संविधान की प्रति हाथ में लेकर ‘संविधान हितैषी’ होने का दावा करनेवाले कांग्रेस के नेता संविधान और लोकतंत्र की हत्या के उदाहरण ‘आपातकाल’ के जिक्र से परेशान क्यों हो रहे हैं? यदि सही अर्थों में उन्हें संविधान और लोकतंत्र की चिंता है, तब उन्हें आपातकाल के जिक्र पर नाराज होने की बजाय कहना चाहिए कि आपातकाल जैसी भयंकर गलती किसी को नहीं दोहरानी चाहिए। एक ओर कांग्रेसी नेता यह भी दावा करते हैं कि आपातकाल थोपने के लिए स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश से माफी माँगी थी और राहुल गांधी भी माफी माँग चुके हैं। यदि कांग्रेस मानती है कि आपातकाल संविधान और लोकतंत्र पर हमला था, तब उसकी 50वीं बरसी पर लोकसभा अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव रखने का विरोध क्यों किया जा रहा है? नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मिलकर आपातकाल पर प्रस्ताव लाने का विरोध किया है। इसी प्रकार, जब राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने अपने अभिभाषण में आपातकाल का जिक्र किया, तो उसके बाद से कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता राष्ट्रपति के अभिभाषण को लेकर ही विवाद खड़ा करने की कोशिशें कर रहे हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि 50 वर्ष पुराने मुद्दे को भाजपा क्यों उखाड़ रही है? यह अतार्किक सवाल है। इतिहास का जिक्र इसलिए भी होता है ताकि वर्तमान पीढ़ी उससे सीख ले सके। जब कांग्रेस दावा कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार संविधान को बदलना चाहती है और उन्होंने देश में अघोषित आपातकाल लगा रखा है, तब यह बताया जाना आवश्यक हो जाता है कि आपातकाल क्या होता है? पूर्व प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस की प्रेरणा स्रोत इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल में किस प्रकार आम नागरिकों के संवैधानिक एवं मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे? किस तरह छोटी-छोटी बातों के लिए लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाला गया था? इंदिरा गांधी की जरा-सी आलोचना करने पर आलोचक को किस प्रकार की यातनाएं झेलनी पड़ती थीं? यह सब जब देश के सामने आएगा, तब ही तो पता चलेगा कि आपातकाल का अर्थ क्या होता है? अन्यथा कांग्रेस सहित विपक्षी दल ‘अघोषित आपातकाल’ का झूठा विमर्श खड़ा करते रहेंगे। संविधान लहराकर उसकी रक्षा करने का दावा करनेवालों ने किस प्रकार संविधान की आत्मा की हत्या की है, यह तथ्य भी तो जनता के सामने समय-समय पर आते रहने चाहिए। आपातकाल का लाभ लेकर कम्युनिस्टों के सहयोग से कांग्रेस ने संविधान की प्रस्तावना ही बदल दी, जिसे संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ‘संविधान की आत्मा’ कहा था। इसके अतिरिक्त कितने ही संविधान संशोधन करके उसके मौलिक स्वरूप को बदलने का प्रयास कांग्रेस की सरकारों ने किया है। संविधान और लोकतंत्र पर जब भी बात होगी, तब इतिहास से अनेक उदाहरण जनता के सामने रखे जाएंगे, यह स्वाभाविक ही है। राजनीति में ऐसा नहीं हो सकता कि कांग्रेस दूसरों पर जो चाहे आरोप लगाए और दूसरा पक्ष उसे आईना भी न दिखाए। और फिर आपातकाल के संबंध में तो विशेष प्रसंग बन गया है। आपातकाल थोपे जाने की घटना को 50 वर्ष हो रहे हैं, ऐसे में विशेष प्रयोजन करके जनता को आपातकाल के पीड़ादायक अध्याय से परिचित कराना ही चाहिए। साथ ही कांग्रेस ने जब संविधान पर बहस शुरू ही कर दी है तब संविधान और लोकतंत्र की हत्या से जुड़े इस दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय का जिक्र होना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस को चाहिए कि वह आपातकाल के जिक्र पर परेशान होने की अपेक्षा धैर्य रखकर पश्चाताप करे। अगर वह आपातकाल का उल्लेख किए जाने पर प्रतिरोध दर्ज कराएगी तब संविधान के प्रति उसकी प्रतिबद्धता संदेह के घेरे में स्वत: ही आएगी।
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