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माथापच्ची खत्म

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में माथापच्ची अब खत्म हो गया है। कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर घोषणा कर दी है कि कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार होंगे। कर्नाटक विधानसभा का स्पष्ट जनादेश मिलने के बाद भी कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए पाँच दिन तक उठा-पटक चलती रही। सिद्धारमैया और शिवकुमार, दोनों ही मुख्यमंत्री पद के लिए जोर-आजमाइश कर रहे थे। दो कद्दावर नेताओं के बीच की लड़ाई देखकर, मुख्यमंत्री पद के अन्य दावेदार भी प्रकट होने लगे थे। उन्होंने सोचा होगा कि शायद बिल्ली की भाग्य से छींका टूट जाए। परंतु कांग्रेस के आलाकमान का समर्थन प्राप्त करने में सिद्धारमैया सफल हुए। दोनों दिग्गज नेताओं की खींचतान से संशय भरा वातावरण तो बन गया था कि न जाने कब क्या हो जाए? भले ही कांग्रेस इस उठापटक को आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देकर छिपाने की कोशिश करे लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने उनकी शानदार जीत का स्वाद फीका तो किया है। जनता के बीच भी अच्छा संदेश नहीं गया है। सोशल मीडिया पर आनेवाली प्रतिक्रियाओं को देखें तो यही प्रतीत होता है कि मतदाता भी सोच रहे थे कि कांग्रेस को प्रचंड बहुमत देकर भी क्या लाभ, इसके नेता आपस में ही भिड़ते रहते हैं। बहरहाल, यहाँ डीके शिवकुमार की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा तो किया लेकिन पार्टी को संकट में नहीं डाला। उन्होंने शीर्ष नेतृत्व को यह कहकर शुरू में ही आश्वस्त कर दिया था कि “मैं न तो विश्वासघात करूंगा और न ब्लैकमेल करूंगा, पार्टी जो भी फैसला करेगी मुझे मान्य होगा”। हालांकि शिवकुमार के इस वक्तव्य का अपना महत्व है, लेकिन इससे यह तथ्य बदल नहीं जाता कि पर्दे के पीछे पार्टी में मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों गुटों में पाँच दिनों से घमासान चल रहा था और राष्ट्रीय नेतृत्व इतना लाचार था कि चाहकर भी कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाल पा रहा था कि जो दोनों नेताओं को खुशी-खुशी स्वीकार हो। बहरहाल, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की सक्रियता एवं राजनीतिक प्रभाव से दोनों नेताओं फिलहाल एक-दूसरे का सहयोग करने का रास्ता चुन लिया है। पूर्व में लग रहा था कि डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के अलावा कुछ और स्वीकार नहीं करना चाहते हैं। सिद्धारमैया के नेतृत्व में उपमुख्यमंत्री या अन्य मंत्री पद पर रहकर काम करने की उनकी रुचि कतई नहीं है। नि:संदेह बहुत मान-मनौव्वल के बाद ही उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार किया होगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में संकेत मिल रहे थे कि कर्नाटक में विभिन्न वर्गों को साधने के लिए कांग्रेस दो से तीन उपमुख्यमंत्री बनाएगी लेकिन अब केवल डीके शिवकुमार ही उपमुख्यमंत्री रहेंगे। इसके साथ ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी निभानी है। संभव है कि डीके शिवकुमार ने ही शर्त रखी हो कि यदि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है तब यह पद एक ही रहे, और उपमुख्यमंत्री न बनाए जाएं। सरकार में न सही, पार्टी में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए उन्होंने अध्यक्ष पद की शर्त भी रखी होगी। पाँच दिन से माथा-फोड़ी कर रहे कांग्रेस नेतृत्व के सामने इससे बेहतर और कोई रास्ता भी नहीं था। फिलहाल तो कर्नाटक का नाटक खत्म हो गया है, दोनों नेताओं के बीच का गतिरोध भी थम गया है लेकिन आपसी सामंजस्य की यह तस्वीर कब तक एक रहेगी, कहा नहीं जा सकता।

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