लोकसभा चुनाव के पहले चरण में अपेक्षा से कम मतदान प्रतिशत चर्चा का विषय बना हुआ है। मताधिकार के उपयोग के प्रति मतदाताओं की उदासीनता ने सबकी चिंताएं बढ़ा दी हैं। राजनीतिक दल इसका विश्लेषण अलग-अलग ढंग से कर रहे हैं। परंतु, इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदाताओं की उदासीनता लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। लोकतंत्र, मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी से मजबूत होता है। स्वाधीनता के साढ़े सात दशक बाद भी मतदान प्रतिशत बढ़ने के स्थान पर कम होना निश्चित रूप से चिंताजनक है। चुनाव आयोग के लाख प्रयासों के बावजूद मतदान प्रतिशत कम होना एक बार फिर से विचार करने को मजबूर कर देता है। आखिर क्या कारण है कि मतदाता अपने मताधिकार के उपयोग के प्रति बहुत उत्साही नहीं दिख रहा है। गर्मी का असर है या फिर कुछ और कारण, इन पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। चुनाव आयोग को चाहिए कि वह इस संबंध में वैज्ञानिक विधि से शोध कराकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचे ताकि भविष्य में मतदान से संबंधित योजना मतदाताओं की सुविधा के अनुरूप हो। मतदाताओं को भी विचार करना चाहिए कि अपनी सरकार चुनने का अवसर पाँच वर्ष के बाद मिलता है, ऐसे में अवसर चूकना नहीं चाहिए। अनेक स्थानों से आ रही तस्वीरों को हमें अपनी प्रेरणा बनाना चाहिए, जिनमें साफ दिखायी दे रहा है कि प्रतिकूल परिस्थियां होने के बाद भी लोग मतदान के लिए पहुँच रहे हैं। शहरों में तो कम से कम इस प्रकार की चुनौतियां नहीं हैं कि पहाड़ चढ़कर मतदान केंद्र तक जाना हो। चुनाव आयोग ने मतदान केंद्रों की संख्या भी अधिक रखी है ताकि मतदाताओं को लंबी कतारों में खड़ा न होना पड़े। अब तो मतदाता को चुनाव आयोग द्वारा मतदाता क्रमांक से लेकर मतदान केन्द्र तक की जानकारी का समावेश करते हुए परची उपलब्ध कराई जाती है। वरिष्ठ नागरिक और मतदान केन्द्र तक जाने में अक्षम मतदाताओं को घर से मतदान की सुविधा दी गई है। मतदाताओं को जागृत करने के लिए प्रचार के सभी माध्यम यहां तक कि सोशल मीडिया का उपयोग किया जाने लगा है। मतदान को निष्पक्ष और भयमुक्त कराने के लिए संपूर्ण व्यवस्था की जाती है। संवेदनशील मतदान केन्द्रों पर विशेष व्यवस्था होती है। कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही मतदान केन्द्र पर सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। इसके अलावा यह नहीं भूलना चाहिए कि साक्षरता और लोगों में जागरूकता आई है। स्मरण रखें कि समझदार मतदाता की उदासीनता या निष्क्रियता कई बार लोकतंत्र और देश के विकास पर भारी पड़ती है। चुनाव आयोग से पहले चरण के मतदान के प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया जाये तो साफ हो जाता है कि 2019 की तुलना में दो प्रतिशत तक मतदान प्रतिशत में गिरावट आई है। हालांकि त्रिपुरा और सिक्किम में मतदान का आंकड़ा 80 प्रतिशत को छूने में सफल रहा है पर वहां भी 2019 की तुलना में कम है। त्रिपुरा में 2019 के 81.9 प्रतिशत की तुलना में 81.5 प्रतिशत और सिक्किम में 84.8 प्रतिशत की तुलना में 80 प्रतिशत मतदान रहा है। पहले चरण के चुनावों में मतदान का सबसे कम प्रतिशत बिहार का रहा है जहां मतदान का आंकड़ा 50 प्रतिशत को भी छू नहीं पाया है। छत्तीसगढ़ में अवश्य 2019 की तुलना में एक प्रतिशत से कुछ अधिक मतदान रहा है। जहां तक राजस्थान का प्रश्न है 12 सीटों पर मतदान में छह प्रतिशत की गिरावट रही है। मध्यप्रदेश में भी कमोबेश यही हाल हैं। यहाँ पहले चरण की छह सीटों पर मतदान में 8.48 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। यदि मतदाताओं का अगले चार चरणों के मतदान में भी यही रुख रहता है तो यह चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों, लोकतांत्रिक व्यवस्था, गैरसरकारी संगठनों सहित सभी के लिए चिंतनीय हो जाता है। मतदाताओं से आग्रह यही है कि मतदान के अगले चरणों में उत्साह से भाग लें।
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