विपक्षी गठबंधन की बहुप्रतीक्षित बड़ी बैठक लंबी सुस्ती के बाद बीते मंगलवार को सम्पन्न हुई। माना जा रहा था कि इस बैठक में सीटों के बंटवारे एवं इंडी गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर कोई नीति बन जाएगी, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा। सीटों के बंटवारे पर कोई निर्णय नहीं हुआ। हाँ, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर अवश्य ही विपक्षी दलों ने कांग्रेस को धर्मसंकट में डाल दिया। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने अचानक से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तावित कर दिया, जिसका समर्थन एक ही झटके में आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने कर दिया। इस प्रस्ताव से कांग्रेस अचंभित रह गई। उससे न तो इनकार करते बना और न ही स्वीकार। आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को कहना पड़ा कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा, यह चुनाव के बाद देखेंगे। दरअसल, कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए राहुल गांधी को आगे करने की तैयारी की जा रही है। जननेता के तौर पर उनकी छवि गढ़ने के प्रयास कांग्रेस कर ही रही है। उसी संदर्भ में राहुल गांधी को केंद्र में रखकर कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्राओं की योजना बनायी है। इस स्थिति में राहुल की जगह अचानक से खड़गे का नाम आना, कांग्रेस की तैयारियों को झटका समझा जा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी के नाम पर प्रारंभ से ही विपक्ष के कई दल सहमत नहीं है। इसलिए भी कांग्रेस चुनाव से पहले किसी एक चेहरे को आगे करके मैदान में उतरने से बच रही है। ऐसा करने से विपक्षी गठबंधन के दरकने की आशंका भी है। यदि हम यह मान भी लें कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस की योजना में राहुल गांधी का नाम नहीं है, तब सहमति से कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का नाम सामने आ रहा है, तो उसी स्वीकार करने में कांग्रेस को हिचक क्यों होनी चाहिए? कांग्रेस की हिचक बता रही है कि उसके मन में कुछ और चल रहा है। याद रखें कि विपक्षी गठबंधन में आआपा और तृणमूल कांग्रेस, दोनों प्रमुख दल हैं। इस घटनाक्रम के बाद संभव है कि विपक्षी गठबंधन बिना किसी चेहरे के 2024 के मैदान में उतरे। इस स्थिति में भाजपा को ही लाभ होगा। एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा होगा और एक ओर अनिश्चित चेहरा, ऐसे में स्वाभाविक ही जनता का झुकाव एक विश्वसनीय चेहरे की ओर होगा। बहरहाल, इंडी गठबंधन की बैठक में नीतीश कुमार ने भी देश के लिए ‘भारत’ संज्ञा का उपयोग किए जाने की माँग करके कांग्रेस को अचंभित कर दिया। याद रखें कि जब विपक्षी गठबंधन को संक्षिप्त रूप में ‘इंडिया’ कहा गया, तब नीतीश कुमार ने विरोध किया था। उन्होंने इस पर अपनी नाराजगी जताई थी। नीतीश कुमार का कांग्रेस के विचार के विरुद्ध जाने का कारण यह भी हो सकता है कि जिस गठबंधन की आधारभूमि नीतीश कुमार ने तैयार की, अब उसमें उन्हें ही हाशिए पर धकेल दिया गया है। नीतीश कुमार की स्थित को देखकर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रहे हैं। बहरहाल, विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार ने गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर दिया है। विपक्ष के बड़े दल कांग्रेस पर दबाव बनाने की स्थिति में आ चुके हैं। संभव है कि इसी कारण विपक्षी गठबंधन की यह बैठक भी बिना किसी ठोस योजना एवं परिणाम के सम्पन्न हो गई।
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