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नाम छिपाकर व्यापार क्यों?

उत्तरप्रदेश की मुजफ्फरनगर पुलिस के एक आदेश के बाद गजब का वितंडावाद खड़ा किया जा रहा है, जो यह बताता है कि ‘संविधान की पॉकेट साइज कॉपी’ हाथ में लहराना एक ढोंग से बढ़कर कुछ नहीं क्योंकि जब भी नियम-कायदों के पालन की बात आती है, तब ऐसा करनेवाले सब क्रांतिकारी तुष्टीकरण की नीति को वरियता देते हैं। दरअसल, कांवड़ यात्रा में कोई गड़बड़ी न हो इसलिए प्रशासन ने कांवड़ यात्रा मार्ग की दुकानों, होटलों एवं ढाबों इत्यादि को मालिक का नाम प्रतिष्ठान के बोर्ड पर स्पष्ट अक्षरों में लिखने आदेश दिया। ऐसा नहीं है कि यह निर्णय केवल मुसलमानों के लिए है अपितु यह तो सभी धर्म-संप्रदाय के व्यापारियों के लिए है। हिन्दू हो या मुसलमान या फिर ईसाई, सबको अपने नाम लिखने होंगे। निर्णय सबके लिए है लेकिन कुछ लोग इसे मुसलमानों के विरुद्ध बता रहे हैं। हर बात को हिन्दू-मुस्लिम दृष्टिकोण से देखने का काम वही लोग सबसे अधिक करते हैं जो स्वयं को कथित तौर पर सेकुलर बताते हैं। याद हो, बहुत पहले तक दुकान के नामपट पर प्रोपराइटर का नाम लिखना व्यवहार में था लेकिन बाद में यह प्रचलन से बाहर हो गया। अच्छी बात है कि सरकार ने प्रोपेगेंडा के सामने झुकने की बजाय इस निर्णय को पूरे प्रदेश के लिए लागू कर दिया है। उत्तराखंड ने भी अपने यहाँ इस निर्णय को लागू कर दिया। यह निर्णय सब जगह लागू होना चाहिए आखिर नाम छिपाकर व्यापार क्यों होना चाहिए? एक सर्वे में यह तथ्य ध्यान में आया है कि अनेक मुस्लिम हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर होटल एवं अन्य व्यवसाय चला रहे हैं। वहीं, कुछ स्थानों पर माँस इत्यादि का व्यापार करनेवाले हिन्दू भी इस्लामिक नाम से अपने प्रतिष्ठान चला रहे हैं। यह स्थितियां भ्रम और तनाव का कारण बनती हैं। व्यापार के नियम कहते हैं कि व्यापार में सबकुछ पारदर्शी होना चाहिए। बहरहाल यह कहने में भी संकोच नहीं है कि उत्तरप्रदेश के प्रशासनिक निर्णय की पृष्ठभूमि में उन दुष्ट लोगों की बड़ी भूमिका है, जो थूक, मूत्र और मांस इत्यादि मिलाकर खाने को भ्रष्ट करते रहे हैं। ऐसे अनेक वीडियो उपलब्ध है, जिनमें स्पष्ट दिखायी देता है कि दुकानदार खाने में अपनी गंदगी मिला रहे हैं। कांवड़ लेकर आनेवाले श्रद्धालु बहुत अधिक पवित्रता का पालन करते हैं। यदि कांवड़ यात्री किसी दुकान पर कुछ खाते हैं और उन्हें बाद में कोई कहता है कि यह दुकान मुसलमान की है, उसने आपके खाने को गंदा किया है, तब सांप्रदायिक तनाव हो सकता था। लेकिन अब कांवड़ यात्री को पता होगा कि वे हिन्दू या मुसलमान व्यापारी के होटल/ढाबे पर भोजन कर रहे हैं। इसलिए उनके मन में कोई संदेह पैदा नहीं कर पाएगा। जहाँ झूठ और पर्दादारी होती है, वहाँ संदेह पैदा करने की आशंका अधिक होती है। एक अच्छी नीयत के साथ उठाए गए कदम का विरोध करना बताता है कि कुछ राजनीतिक दलों के लिए संविधान और कानून केवल राजनीतिक स्वार्थ तक सीमित हैं। अपने आप को सेकुलर कहनेवाले नेता/पत्रकार/बुद्धिजीवी इस हद तक सांप्रदायिक हैं कि वे इस निर्णय की गलत ढंग से व्याख्या करके मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। स्मरण रहे कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही यह नियम बनाया था कि व्यापारियों को अपनी किसी भी प्रकार की दुकान में लाइसेंस की प्रति और मालिक का नाम प्रमुखता से चिपकाना आवश्यक है ताकि ग्राहक उसे देख और पढ़ सके। इस नियम के मुताबिक ग्राहक का यह अधिकार है कि वह दुकान संचालक के बारे में बुनियादी बातें जान सके। लेकिन संविधान की ठेकेदारी करनेवाले सभी नेता, पत्रकार एवं खास किस्म के बुद्धिजीवी कांग्रेस की सरकार के नियम के अनुपालन को ही असंवैधानिक बता रहे हैं। वे यह प्रोपेगेंडा स्थापित करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं कि यह निर्णय सांप्रदायिकता बढ़ानेवाला है। बहरहाल, इस पूरी बहस के बीच इन प्रश्नों के उत्तर कोई नहीं दे पा रहा है कि क्या पहचान छिपाकर व्यापार करना नैतिक और संवैधानिक है? अपनी पहचान सामने रखने में शर्म या झिझक किस बात की? यदि यह निर्णय मुसलमानों के बहिष्कार को बढ़ावा देता है तब हलाल सर्टिफिकेट की व्यवस्था का विरोध क्यों नहीं किया जा रहा, जो अनेक उत्पादों के बहिष्कार की खुली व्यवस्था है। इस्लामिक संस्थाओं द्वारा कंपनियों पर यह दबाव बनाया जाता है कि वे उनके उत्पाद तभी खरीदेंगे, जब वे हलाल प्रमाणन का चिह्न उत्पाद पर लगाएंगी। उत्पादों की इस्लामिक पहचान से शुरू हुई हलाल प्रमाणन की यह व्यवस्था मकान और दुकान तक भी पहुंच चुकी है। शिक्षा संस्थानों में हिजाब और बुर्का को मुसलमानों की पहचान और अस्मिता से जोड़कर उसका समर्थन करनेवाले तत्व दुकानों पर पहचान पर गौरव क्यों नहीं कर पा रहे हैं? शिक्षा संस्थानों में हिजाब, बुर्का और जालीदार टोपी ने कभी उनके साथ भेदभाव नहीं होने दिया, तब दुकान पर नाम लिखने से उनके साथ भेदभाव कैसे हो जाएगा? ये ऐसे प्रश्न है, जो वितंड़ावाद खड़ा करनेवाले लोगों के पाखंड और दोगले आचरण को उजागर करते हैं।

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