यह आनंद का विषय है कि भाजपा की ओर से संसद में ‘श्रीराम मंदिर के निर्माण और श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा’ विषय पर प्रस्ताव लाया गया। प्रभु श्रीराम भारत की आत्मा हैं, अस्मिता हैं। भगवान राम भारत के प्राण और प्रेरणा है। इसलिए जब भी आदर्श राज्य की कल्पना की जाती है तो रामराज्य का जिक्र आता है। हालांकि यह दुःख की बात है कि भारत की प्रतिष्ठा से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण उपमाओं/आकांक्षाओं का विपक्ष के कुछ दलों/नेताओं द्वारा उपहास बनाया जाता है। जैसे, विश्वगुरु को लेकर व्यंग्य किए जाते हैं, उसी तरह कुछ दिन से रामराज्य को लेकर छींटाकसी की जा रही है। कांग्रेस भूल गई कि वह जिन महात्मा गांधी के नाम का दोहन अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए करती है, उनकी आकांक्षा भी रामराज्य की स्थापना थी। खैर, अंधविरोध में कुछ दिखता कहां है? संसद में राममंदिर से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर चर्चा ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि सही अर्थों में राम किसके लिए श्रद्धा का विषय हैं और कौन अपनी तुष्टिकरण की नीति एवं वोटबैंक के भय से राम का नाम लेने से भी बचाता है। भाजपा ने एक बार फिर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों को अवसर दिया था कि वे राममंदिर को लेकर की गईं अपनी गलतियों को सुधार लें। लेकिन, साफ दिखाई पड़ता है कि विपक्ष के कई दल तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति से उसी तरह चिपक गए हैं, जैसे कोई मक्खी मीठे के लालच में गुड़ की डली से चिपक जाती है और उसमें चिपककर ही अपना जीवन समाप्त कर लेती है। श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा उत्सव का निमंत्रण ठुकराने के बाद मिली फजीहत से भी कांग्रेस ने सबक नहीं लिया। कांग्रेस चाहती तो संसद में ऐतिहासिक श्रीराम मंदिर के निर्माण और श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए हर्ष व्यक्त कर सकती थी। श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा को ऐतिहासिक बता सकती थी। हिंदू समाज की वर्षों की प्रतीक्षा पूरी होने पर आनंद व्यक्त कर सकती थी। कांग्रेस के नेता चाहते तो राममंदिर पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव का स्वागत कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस और उसके नेताओं ने अपनी छवि सुधारने का यह अवसर भी गंवा दिया। कांग्रेस ने तय कर लिया है कि वह वोटबैंक रूपी गुड़ की डली में चिपके रहकर ही समाप्त हो जाना चाहेगी। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि स्वयं को सेकुलर बताने वाले घोर सांप्रदायिक नेता असुद्दीन ओवैसी ने न केवल राममंदिर निर्माण का विरोध किया अपितु बाबरी मस्जिद जिंदाबाद का नारा भी संसद में लगाया। इस तरह के मुस्लिम नेता संपूर्ण मुस्लिम समुदाय को बदनाम करते हैं। आखिर ओवैसी का बाबर से क्या रिश्ता है? क्यों भारत के मुसलमान को विदेशी आक्रांता बाबर से अपना नाता जोड़ना चाहिए? जो भी व्यक्ति बाबर जैसे आक्रांताओं को अपना नायक मानता है, भारत के प्रति उसकी निष्ठा सदैव संदिग्ध रहेगी। भारत पर आक्रमण करनेवाला भारत के नागरिकों का हीरो नहीं हो सकता। संभवतः ओवैसी ने अयोध्या धाम में पहुंच रहे मुस्लिम लोगों के श्रीराम के प्रति भाव नहीं देखे हैं। भारत का मुसलमान कैसा होना चाहिए, राम के प्रति श्रद्धा प्रकट कर रहे मुस्लिमों से सीखना चाहिए। ओवैसी जैसे नेताओं को दरकिनार करने का समय आ गया है। इस तरह के लोग कभी भी भारत में शांति और सद्भाव का निर्माण नहीं होने देंगे। हम सबको एक बात अवश्य समझ लेनी चाहिए कि भगवान श्रीराम अवश्य ही हिंदू धर्म के आराध्य हैं लेकिन वास्तविक अर्थों में श्रीराम समूची दुनिया के प्रेरणा स्रोत हैं। राम के बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सदन में स्वतंत्रता के बाद जो महत्वपूर्ण प्रस्ताव आए हैं उनमें एक रामजन्म भूमि से संबंधित प्रस्ताव है। उन्होंने भी संकेत रूप में कहा कि इस मुद्दे पर आज भी कई दल वोटबैंक के कारण चुप हैं या चर्चा से बचने के लिए डरकर मैदान छोड़कर भाग गए हैं। बहरहाल, भाजपा को साधुवाद कि वह श्रीरामजन्मभूमि से जुड़ा प्रस्ताव संसद में लेकर आई और उस पर सार्थक चर्चा कराई। इससे देश की जनता को राजनीतिक दलों की नीति और नीयत को पहचानने में सहायता भी मिलेगी।
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