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सरसंघचालक का संदेश

देश में जब राजनीतिक वातावरण में एक-दूसरे के प्रति कटुता बढ़ गई है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने एक सामाजिक एवं राष्ट्रीय विचार के संगठन के प्रमुख होने के नाते सबको संदेश देने का कार्य किया है। नागपुर में आयोजित संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग-द्वितीय के समापन में उन्होंने देश की परिस्थितियों को पहचानकर कहा कि लोकसभा के चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों ने मर्यादा का उल्लंघन किया। यह बात उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के लिए कही है। कोई ऐसा न समझे कि उन्होंने भाजपा या कांग्रेस को संदेश देने का प्रयास किया है। दरअसल, कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान में इतनी अधिक नकारात्मकता एवं कटुता थी कि प्रत्युत्तर में भाजपा भी कभी-कभी उतनी ही कठोर दिखायी दी। कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति चुनाव प्रचार अभियान में जिस प्रकार से ‘तू-तड़ाक’ की भाषा-शैली का उपयोग किया, उससे न केवल भाजपा के नेता अपितु प्रधानमंत्री मोदी के प्रति श्रद्धा भाव रखनेवाले आम नागरिकों को भी आक्रोश आया था। कुछ स्थानों पर भाजपा के नेताओं ने भी राजनीतिक शिष्टाचार का उल्लंघन किया। भाजपा के एक प्रचार वीडियो को लेकर न्यायालय ने भी सख्त टिप्पणी की थी। यह बात सही है कि जब प्रतिद्वंद्वी की ओर से निचले स्तर का प्रहार किया जाए, तब उसे चुपचाप सहन करना भी सरल नहीं होता है। स्वाभाविक ही प्रतिद्वंद्वी को उसी भाषा में जवाब दिया जाने लगता है। परंतु हमें यह स्वीकार करना होगा कि इस आरोप-प्रत्यारोप और नकारात्मक राजनीति का असर सीधे समाज पर पड़ता है। राजनीतिक चुनाव प्रचार के दौरान दोनों पक्षों की जनता भी अत्यंत भावपूर्ण रहती है, इसलिए उनके मन में भी यह नकारात्मकता गहरे बैठ जाती है। जिसका परिणाम हमें पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के रूप में दिखायी देता है। अन्य स्थानों पर भी छिटपुट भिंड़त के समाचार आते हैं। सभी राजनीतिक दलों को समझना होगा कि यह केवल चुनाव है, कोई युद्ध नहीं है। यदि एक-दूसरे के प्रति यही नकारात्मकता जारी रही तब सामाजिक और मानसिक दरारें बढ़ना तय है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि कांग्रेस की ओर से राजनीतिक शिष्टाचार की सर्वथा अनदेखी की जा रही है। कांग्रेस के नेता ही नहीं अपितु प्रवक्ता भी अत्यधिक आक्रामकता से भरे नजर आते हैं। जिस प्रकार से उन्होंने एग्जिट पोल करनेवाली कई एजेंसियों में से केवल एक ही एजेंसी और उसके प्रमुख को लक्षित किया, उसे लोकतांत्रिक मूल्यों एवं स्वतंत्रता पर खतरे की तरह देखा जाना चाहिए। इसी प्रकार पत्रकारों को भी लक्षित करके निशाना बनाया गया है। सरसंघचालक ने एक बार फिर यह समझाने का प्रयास किया है कि चुनाव में क्या परिणाम रहा, किसे जनादेश मिला और किसे नहीं, संघ इसका विश्लेषण नहीं करता है। संघ ने केवल मताधिकार का प्रतिशत बढ़ना चाहिए, इसके लिए ही सामाजिक संगठन के रूप में सदैव अपनी भूमिका का निर्वहन किया है। इसलिए उन्होंने उन राजनीतिक दलों को संदेश देना का प्रयास किया है कि संघ को अनावश्यक रूप से अपनी आपसी राजनीति में शामिल न किया जाए। याद हो कि इस चुनाव में विपक्ष की ओर से तकनीक का सहयोग लेकर अनेक प्रकार के झूठ फैलाए गए। कई झूठ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर भी फैलाए गए, जिनका खंडन समय-समय पर संघ की ओर से किया गया। सरसंघचालक जी ने तकनीक के इस प्रकार के दुरुपयोग को रोकने का भी आग्रह किया है। उन्होंने सभी दलों को समझाने का प्रयास किया है कि 100 प्रतिशत लोगों का एकमत होना संभव नहीं है। यह बात हमारे ऋषि भी जानते थे। इसलिए आम सहमति से ही निर्णय करना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने राजनीतक दलों एवं नेताओं को बहुत ही आवश्यक संदेश दिया है। उनके विचारों पर सभी राजनीतिक दलों एवं नेताओं को पूर्वाग्रह से मुक्त होकर ध्यानपूर्वक मनन करना चाहिए। देश में राजनीतिक सद्भाव एवं शिष्टाचार की स्थापना करना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

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