कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के नेता जिस समय चुनाव आयोग सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास का वातावरण बनानेवाले बयान दे रहे हैं, तब भाजपा के पक्ष में जनता के विश्वास की झलक अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा परिणामों में दिखायी देती है। लोकसभा चुनाव के परिणाम आज आएंगे, उनकी भी एक झलक एग्जिट पोल में हम देख चुके हैं। इसी बीच लोकसभा चुनाव के साथ ही सम्पन्न हुए दो राज्यों- अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के विधानसभा चुनाव के परिणाम रविवार को आए। ये परिणाम भाजपा के पक्ष में बने वातावरण के गवाह तो है हीं, कई मुद्दों पर विपक्ष को भी आईना दिखाते हैं। ‘एक देश-एक चुनाव’ के विचार का विरोध करनेवाले विपक्ष को इन परिणामों से समझना चाहिए कि जनता अपने मताधिकार का उपयोग करने में बहुत समझदार है। उसे पता है कि राज्य के मुद्दे क्या हैं और केंद्र सरकार के मुद्दे क्या हैं? राज्य में उसकी अपेक्षाओं को कौन पूरा कर सकता है और राष्ट्रीय स्तर पर देश को कौन संभाल सकता है। अरुणाचल प्रदेश में अवश्य ही जनता ने इतिहास रचते हुए तीसरी बार भाजपा को जनादेश दिया है। 60 में से 46 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की है, जिनमें से 10 सीट पर भाजपा के प्रत्याशी निर्विरोध जीते हैं। वहीं, कांग्रेस के हिस्से में केवल 1 सीट ही आई है। परंतु, सिक्किम में लोकसभा चुनाव की लहर का विधानसभा चुनाव पर कोई असर नहीं दिख रहा है। यहाँ भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी है। यहाँ एसकेएम ने एकतरफा जीत दर्ज की है। उसने 32 में से 31 सीट जीतकर इतिहास रचा है। राष्ट्रीय नेता के प्रभाव से भयभीत विपक्ष को इस बात का विश्लेषण करना चाहिए कि जनता ने विधानसभा और लोकसभा में किस आधार पर अलग-अलग दृष्टिकोण से मतदान किया। वहीं, कांग्रेस को चाहिए कि वह चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं पर संदेह करने की जगह आत्मचिंतन करे। चुनाव आयोग ने भी सोमवार को कांग्रेस के आचरण की तीखी आलोचना की है। दरअसल, कांग्रेस की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल आयोग के पास कुछ अनावश्यक आपत्तियां लेकर पहुँचा था और कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया था कि गृहमंत्री अमित शाह ने देश के 150 से अधिक कलेक्टरों को फोन किया है। अर्थात् चुनाव में हस्तक्षेप के लिए गृहमंत्री की ओर से कलेक्टरों को फोन गया है। यह सीधेतौर पर चुनाव आयोग और भारतीय निर्वाचन प्रणाली के प्रति जनता के मन में अविश्वास निर्मित करने का हथकंडा है। चुनाव आयोग ने इस मनगढ़ंत आरोप के प्रमाण कांग्रेस से माँगे हैं। स्वाभाविक ही है कि कांग्रेस के पास इसके कोई प्रमाण नहीं होंगे क्योंकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि वह आरोप लगाकर भाग जाती है। भाजपा ने उचित ही माँग की है कि चुनाव आयोग को झूठे आरोप लगानेवाले नेताओं एवं दलों के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए। अन्यथा विपक्षी दल इसी प्रकार से संवैधानिक व्यवस्था को लक्षित करते रहेंगे। यह भी कहा जा सकता है कि अपनी नाकामी को छुपाने एवं कांग्रेस की दुर्गति के दोषियों को आड़ देने के लिए कांग्रेस के नेताओं की ओर से चुनाव आयोग को बार-बार निशाने पर लिया जा रहा है। यदि पराजय की निष्पक्ष जाँच होगी, तब चुनाव की कमान संभालनेवाले बड़े नेताओं की कुशलता एवं नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े होंगे। परंतु इस प्रकार के हथकंड़ों से उन सवालों से तो बचा जा सकता है लेकिन पार्टी की स्थिति को नहीं सुधारा जा सकता और न ही जनता के विश्वास को अर्जित किया जा सकता है।
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