प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को लागू करके भारतीयता के धर्म को निभाया है। इस कानून के लिए मोदी सरकार की सराहना की जानी चाहिए। सरकार को साधुवाद। स्मरण रहे कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में सांप्रदायिक कट्टरता के कारण गैर-मुस्लिमों को अत्यधिक शोषण हुआ है। गैर-मुस्लिम होने के कारण उन पर अत्याचार किए जाते हैं। मजबूरन उन्हें या तो देश छोड़ना पड़ा है या फिर अपना कन्वर्जन का रास्ता चुनना पड़ा है। अपनी भूमि, घर, प्रतिष्ठान, सबकुछ छोड़कर भारत में शरण लिए नागरिकों को अब जाकर स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार मिलेगा। अर्थात् सीएए के लागू होने के बाद अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदुओं, जैनों, बौद्धों, सिखों और ईसाईयों (गैर-मुस्लिम) को नागरिकता मिलेगी। हैरानी होती है कि जब विश्व नागरिकता और मानवता की बातें करनेवाले इस मानवीय कानून का विरोध करते हुए दिखायी देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये हैं, जो बातें तो मानवता, करुणा, सहनशीलता करतें लेकिन वास्तव में यह सब उनके लिए दिखावटी हैं। अन्यथा क्या कारण है कि वे पीड़ितों को न्याय देनेवाले कानून का विरोध कर रहे हैं और उसके बारे में भ्रम फैला रहे हैं। इतना ही नहीं, यह वर्ग मुस्लिम समुदाय को भी भड़काने का प्रयास कर रहा है। जबकि मुसलमानों एवं उनकी नागरिकता से इस कानून का कोई लेना-देना नहीं है। यह कानून भारतीय मुसलमानों की नागरिका पर किसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नहीं डालता है। यह तो केवल उन पीड़ित बंधुओं को स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार देता है, जिन पर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक होने के कारण अत्याचार हुए। हैरानी की बात यह भी है कि अपने व्यवहार को लेकर कुख्यात रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की वकालत करनेवाले तथाकथित बुद्धिजीवी एवं राजनीतिक कार्यकर्ता पीड़ित हिन्दुओं को नागरिकता दिए जाने का विरोध कर रहे हैं। स्पष्ट है कि उन्हें हिन्दुओं से कष्ट है। उनका सारा प्रेम रोहिंग्या मुसलमानों के लिए तो उमड़ता है लेकिन जब बात हिन्दू शरणार्थी के सम्मान की आती है, तो उन्हें कष्ट होने लगता है। बहरहाल, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने का निर्णय लेकर जनता को एक अवसर दिया है, ताकि वह यह देख सके कि वास्तव में मानवतावादी कौन है, कौन-से राजनीतिक दल हैं जो सांप्रदायिक कट्टरता के साथ खड़े हैं, कौन-से नेता हैं जो हिन्दुओं के हितों का विरोध करते हैं? देश के नागरिक साफ तौर पर देख पा रहे हैं कि हिन्दुओं का वोट पाने के लिए जो मंदिर-मंदिर जाने का ढोंग करते हैं, वे पड़ोसी देशों से अत्याचार सहन करके आए हिन्दुओं को सम्मान से जीने के अधिकार का विरोध कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने कानून तो लागू कर दिया है, लेकिन अब उसे पूर्ण लागू कराने की चुनौती को भी स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि केरल और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में गैर-भाजपा सरकारें इस कानून को लागू करने में व्यवधान पैदा करेंगी। कांग्रेस की सरकारें भी केंद्रीय कानून को लागू करने में आना-कानी कर सकती हैं। दरअसल, कम्युनिस्ट, कांग्रेस और तृणमूल सरीखे अन्य राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति तो करते हैं, लेकिन आम मुसलमान की तरह ये राजनीतिक दल भी भ्रम का शिकार हैं। एक सामान्य पढ़ा-लिखा मुसलमान भी जानता है कि नागरिकता संशोधन कानून से उसका कुछ भी अहित नहीं होगा। यह कानून किसी भी रूप में मुस्लिम विरोधी नहीं है। ऐसे में इस कानून का विरोध करके राजनीतिक दल किसी समुदाय की सहानुभूति नहीं बटोर सकते। हाँ, सांप्रदायिक कट्टरपंथी तत्वों का विश्वास अवश्य ही वे जीत सकते हैं। मोदी सरकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि देश में ‘शाहीनबाग’ जैसे अराजक प्रदर्शन न हों। दिसंबर, 2019 में जब इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया था, तब देश के कई हिस्सों में अराजक प्रदर्शन शुरू हो गए थे। अब उस प्रकार के प्रदर्शन झेलने की स्थिति में भारत नहीं है। यदि कोई इस प्रकार के प्रदर्शन करता है, तब सरकार को पूरी सख्ती के साथ कार्रवाई करनी चाहिए। अतार्किक और अराजक प्रदर्शनों के नाम पर आम नागरिकों को परेशानी में नहीं डाला जा सकता। उम्मीद है कि सरकार सहजता के साथ सब प्रकार की स्थितियों को संभाल लेगी।
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