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असंसदीय आचरण

लोकसभा और राज्यसभा से दो दिन में 141 सांसदों का निलंबन हो जाना, बहुत शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह भी विडम्बना है कि पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के नेतृत्व में राज्यसभा का विपक्ष भी हो-हल्ला करने में विश्वास करने लगा है। निलंबित 141 सांसदों में से 46 सांसद राज्यसभा से हैं। राज्यसभा को प्रबुद्ध राजनेताओं के सदन के तौर पर देखा जाता है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सबसे अधिक हो-हल्ला इसी सदन में देखा गया है। एक साथ इतनी अधिक संख्या में सांसदों के निलंबन पर विपक्षी दल और उनके समर्थक भाजपा को तानाशाह बता सकता है लेकिन उसे याद रखना चाहिए कि 1989 में राजीव गांधी सरकार में भी एक ही दिन में 63 सांसदों को निलंबित किया गया था। विपक्ष को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि यह पारदर्शी समय है, जिसमें संसद में उनका आचरण समूचा देश देख रहा है। इसलिए भी सांसदों के निलंबन को लेकर लोगों में कोई विरोध नहीं है। लोकसभा अध्यक्ष के बार-बार आग्रह के बाद भी सदन की कार्यवाही में व्यवधान उत्पन्न करना, सदन के भीतर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बनावटी फोटो (मॉर्फ फोटो) और तख्तियां लेकर प्रदर्शन करना, संसदीय मर्यादाओं को लांघकर वेल में घुसकर नारेबाजी करना और मेज पर चढ़कर हंगामा करना, यह सब भी तानाशाही रवैया ही है। यह कोई लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं है। संसद की सुरक्षा में चूक पर सवाल उठाना विपक्ष का कर्तव्य है। उसे प्रश्न उठाना ही चाहिए लेकिन तौर-तरीके का भी ध्यान रखना आवश्यक है। संसद की अपनी एक गरिमा और प्रक्रिया है। उसकी अनदेखी करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। आखिरकार विपक्षी दल अपने असंसदीय आचरण से देश-दुनिया को किस प्रकार का संदेश देना चाहते हैं। यह स्थिति तब बनी जबकि संसद की सुरक्षा में चूक के मामले की जाँच की जा रही है। संसद में घुसकर उपद्रव करनेवाले आरोपी और उनके नेटवर्क के कुछ अन्य सदस्य भी पकड़े गए हैं। यह भी हैरान करनेवाला है कि जब सुरक्षा घेरा तोड़कर आरोपी संसद में घुसे थे, तब विपक्षी नेताओं की ओर से उन्हें आतंकी कहा जा रहा था लेकिन फिर अचानक से उन्हें बेरोजगारी एवं महंगाई का मारा कहा जाने लगा। इस पूरे मामले में विपक्ष का दृष्टिकोण ही स्पष्ट नहीं है। कभी वे आरोपियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की माँग करते हैं तो कभी नरमी से पेश आने की बात कहते हैं। बहरहाल, लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के पास कोई और उपाय नहीं रह गया, तब जाकर उन्होंने हंगामा कर रहे सांसदों को निलंबित किया। दोनों ही सदनों के सभापतियों ने सांसदों को समझाइश देने और संसदीय कार्यवाही के सुचारू संचालन में सहयोग करने का खूब आग्रह किया लेकिन सांसद तो एक ही जिद पर अड़े हुए थे। हद तो तब हो गई जब संसदीय परिसर में ही निलंबित तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री की। संवैधानिक पद पर सुशोभित व्यक्ति पर इस प्रकार का हमला करना, किसी भी प्रकार से उचित ठहराया जा सकता है क्या? विपक्ष के बड़े-बड़े नेताओं का आचरण किस स्तर का है, इसे इस प्रकार समझिए कि जब उपराष्ट्रपति की भौंड़ी नकल उतारी जा रही थी, तब वहाँ विपक्ष के दिग्गज नेता न केवल हँसी-ठिठोली कर रहे थे अपितु वीडियो भी बना रहे थे। कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी स्वयं भी कल्याण बनर्जी का वीडियो बनाते दिखायी दिए। बनर्जी के ओछी हरकत पर विपक्ष के किसी नेता ने आपत्ति दर्ज नहीं की। इस एक उदाहरण से भी स्पष्ट हो जाता है कि विपक्ष के नेता संसदीय आचरण भूल गए हैं। वे किसी भी स्तर पर जाकर विरोध को ही सर्वोपरि मानते हैं।

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