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कौन हैं संविधान के संरक्षक

कांग्रेस और उसके समर्थक विपक्षी दल अकसर भारतीय जनता पार्टी पर संविधान विरोधी होने का आरोप लगाते हैं। अपने राजनीतिक संघर्ष को ये संविधान की रक्षा की लड़ाई बताने का दंभ भी भरते हैं। परंतु, क्या सच यही है? इतिहास उठाकर देखें, तो कहानी कुछ और ही नजर आती है। भाजपा ने कभी भी संविधान को नुकसान पहुँचाने का निर्णय नहीं लिया। उसकी सरकारों ने जो भी निर्णय लिए, वे सब संविधान को पुष्ट करनेवाले हैं। वहीं, कांग्रेस के कुछ निर्णय संविधान को सीधेतौर पर क्षति पहुँचानेवाले हैं। संविधान दिवस के अवसर पर अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसे ही दो प्रमुख संविधान संशोधनों का उल्लेख करके संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा का दावा करनेवाली कांग्रेस को आईना दिखाने का काम किया और जनता के बीच एक विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- “समय, परिस्थिति, देश की आवश्यकता को देखते हुए अलग-अलग सरकारों ने अलग-अलग समय पर संशोधन किए, लेकिन ये भी दुर्भाग्य रहा कि संविधान का पहला संशोधन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों में कटौती करने के लिए हुआ था। वहीं, संविधान के 44वें संशोधन के माध्यम से इमरजेंसी के दौरान की गई गलतियों को सुधारा गया था”। संविधान को लेकर ये दो तथ्य ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि जब कांग्रेस के हाथ में सत्ता थी तब संविधान की मूल भावना को बदलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित करने का काम किया गया। वहीं, जब भाजपा के गठबंधन की सरकार ने 44वें संशोधन के जरिए आपातकाल की गलतियों को सुधारा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करने का काम किया। आपातकाल भी हमें याद है, जब कांग्रेस सरकार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को समाप्त करके देश को अंधकार में धकेल दिया था। उस समय संविधान की आत्मा कही जानेवाली प्रस्तावना को ही कांग्रेस ने बदल दिया और उसमें सेक्युलरिज्म और समाजवाद जैसे शब्द जोड़े गए। जबकि डॉ. भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा ने संविधान में इन शब्दों को स्थान नहीं दिया था। हम देखते हैं कि संविधान की प्रस्तावना में चालाकी से जोड़े गए इन शब्दों का कितना दुरुपयोग किया गया। आज भी देश की बहुसंख्यक जनता की माँग रहती है कि इन शब्दों को प्रस्तावना से निकाल देना चाहिए और ताकि संविधान की आत्मा अपने मूल स्वरूप को प्राप्त हो सके। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि संविधान सभा में अपने आखिरी भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर ने खुलकर बताया था कि भारत के संविधान का विरोध सबसे अधिक किन्होंने किया। बाबा साहेब ने कहा था कि केवल कम्युनिस्टों एवं समाजवादियों ने संविधान का विरोध किया। विडम्बना देखिए कि वास्तव में जो संविधान के विरोधी हैं, वे कांग्रेस के गठजोड़ का हिस्सा हैं। बहरहाल, देश के प्रबुद्ध वर्ग को इस मुद्दे पर निष्पक्षता के साथ विमर्श करना चाहिए कि वास्तव में संविधान की मूल भावना को बदलने का काम किसने किया और उसके अनुसार देश को चलाने के प्रयत्न कौन करता है। क्योंकि राजनीतिक दल तो अपनी ही टेक लगाते हैं इसलिए उनके आरोपों पर जनता को अब विश्वास नहीं होता। वैसे, प्रधानमंत्री मोदी की सराहना की जानी चाहिए कि उनके प्रयास से देश में ‘संविधान दिवस’ मनाने की परंपरा प्रारंभ हुई। इस कारण अपने संविधान को लेकर जनता में एक जागृति आई है। भ्रम के बादल अब छंटने लगे हैं।

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