पांचवे चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गए हैं। देश का जनादेश 4 जून को सबके सामने होगा। लेकिन प्रत्येक चरण के मतदान के साथ ही राजनीतिक दलों ने अपने स्तर पर व्याख्या करके और अनुमान लगाकर, अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। लोकसभा चुनाव-2019 की भाँति ही कांग्रेस एवं कम्युनिस्टों के ईको-सिस्टम ने इस बार भी ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किसा है कि भाजपा चुनाव हार रही है। बदलाव के लिए जनता ने मन बना लिया है। हालांकि जनता के मन में क्या है, यह किसी को पता नहीं है। यह भी सच है कि कुछ हद तक वातावरण दिख रहा है, तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के समर्थन में दिख रहा है। यह और बात है कि दीवार पर लिखे इस सच को अनेक राजनीतिक विश्लेषक पढ़ नहीं पा रहे हैं। ये लोग चुनाव का विश्लेषण अलग ही दृष्टिकोण से कर रहे हैं। प्रारंभिक चरणों में मतदान प्रतिशत के कम रहने और शेयर बाजार में गिरावट इत्यादि घटनाओं को सत्ता परिवर्तन का सूचक मानकर कांग्रेस एवं उसके समर्थक उत्साहित हैं। कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन को लगने लगा है कि जिस तरह चुनावों में स्थानीय और सामाजिक समीकरण हावी हो रहे हैं उससे भाजपानीत गठबंधन राजग बहुमत के आंकड़े से दूर रह जाएगा और तब विपक्षी गठबंधन अपने सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाने का दावा कर सकता है। राजग और आईएनडीआईए से बाहर के दलों ने भी तमाम चुनावी संभावनाओं का आकलन करते हुए अपनी पैंतरेबाजी शुरु कर दी है। भाजपा के 400 पार नारे के समानांतर यह चर्चा भी स्थापित कर दी गई कि क्या भाजपा और राजग बहुमत का आंकड़ा 272 तक पहुंच पाएंगे या 240-250 तक आकर रुक जाएगी या 200 से कुछ ज्यादा आते-आते गाड़ी फंस जाएगी। यानी भाजपा के 370 और 400 पार के मुकाबले विपक्ष का विमर्श भी जोर पकड़ गया है। इस विमर्श ने विपक्ष के नेताओं को यह हौसला दे दिया कि राहुल गांधी ने भाजपा के लिए 150, अखिलेश यादव ने 143, अरविंद केजरीवाल ने 230, ममता बनर्जी ने 240 जैसे आंकड़े देने शुरु कर दिए। विपक्ष के नेता नये-नये आंकड़े और परिकल्पनाएं लेकर आगे आ रहे हैं। जिनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं है, केवल उनके द्वारा अपने इको-सिस्टम के सहयोग से खड़ा किया गया विमर्श है। वहीं, भाजपा के नेतृत्व को उम्मीद है कि उसे सरकार बनाने लायक बहुमत आसानी से मिल जाएगा। उसकी लड़ाई सिर्फ अपनी सीटें बढ़ाने की है। गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट तौर पर कह चुके हैं कि भाजपा को चार चरणों में ही बहुमत प्राप्त हो चुका है। अब तो भाजपा के कार्यकर्ता 400 पार के अपने लक्ष्य के लिए परिश्रम कर रहे हैं। किसके अनुमान सच साबित होंगे, यह तो 4 जून को ही सामने आ सकेगा। लेकिन मतदान प्रतिशत और शेयर बाजार में गिरावट जैसी घटनाओं को सत्ता परिवर्तन का संकेत वही मान सकता है, जिसकी पकड़ जमीन पर ढीली हो गई हो। शेयर बाजार की गिरावट को आधार बनानेवाले इस तथ्य को किस तरह देखते हैं कि बाजार फिर से अपने रिकॉर्ड स्तर पर लौट आया है? वर्तमान समय में बड़ी संख्या में राजनेता एवं राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमान गलत साबित होते हैं क्योंकि वे विशेष चश्मा चलाकर निर्वाचन के मैदान में उठ रहे संकेतों को देख रहे होते हैं। चुनाव परिणाम को समझने के लिए जनता की नब्ज पर हाथ रखना आवश्यक है। इस मामले में भाजपा ही सबसे आगे दिखायी देती है।
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