पहले चरण के मतदान सम्पन्न होने के साथ ही लोकसभा चुनाव को लेकर देशभर में सरगर्मी बढ़ रही है। राजनीतिक दलों के नेता एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। आरोप-प्रत्यारोप के चक्कर में कई बार नेता ऐसी गलतियां कर रहे हैं, जिनके कारण न केवल वे अपितु उनका राजनीतिक दल भी कठघरे में खड़ा हो जाता है। केरल के कन्नूर में आयोजित चुनावी रैली में कांग्रेस के प्रमुख नेता राहुल गांधी ने ऐसा ही वक्तव्य दिया है, जिसके कारण समूचे भारत में उनकी आलोचना हो रही है और कांग्रेस से सवाल पूछे जा रहे हैं कि भारत को लेकर पार्टी की अवधारणा क्या है? दरअसल, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाया है कि वे देश के लोगों पर ‘एक इतिहास, एक देश और एक भाषा’ थोपना चाहते हैं। उन्हें यह ज्ञान कहाँ से मिला, यह तो वे ही बता सकते हैं। लेकिन यहाँ उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि यह एक देश और एक इतिहास क्या है? क्या केरल अलग देश है और उत्तरप्रदेश एक अलग देश? ये सब तो भारत देश के अभिन्न हिस्से हैं। केरल के निवासी हों या जम्मू-कश्मीर के, सबका देश तो एक ही है- भारत। फिर भाजपा देश के लोगों पर कौन-सा ‘एक देश’ थोपना चाहती है? दरअसल, राहुल गांधी राज्य, देश और राष्ट्र की परिभाषाओं को लेकर भ्रमित हैं क्योंकि भारत को देखने का उनका दृष्टिकोण पाश्चात्य अध्ययन के आधार पर विकसित हुआ है। हम सभी भारतीयों का इतिहास भी साझा है। हमारा इतिहास अलग-अलग नहीं है। दक्षिण से लेकर उत्तर तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक, संपूर्ण भारत एक ही है और एक ही उसका इतिहास है। हमारी सांस्कृतिक विरासत भी एक ही है। राहुल गांधी को अपने आरोपों पर पुनर्विचार करना चाहिए और देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा एवं आरएसएस के प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों में भारत के दक्षिण, उत्तरी, पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से के इतिहास की जानकारी संपूर्ण देश के सामने आई हैं। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के दौरान संपूर्ण देश से गुमनाम नायकों को सामने लाने की प्रेरणा किसने दी? लचित बोरफुकन हो या रानी चेनम्मा, कुछ वर्षों पहले तक उत्तर और मध्य भारत में कौन इनके किस्से जानता था? और रही बात भाषा कि तो याद रखें कि प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा और आरएसएस ने सदैव ही सभी भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करने की बात कही है। प्रधानमंत्री मोदी तो स्वयं भी जब किसी दूसरे भाषा-भाषी समाज के साथ संवाद करते हैं, तो अपनत्व का भाव जगाने के लिए उसी भाषा में अभिवादन सहित एक-दो वाक्य कहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अपनी मातृभाषा भी गुजराती है। इसलिए भी विभिन्न भारतीय भाषाओं और अन्य विविधता की सुंदरता से वे भली प्रकार परिचित हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी विभिन्न भाषा-भाषी कार्यकर्ता एक साथ भारत को समर्थ, समरस और एकात्म बनाने के लिए कार्य करते हैं। सत्य तो यही है कि उन्होंने कभी भी एक भाषा थोपने का प्रयास नहीं किया है। देश पर एक बाहरी भाषा को थोपने का दोषी कौन है, राहुल गांधी को अवश्य ही इस बात का चिंतन करना चाहिए। भारत के विभिन्न भाषा-भाषी समाजों/राज्यों के बीच झगड़ा कराने का दोष भी किसके माथे है, यह सबको ज्ञात है। अच्छा होगा कि अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए जनता को भ्रमित करने की अपेक्षा नेता किन्हीं दूसरे मार्गों का अनुसरण करें। भारत के प्रत्येक नागरिक की साझी संस्कृति है, साझा इतिहास है और उनका देश भी एक ही है।
64