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चयनित दृष्टिकोण और पाखंड

कोलकाता दुष्कर्म-हत्याकांड ने कई चेहरों के नकाब नोंचकर उन्हें बेपर्दा कर दिया है। महिला संबंधी मामलों में झूठी संवेदनाएं दिखाने वाले राजनेताओं, लेखकों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने कोलकाता के मामले में राजनैतिक एवं वैचारिक प्रतिबद्धताओं के कारण अपने मुंह सिल लिए या फिर निर्लज्जता के साथ निरंकुश सरकार एवं प्रशासन का बचाव कर रहे हैं। कितनी शर्मनाक बात है कि दुष्कर्म के मामलों में भी राजनैतिक एवं वैचारिक दृष्टिकोण का ध्यान रखा जाता है। उत्तरप्रदेश की हालिया दो घटनाओं में भी यह शर्मनाक चुप्पी दिखायी दी क्योंकि दुष्कर्म के आरोपी समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं। दिल्ली का निर्भया मामला हो या हैदराबाद की चिकित्सक की हत्या का मामला, पाखंड स्पष्ट दिख जाता है। कोलकाता के प्रकरण ने पश्चिम बंगाल की सरकार, प्रशासन और राजनीतिक स्थितियों की कलई भी खोल कर रख दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर महुआ मोइत्रा और सागरिका घोष तक की चुप्पी पर लोगों ने सवाल उठाए हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की स्थिति यह है कि वे अपने ही खिलाफ रैली निकाल रही हैं। जबकि उनसे अपेक्षा है कि मामले में कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें और पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाएं। साथ यह भी सुनिश्चित करें कि भविष्य में इस प्रकार का जघन्य अपराध करनेवालों की रूह कांप उठे। पश्चिम बंगाल में अपराधियों के बेखौफ अंदाज को देखकर यही कहा जा सकता है कि राज्य में सरकार का इकबाल खत्म हो चुका है। इसलिए मुख्यमंत्री भी लाचार नजर आ रही हैं। राजनीतिक संरक्षण में जिन आपराधिक तत्वों को पाला-पोषा गया, अब वे भस्मासुर बन चुके हैं। आपराधिक तत्वों पर न तो तृणमूल कांग्रेस का कोई नियंत्रण है और न ही ममता सरकार का। सरकार और प्रशासन की जिस तरह की भूमिका और निष्क्रियता नजर आ रही है, उससे साफ संकेत मिलता है कि अपराधियों को सबूत मिटाने के पर्याप्त अवसर दिए जा रहे हैं। कोलकाता पुलिस को जिस प्रकार से सरकार ने विरोधियों को दबाने के लिए लगा रखा है, वह निंदनीय है। सोशल मीडिया पर अपना आक्रोश जता रहे लोगों को नोटिस देने की अपेक्षा कोलकाता पुलिस को अपराधियों को दबोचने में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए। लेकिन प्रशासन से लेकर ममता समर्थक बुद्धिजीवियों की चिंता पीड़िता को न्याय दिलाने की अपेक्षा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की छवि को बचाने में है। क्या अब पीड़िता को न्याय दिलाने की माँग करना कानूनन अपराध है? अपराधियों को गिरफ्तार करके पीड़ित को न्याय दिलाने की माँग करना क्या अपराध है? कानून व्यवस्था के लिए मुख्यमंत्री से जिम्मेदारी लेने की माँग करना क्या अपराध है? पश्चिम बंगाल की सरकार और प्रशासन को यह सब अपराध लगाता है, इसलिए इस मुद्दे पर आवाज उठानेवाले नागरिकों को कानूनी नोटिस दिए जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकार का मकसद न्याय दिलाने से अधिक जल्द से जल्द मामले को दबाना है। याद हो, संदेशखाली में भी सैकड़ों पीड़ित महिलाओं की आवाज को भी ममता सरकार और उनके प्रशासन ने दबा दिया था। महिलाओं से जुड़े अपराध के मामलों में जिस प्रकार की उदासीनता ममता सरकार ने दिखायी है, वह चिंताजनक है। महिला मुख्यमंत्री होकर भी महिलाओं से जुड़े मामले में उनकी संवेदनाएं दिखती नहीं है। राजनैतिक एवं वैचारिक प्रतिबद्धताओं के कारण चयनित दृष्टिकोण रखने वाले लोगों को समझना होगा कि दुष्कर्म और घृणित अपराध के मामले इस सबसे परे होते हैं। इनके विरुद्ध हमें एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए।

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