मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने आगामी शिक्षा सत्र से श्रीमद्भगवत गीता की शिक्षाओं एवं स्वातंत्र्यवीर सावरकर सहित अन्य यशस्वी क्रांतिकारियों के जीवन को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की घोषणा की है। सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। प्रत्येक व्यक्ति को सरकार की इस घोषणा का स्वागत करना चाहिए। हालांकि देश-प्रदेश में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो श्रीमद्भगवत गीता और स्वातंत्र्यवीर सावरकर के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ेंगे। कांग्रेस ने वीर सावरकर को पाठ्यक्रम में शामिल करने के निर्णय पर अपनी नकारात्मक टिप्पणी दी है। कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि यह आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर लिया गया राजनीतिक निर्णय है। वीर सावरकर का अपमान करने के लिए कुख्यात हो चुकी कांग्रेस ने बहुत ही आपत्तिजनक टिप्पणी की है कि “सावरकर को पढ़ाया जाना वीर शहीदों का अपमान हैं…”। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के संबंध में यह बात तो अब जगजाहिर हो चुकी है कि कांग्रेस अपने पूर्वजों (पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी) के विचारों को भी नहीं मानती है। अब इस टिप्पणी से यह भी ध्यान आता है कि उसने वीर सावरकर के संबंध में महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे प्रखर राजनेताओं के विचार पढ़े नहीं हैं या जानबूझकर उनकी अनदेखी करती है। वीर सावरकर के बारे में सरदार भगत सिंह, मदनलाल ढींगरा, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लाल हरदयाल, भाई परमानंद, अनंत कान्हेरे जैसे यशस्वी क्रांतिकारियों के विचारों से भी कांग्रेस अनभिज्ञ है या फिर जानबूझकर उन विचारों पर पर्दा डालने का काम करती है। सरदार भगत सिंह ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को आदर्श, पूजनीय एवं वीर बताते हुए उस समय आलेख लिखा, जब सावरकर कालापानी की सजा से छूटकर आ गए और रत्नागिरी में अंग्रेजों की कठोर निगरानी में हैं। कम्युनिस्टों द्वारा गढ़े गए झूठ के आधार पर कहें तो ‘कालापानी से बाहर आकर सावरकर अंग्रेजों के लिए काम कर रहे थे’। भला अंग्रेजों के पिट्ठू बन चुके सावरकर के लिए सरदार भगत सिंह इतनी श्रद्धा क्यों प्रकट कर रहे थे? जब वीर सावरकर रत्नागिरी में थे, तब महात्मा गांधी ने स्वयं वहाँ जाकर उनसे भेंट की और पुन: मिलने का आग्रह भी किया। भारत की स्वतंत्रता से ठीक सात वर्ष पहले 1940 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने वीर सावरकर के निवास पर आकर लंबी चर्चा की। अनेक विद्वान लेखकों ने लिखा है कि इस मुलाकात में ही वीर सावरकर ने नेताजी को कहा कि वे देश के बाहर जाकर विदेशों में कैद भारतीय सैनिकों को मुक्त कराकर एक सेना का गठन करें। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इसके बाद ही आजाद हिंद फौज का गठन किया। यह भी स्मरण रखें कि आजाद हिंद फौज में मातृशक्ति की टुकड़ी ‘रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट’ की प्रेरणा भी वीर सावरकर के महान ग्रंथ ‘1857 का स्वातंत्र्यसमर’ था। भारत माँ के सच्चे सपूत वीर सावरकर के अंध विरोध में बहुत आगे निकल चुकी कांग्रेस को समझना होगा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर को पढ़ाए जाने से क्रांतिकारियों का अपमान नहीं अपितु मान ही बढ़ेगा कि एक विशेष उपनामवाले राजनेताओं के महिमामंडन से इतर किसी सरकार ने क्रांतिकारियों के योगदान को रेखांकित करने का प्रयास शुरू किया है। नि:संदेह, जब स्वातंत्र्यवीर सावरकर और अन्य यशस्वी क्रांतिकारियों की गौरव गाथाओं को पढ़ाया जाएगा, तब भारत के बाहर से आयातित विचारधारा द्वारा भारतीय नायकों के प्रति दुष्प्रचार नवागत पीढ़ी को भ्रमित नहीं कर पाएगा। हालांकि, एक आशंका सदैव बनी रहेगी कि जब भी कांग्रेस को सत्ता मिलेगी, वह पाठ्यक्रमों से भारत के नायकों को बाहर करके कुछेक राजनेताओं एवं मुगलिया सल्तनत के महिमामंडन करनेवाले पाठों को शामिल कर लेगी। उसका नवीनतम उदाहरण है, कर्नाटक की कांग्रेस सरकार। कर्नाटक में सत्ता में आते ही कांग्रेस ने पाठ्यक्रम से स्वातंत्र्यवीर सावरकर और जन्मजात देशभक्त क्रांतिकारी-स्वतंत्रता सेनानी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के अध्याय हटाने का निर्णय किया है।
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