कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी से लेकर दिग्विजय सिंह तक की बयानबाजी सुनकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस अभी तक राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को स्वीकार नहीं कर सकी है। उसे अभी भी कहीं न कहीं अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आयोजन एवं मंदिर निर्माण का प्रकल्प खटक रहा है। एक ओर, कांग्रेस के मुख्य नेता राहुल गांधी ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर मिथ्याप्रचार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, एक जमाने में उनके राजनीतिक गुरु रहे वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को अभी तक तथाकथित बाबरी ढांचा टूटने का दु:ख है। दिग्विजय सिंह ने गुना में आयोजित एक सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में अमर्यादित शब्दों का उपयोग करते हुए कहा- “रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। मस्जिद तोड़कर बनाएंगे। इन्हें धर्म से कुछ लेना-देना नहीं था, इनको मस्जिद तोड़ना था”। दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जिन्हें रह-रहकर तथाकथित बाबरी ढांचे की याद आती रहती है। वे यह कभी नहीं बताते कि भगवान राम की जन्मभूमि पर मस्जिद कहाँ से आई? वहीं, कथित भारत जोड़ो न्याय यात्रा में दिए गए अपने भाषण में राहुल गांधी ने झूठ ही नहीं बोला है अपितु एक अन्य जगह उन्होंने ऐश्वर्या राय बच्चन का उल्लेख करते हुए स्त्री विरोधी टिप्पणी भी की है, जिसको लेकर उनकी खूब आलोचना हो रही है। राहुल गांधी ने कहा कि “क्या आपने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह देखा? क्या वहां एक भी ओबीसी चेहरा था? वहां अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय और नरेंद्र मोदी थे। कुल आबादी का 73 फीसदी हिस्सा हैं, वे कार्यक्रम के दौरान कहीं नजर नहीं आया”। राहुल गांधी का यह बयान बताता है कि वे तीन बड़े राज्यों में बड़ी पराजय के बाद भी जातिगत राजनीति से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इसलिए कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ओबीसी होने को लेकर भ्रम उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं, तो कभी राम मंदिर में ओबीसी वर्ग की उपस्थिति का प्रश्न उठाते हैं। संभवत: राहुल गांधी ने राम मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को ठीक से नहीं देखा। अन्यथा वे इस प्रकार का मिथ्या प्रलाप नहीं करते। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास को साधुवाद कि उसने संपूर्ण हिन्दू समाज को आयोजन में निमंत्रित किया। संभवत: भारत का ऐसा कोई भी वर्ग नहीं था, जो 22 जनवरी को श्रीरामलला के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थित नहीं था। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भारत के प्रमुख संप्रदायों के साथ ही रामसनेही, घीसा पंथ, गरीबदास, गौड़ीया, कबीरपंथी और वाल्मीकि परंपरा के महानुभाव भी उपस्थित रहे। प्राण-प्रतिष्ठा के साक्षी बनने के लिए 50 से अधिक आदिवासी, गिरिवासी, तटवासी, द्वीपवासी जनजातीय परंपराओं की उपस्थिति भी भारत के इतिहास में पहली बार हुई। भारत के स्वाभिमान से जुड़े इस आयोजन में सबकी उपस्थिति रही, प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से केवल उन्होंने ही दूरी बनायी, जो कदापि यह नहीं चाहते थे कि अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बने। प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव को देखकर प्रत्येक राम भक्त हर्षित होकर यही भाव प्रकट कर रहा था कि जिस प्रकार भगवान श्रीराम ने समूचे हिन्दू समाज को एकसूत्र में पिरोया था, उसी प्रकार उनकी जन्मभूमि पर बन रहा मंदिर भी हिन्दू समाज को समरसता के धागे से जोड़ रहा है। हमारा यह मंदिर हिन्दू चेतना का प्रतीक बनेगा। सामाजिक समरसता का केंद्र बनेगा। यह संभव है कि राहुल गांधी को यह भी न पता हो कि विश्व हिन्दू परिषद के प्रयासों से जब भगवान श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया गया था, तब भी अनुसूचित जाति से आनेवाले महानुभाव कामेश्वर चौपाल ने श्रीराम मंदिर की पहली ईंट रखी थी। कांग्रेस के नेताओं को समझना चाहिए कि राम मंदिर को लेकर लोगों की गहरी भावनाएं हैं, उनके इस प्रकार के बयानों से वे आहत होती हैं। नि:संदेह, इसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस पहले ही ‘राम का निमंत्रण’ ठुकराकर अपना नुकसान करा बैठी है, अब आए दिन राम मंदिर पर ऊल-जुलूल बयानबाजी करके क्यों आग में घी डालने का काम कांग्रेसी नेता कर रहे हैं, यह समझना कठिन है।
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