मानहानि के मामले में सजा पाये कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी को यह पूर्ण अधिकार है कि सत्र न्यायालय के निर्णय को कानूनी ढंग से चुनौती दें। भारत की न्याय व्यवस्था उन्हें यह अधिकार देती है। यदि राहुल गांधी को लगता है कि कुछ तथ्यों को अनदेखा किया गया है और उनके साथ न्याय नहीं हुआ है तब उन्हें यह अधिकार है कि वे न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करें। परंतु न्यायालय कोई राजनीतिक दल या सरकार नहीं है कि उस पर दबाव बनाने के लिए शक्ति-प्रदर्शन किया जाए। राहुल गांधी गलत परंपरा स्थापित कर रहे हैं कि प्रवर्तन निदेशालय या किसी अन्य जाँच एजेंसी के सामने जाना हो या फिर न्यायालय के दरवाजे पर, वह अपने कार्यकर्ताओं एवं प्रभावशाली नेताओं का हुजूम लेकर जाते हैं। जिस तरह एक राजनीतिक जुलूस के रूप में राहुल गांधी सूरत के सत्र न्यायालय में याचिका लगाने के लिए पहुँचे, उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता है। कांग्रेस को भी समझना चाहिए कि इस प्रकार संगठन के शक्ति प्रदर्शन से जनता के बीच में भी अच्छा संदेश नहीं जाता है। कांग्रेस को अपने आप को शक्तिशाली दिखाना है, तब उन्हें इस प्रकार की एकजुटता सरकार के विरुद्ध जनता के मुद्दों पर दिखानी चाहिए, न्यायालय के सामने नहीं। प्रश्न यह भी है कि राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेता किसी और कांग्रेसी नेता या कार्यकर्ता के लिए इस तरह न्यायालय या जाँच एजेंसी के सामने गए हैं? इसका उत्तर है- नहीं। तब राहुल गांधी के लिए इस प्रकार का शक्ति प्रदर्शन, भाजपा और अन्य लोगों के उस आरोप को सत्य सिद्ध करता है कि कांग्रेस पर परिवार विशेष का प्रभुत्व है। पार्टी का अध्यक्ष कोई भी हो, लेकिन सबसे ऊपर परिवार के लोग ही रहेंगे। पार्टी के कार्यकर्ता अध्यक्ष के पीछे नहीं अपितु परिवार के सदस्यों के पीछे ही खड़े होंगे। क्या कांग्रेस की इस कवायद से यह संदेश नहीं गया कि पार्टी में अब भी राहुल गांधी ही सबसे बड़े नेता हैं? जब समूचा हुजूम राहुल गांधी के इर्द-गिर्द जुटेगा, तब पार्टी अध्यक्ष के निर्णय कितने प्रभावी होंगे? बहरहाल, कांग्रेस अपनी पार्टी और नेताओं को किस तरह प्रस्तुत करना चाहती, यह उसे ही तय करना है। परंतु न्यायालय के सम्मान की रक्षा करना सबकी चिंता का विषय होना चाहिए। कांग्रेस के कर्ताधर्ताओं को समझना चाहिए कि अनेक बड़े नेता जाँच एजेंसियों का सामना कर चुके हैं और न्यायालय में भी गए हैं लेकिन उन्होंने कभी इस तरह का मजमा नहीं जुटाया था। कांग्रेस जिन लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लक्षित करके उन्हें ‘तानाशाह’ बताती है, उन्होंने भी कांग्रेस के शासनकाल में सहजता के साथ जाँच एजेंसियों की कार्यवाही एवं न्यायायिक व्यवस्था का सामना किया है। जनता को यह सब याद है, इसलिए वह यह भी अंतर कर पाती है कि कौन नेता प्रभुत्ववादी है और कौन लोकतांत्रिक है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि न्यायालय के सामने शक्ति प्रदर्शन का कोई औचित्य नहीं है।
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