एक चुनाव एक देश के विचार की व्यवहार्यता को लेकर केन्द्र द्वारा नियुक्त समिति ने दो टूक मत रख दिया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में बनी समिति ने कहा है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने से पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और मतदाताओं का विश्वास बढ़ेगा। इसका देश की 4 राष्ट्रीय पार्टियों ने विरोध किया है जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। देश की जिन 62 पार्टियों से संपर्क किया गया था, उनमें से 32 ने इसका समर्थन किया है।
यदि यह रिपोर्ट स्वीकार होती है तो देश में 2029 में होने वाले चुनावों में लोकसभा व अनेक विधानसभाओं का निर्वाचन एक साथ हो सकता है। जाहिर है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल आगे-पीछे हो सकता है। ज्यादातर को समय से पहले चुनाव का सामना करना पड़ सकता है।
एक राष्ट्र-एक चुनाव का विचार जबसे मोदी सरकार ने रखा है, तब से इस पर काफी बहस-मुबाहिसे हो चुके हैं। लेकिन तब इस विचार पर ही बहस की जा रही थी, अब इस पर उच्च स्तरीय समिति की 18626 पन्नों की रिपोर्ट शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु को सौंप दी है। पिछले साल 2 सितंबर को गठित समिति ने तेजी से जनमत जानकर और उस पर विमर्श करके रिपोर्ट दी है। समिति के सामने न केवल लोकसभा व विधानसभा अपितु नगरीय निकायों के चुनावों को भी एक साथ कराने का प्रश्न विचारार्थ रखा गया था। मोदी सरकार इसके पक्ष में है जैसा कि प्रधानमंत्री सहित उसके प्रतिनिधि कई मंचों से कई बार कह चुके हैं। उनके तर्क भी मजबूत और अनुभव आधारित है। देश में साठ के दशक के अंत से ही लोकसभा व विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे हैं। इसके अलावा काफी समय नगरीय निकाय चुनाव में जाता है। अनुभव यह है कि अब प्रशासन पूरे पांच साल चुनाव कराने में ही लगा रहता है। इससे सरकारी काम प्रभावित होता है जिसके परिणामस्वरूप जनता को भी भुगतना पड़ता है। इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव यह भी होता है कि कई योजनाओं को तात्कालिकता में चुनावी लाभ के लिए लागू किया जाता है। अलग-अलग चुनावों से धन का अपव्यय भी होता है। यह विडंबना है कि पहले यह सभी चुनाव एक साथ होते थे,तब किसी ने अलग-अलग कराने की मांग नहीं की थी। किंतु आज कुछ लोग जिनमें कतिपय राजनीतिक दल भी शामिल हैं, इनके एक साथ होने को लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं मानते। कुछ विपक्षी दलों के विरोध के पीछे उनके हितों पर पड़ने वाला प्रभाव है पर वे एक साथ चुनाव कराने से केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी को मिलने वाले संभावित खतरे की आशंका से ग्रस्त हैं। अलग-अलग चुनाव होने से उन्हें केंद्र से अलग राज्य के मुद्दों पर मतदाता को रिझाने का ज्यादा मौका मिलता है। कुछ क्षेत्रीय दल इस तरह का कानून लागू किए जाने पर अपनी सरकारों के समयपूर्व भंग होने की आशंका से विचलित है और एक दूरगामी सुधार के विरोध में उतर रहे हैं। क्षेत्रीय दलों को अपनी ढपली केंद्र से अलग बजाने में ही लाभ नजर आता है लेकिन देश को यह समझना होगा कि अब मतदाता इतना समझदार हो चुका है कि यदि एक साथ चुनाव होते हैं तो भी वह केन्द्र में किसे चुनना है और राज्य में किसे, यह भली-भांति आकलन कर लेता है। एक साथ चुनाव होने से कुछ विसंगतियां पैदा होने का खतरा जरूर अभी नजर आ रहा है किंतु अभी रिपोर्ट पर संसद में विचार होगा और अनुभव से संशोधन व सुधार भी होते रहेंगे। एक बड़े विचार को छोटी समस्याओं के कारण छोड़ने की बजाय सुधारों को आजमाना चाहिए। चुनावों में धन की फिजूलखर्ची को रोकना भी देश के विकास के लिए जरूरी है।
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