मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि देश को आगे ले जाने के लिए उनकी सरकार समान नागरिक संहिता लेकर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी के संकेत के बाद अब इस संबंध में कोई संशय नहीं रह गया है कि भारतीय जनता पार्टी देश से किए गए अपने एक और बड़े वायदे को पूरा करने जा रही है। हम सब जानते हैं कि समान नागरिक संहिता को लेकर भाजपा प्रारंभ से मुखर रही है। यह प्रश्न स्वाभाविक भी है कि एक देश में अलग-अलग कानून क्यों होने चाहिए? क्या लोकतांत्रिक देश में संप्रदाय के आधार पर नागरिक कानूनों में भेद होना चाहिए? समान नागरिक संहिता लागू करने के भाजपा के संकल्प के साथ देश की ज्यादातर जनता साथ खड़ी है। इसलिए स्वयं को सेकुलर कहनेवाले विपक्षी दल भले ही समान नागरिक संहिता का विरोध करें या कराएं, कानून तो लागू होकर रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी की सरकार की पहचान दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम करनेवाली सरकार के तौर पर है। बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी ने समान नागरिक संहिता की ओर निर्णायक कदम बढ़ा कर जनता के मन में विश्वास पैदा किया है। देश की जनता का यह भरोसा और अधिक पक्का होगा कि भाजपा जो कहती है, उसे पूरा अवश्य करती है। कुछ वर्षों पूर्व तक किसने सोचा था कि जम्मू-कश्मीर से विवादित एवं विभाजनकारी अनुच्छेद-370 एवं 35ए खत्म होगा, किसने सोचा था कि भारत के स्वाभिमान भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में भव्य-दिव्य श्रीराम मंदिर बन पाएगा, यह भी किसने सोचा था कि देश में समान नागरिक संहिता को लागू किया जा सकेगा। यह सब असंभव से दिखनेवाले काम आज हमें धरातर पर होते हुए दिखायी दे रहे हैं। यह सब संभव हुआ भाजपा के कार्यकर्ताओं के संकल्प और प्रधानमंत्री मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण। प्रधानमंत्री मोदी ने देशभर के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए मोदी सरकार के अभूतपूर्व निर्णयों का जिक्र किया, तब यह भी ध्यान आया होगा कि मोदी सरकार से पहले किसी भी मुस्लिम महिला ने नहीं सोचा होगा कि उन्हें तीन तलाक जैसी कबीलाई व्यवस्था से मुक्ति मिल पाएगी क्योंकि कांग्रेस कभी भी मुस्लिम समुदाय में सुधारों को लेकर बात नहीं करती है। एक बार उसके पास अवसर आया था कि वह सुधारवादी रुख अपनाते हुए मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय करे लेकिन तब कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथी मुस्लिम गुटों के दबाव में सर्वोच्च न्यायालय से मिले न्याय को भी छीन लिया था। शाहबानो के हित में आए न्यायालय के निर्णय को संसद में पलट दिया गया। हैरानी की बात है कि मुसलमानों को यह बातें समझ क्यों नहीं आती हैं कि कांग्रेस ने कभी उनकी प्रगति के बारे में विचार नहीं किया। कांग्रेस ने उन्हें केवल वोटबैंक माना। मुस्लिम नाराज न हो जाएं, इस डर से कांग्रेस ने आवश्यक निर्णय ही नहीं लिए। प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर कहा कि मुसलमानों के हितों की अनदेखी की गई है। आज भी मुस्लिमों के भीतर अनेक प्रकार की जातीय भिन्नता हैं, उसके आधार पर उनके ही समुदाय के तथाकथित कुलीनवर्ग के लोगों द्वारा शोषण किया जा रहा है। विपक्षी दल आज भी यही करेंगे कि मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने की बजाय समान नागरिक संहिता पर उन्हें भड़काया जाएगा। जबकि वास्तविकता यह है कि समान नागरिक संहिता के आने से देश-समाज में सामाजिक सद्भाव ही कायम होगा। वैसे तो प्रगतिशील मुसलमान भी यह भली प्रकार जानते हैं कि समान नागरिकता संहिता कानून से उनकी धार्मिक मान्यताओं एवं परंपराओं पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा। दुनिया के और भी देश हैं, जहाँ मुस्लिम इसी प्रकार के सेकुलर कानूनों के साथ रहते हैं। प्रगतिशील मुसलमानों की जिम्मेदारी है कि वह इस विषय पर मुस्लिम बंधुओं के बीच जन-जागरूकता लाने के लिए प्रयास करें।
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