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आपातकाल के जिक्र ने उजागर किया संविधान रक्षा का ढोंग

सत्ता पाने के लिए लोकसभा चुनाव के समय से कांग्रेस ने ‘संविधान की रक्षा’ का राग आलापना शुरू किया। एक भ्रामक विमर्श के सहारे लोकसभा में 99 सीट पाने के बाद उत्साहित कांग्रेस ने ‘संविधान की रक्षा’ के नाम पर भाजपा और राष्ट्रीय विचार के संगठनों के प्रति झूठ का पहाड़ खड़ा करने का प्रयास किया। कांग्रेस की मंशा थी कि समाज में यह स्थापित हो जाए कि भाजपा और आरएसएस संविधान के दुश्मन हैं। भाजपा ने कांग्रेस के झूठे और राजनैतिक आरोपों का कई बार खंडन किया और वास्तविकता को सबके सामने रखने का प्रयास किया। संसद के विशेष सत्र में भी आपातकाल पर प्रस्ताव लाकर यह समझाने का प्रयास किया कि संविधान की प्रतिष्ठा को यदि किसी ने सर्वाधिक क्षति पहुँचाई है तो वह कांग्रेस की सरकारें हैं, जिन्होंने आपातकाल थोपकर लोकतंत्र की हत्या की, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल दिया और नागरिकों के मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए। इतना ही नहीं तो कांग्रेस की सरकारों ने प्रारंभ से ही देश के विभिन्न राज्यों की चुनी हुई सरकारों को भी बर्खास्त किया है। संविधान में भी अनेक प्रकार के बदलाव कांग्रेस ने किए हैं। यहाँ तक कि संविधान की आत्मा कही जानेवाली ‘प्रस्तावना’ को ही बदल दिया। परंतु, कांग्रेस के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया। इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने भी मन बना लिया कि वह संविधान के मुद्दे पर कांग्रेस से सीधा मुकाबला करेगी और अब इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई लड़ेगी। यही कारण था कि भारत सरकार ने आपातकाल और कांग्रेस की वास्तविकता से समाज को परिचित कराने के लिए प्रतिवर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। यह वही दिनांक है, जिस दिन कांग्रेस की नेता एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश को आपातकाल के अंधकार में धकेल दिया था। नि:संदेह, ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का राजग सरकार का निर्णय राजनीतिक है। राजनीति का जवाब राजनीति से ही दिया जा सकता है। संविधान की ‘पॉकेट प्रति’ लेकर संसद के बाहर और भीतर घूम रहे कांग्रेसी एवं विपक्षी नेताओं की संविधान के प्रति संवेदनशीलता कितनी है, यह देश के सामने लाना आवश्यक था। यदि वाकई कांग्रेस के मन में संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा होती, तब वह आपातकाल के जिक्र पर अपनी गलती के लिए देश से क्षमा माँगती या फिर चुप रह जाती लेकिन कांग्रेस के धुरंधर तो बेशर्मी से आपातकाल को उचित ठहरा रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि आपातकाल को संवैधानिक एवं उचित ठहराने में कांग्रेस का साथ ऐसे लोग भी दे रहे हैं, जिनके राजनीतिक एवं पारिवारिक पुरुखों को आपातकाल में जेल में डालकर अमानवीय यातनाएं दी गई थीं। राजनीतिक स्वार्थ इतना अधिक हावी है कि लोग सबकुछ भूलकर आपातकाल को सही ठहरा रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों को देखकर कहा जा सकता है कि सरकार ने ‘संविधान हत्या दिवस’ की घोषणा करके उचित ही किया ताकि वर्तमान एवं आनेवाली पीढ़ी को आपातकाल का सच पता चल सके। दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई नेता एवं बुद्धिजीवी कह रहे हैं कि “तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लगाया था, क्योंकि देश में अराजकता थी”। ये लोग यशस्वी समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश और जनता के आंदोलन को अराजक कह रहे हैं। आज के तथाकथित समाजवादी नेता भी लोकनायक के आंदोलन को अराजक कहने का अपराध कर रहे हैं। सोचिए, जो लोग संविधान और लोकतंत्र की हत्या करनेवाले ‘आपातकाल’ को सही ठहरा रहे हैं, संविधान के प्रति उनकी निष्ठा कितनी झूठी होगी। संविधान की प्रति लहराकर भाषणबाजी करना एक बात है और वास्तव में उसकी रक्षा एवं सम्मान करना दूसरी बात है। भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं ने संविधान की रक्षा एवं प्रतिष्ठा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई है। गोवा की स्वतंत्रता से लेकर जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय ध्वज और भारतीय संविधान को लागू कराने के लिए किसने आंदोलन चलाए और प्राणों की आहूति दी? जम्मू-कश्मीर में संविधान और राष्ट्रध्वज की गरिमा को दोयम दर्जे पर रखकर ‘दो विधान, दो निशान, दो प्रधान’ की व्यवस्था को किसने स्वीकार किया था? किसने ‘एक विधान (संविधान), एक निशान (तिरंगा), एक प्रधान (प्रधानमंत्री)’ के लिए चलाए गए राष्ट्रीय आंदोलन का विरोध किया और आंदोलनकारियों पर लाठियां चलवाईं? आपातकाल में भी लोकतंत्र एवं संविधान की पुन: प्रतिष्ठा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं जनसंघ के लाखों कार्यकर्ताओं ने संघर्ष किया, जेल में यातनाएं भोगी और प्राण भी गवाएं थे। इसके बाद भी यदि कोई भाजपा और संघ को संविधान विरोध कहे तब उसके कपट को उजागर करना आवश्यक हो जाता है। ‘संविधान हत्या दिवस’ यह कार्य भी करेगा। यदि इतिहास को याद नहीं किया जाएगा, तब भविष्य का पथ प्रशस्त नहीं हो सकता। संविधान की हत्या के अध्याय का पुनर्पाठ इसलिए भी आवश्यक है ताकि भविष्य में कोई और लोकतंत्र को कुचलने की हिम्मत न कर सके।

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