितु मंदिर ट्रस्ट में गैर हिन्दुओं को शामिल करने का निर्णय भी किया गया है। देश की जनता इस मामले में भी यही सवाल पूछ रही है कि कांग्रेस ने मस्जिदों की कमेटियों में गैर-मुस्लिमों और चर्च में गैर-ईसाईयों को शामिल करने का कानून क्यों नहीं बनाया? हिन्दुओं की धार्मिक प्रबंधन की व्यवस्थाओं में ही हस्तक्षेप करने की मानसिकता के कारण क्या हैं? कांग्रेस सरकार हिन्दुओं को लक्षित करने और मुस्लिम एवं ईसाई समुदायों का तुष्टीकरण करने में कभी चूक नहीं करती है। यह सब उसकी योजना का हिस्सा रहता है। स्मरण हो कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार कितनी हिंदू विरोधी है उसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 16 फरवरी, 2024 को राज्य का बजट पेश किया। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए राजस्व घाटे का बजट पेश करने के बावजूद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुलकर अल्पसंख्यकों के धार्मिक कार्यों के लिए पैसा लुटाया। 3.71 लाख रुपये के इस बजट में वक्फ संपत्तियों के लिए 100 करोड़ रुपये और भव्य हज हाउस के लिए 10 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। इसी तरह ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। यानी कांग्रेस सरकार ने अपने बजट में मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लिए 330 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। यह कहना ही होगा कि एक तरफ जहां भाजपा की सरकार मंदिरों का कायाकल्प करने का काम निरंतर कर रही है, वहीं कांग्रेस की कर्नाटक सरकार मंदिरों पर टैक्स लगाने का धर्म विरोधी निर्णय ले रही है। हिन्दू समुदाय को यह प्रश्न सामूहिक रूप से और ताकत के साथ उठाना चाहिए कि यदि मस्जिदों की व्यवस्था मुसलमानों के हाथ में है और चर्च की व्यवस्था ईसाई समाज के हाथ में है, तो मठों और मंदिरों की व्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में क्यों नहीं, उन पर सरकारी नियंत्रण क्यों होना चाहिए? अब समय आ गया है जब हम हिन्दू धर्म स्थानों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराएं। बहरहाल, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार का ‘हिन्दू विरोधी’ निर्णय आनेवाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का बहुत नुकसान करवा सकता है।
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