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राष्ट्रपति की चिंता

कोलकाता के मेडिकल महाविद्यालय में प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म एवं हत्या के मामले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जिस प्रकार अपनी पीड़ा व्यक्त की है, उसमें हम सबके लिए संदेश शामिल हैं। उनका यह कहना उचित ही है कि हम इस प्रकार की घटनाओं को कुछ समय के बाद सामूहिक रूप से भूल जाते हैं। यह भूलने की बीमारी ही महिलाओं के लिए समाज में एक अच्छा वातावरण बनाने में बाधक है। उन्होंने पीड़ा के साथ कहा कि बहुत हो गया है, अब कुछ करना होगा। सभ्य समाज में ऐसे अपराध स्वीकार्य नहीं होने चाहिए। उनकी पीड़ा को ध्यानपूर्वक सुना जाए तो यह भी अहसास होगा कि दुष्कर्म के मामले में जिस प्रकार की राजनीति हो रही है, जिस प्रकार से मामले को रफा-दफा करने और जनाक्रोश को दबाने का प्रयास पश्चिम बंगाल की सरकार की ओर से किया जा रहा है, उससे भी उनका मन आहत है। हमारे राजनीतिक दलों एवं नेताओं की सोच की सोच इतनी संकीर्ण हो गई है, वे दुष्कर्म जैसे अपराध में भी पक्ष-विपक्ष बना लेते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के पीड़ा से भरे बयान पर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं द्वारा ही नहीं अपितु कांग्रेस के नेताओं की ओर से भी ओछी राजनीति की जा रही है। यह हैरानी भरा है कि कांग्रेस के नेताओं को राष्ट्रपति से यह पूछने में शर्म नहीं आई कि राष्ट्रपति ने अन्य घटनाओं पर प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी? कांग्रेस अपने गिरेबां में देखे कि कोलकाता की नृशंस घटना में उसने कितनी बार और किस स्तर पर जाकर आवाज उठायी है? कांग्रेस या अन्य किसी को इस प्रकार का कुतर्क प्रस्तुत करने की अपेक्षा राष्ट्रपति के वक्तव्य को ध्यानपूर्वक सुनना/पढ़ना चाहिए। उन्होंने समूचे देश की चिंता की है। उन्होंने पुरानी घटनाओं से सबक नहीं लेने की बात भी कही है। उन्होंने यह भी कहा है कि एक ओर छात्र, डाक्टर और नागरिक कोलकाता में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो दूसरी ओर अपराधी अन्य जगहों पर घूम रहे थे। वे केवल कोलकाता की बात नहीं कर रहीं अपितु देश के विभिन्न हिस्सों में हो रही घटनाओं की ओर संकेत कर रही हैं। सभी घटनाओं का नाम लेना संभव भी नहीं है और उसकी आवश्यकता भी नहीं है। परंतु, जिनकी मानसिकता संकीर्ण हो चुकी हो, उनसे अपेक्षा ही क्या की जा सकती है? इस समय कांग्रेस किस संवैधानिक व्यवस्था को लक्षित नहीं कर रही है? उसकी ओर से लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति एवं आसंदी पर बैठने वाले अन्य महानुभावों को किस तरह निशाना बनाया गया, यह बीते संसदीय सत्र में सबने देखा। कांग्रेस को राष्ट्रपति महोदया की पीड़ा से परेशानी हो गई लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान का विरोध उसने नहीं किया, जिसमें वे कह रही हैं कि असम, दिल्ली और अन्य राज्यों में भी आग लगा देंगी। क्या कांग्रेस इस तानाशाही रवैये से सहमत है? क्या कांग्रेस इस बात पर सहमत है कि पश्चिम बंगाल की भयावह घटना के विरुद्ध लोग अपना आक्रोश भी व्यक्त न करें? आखिर राष्ट्रपति महोदया के वक्तव्य पर अपनी ओछी मानसिकता प्रकट कर रहे नेता उनकी यह बात सुनने को क्यों नहीं तैयार कि समाज के तौर पर हमें आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है और निर्भय वातावरण बनाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यता है। सभी राजनेताओं को कम से कम दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध पर सस्ती राजनीति करने से बाज आना चाहिए। याद रखें कि कोलकाता की घटना पर देश इसलिए भी गुस्से में है, क्योंकि ममता सरकार और उनकी पुलिस ने इस घटना पर लीपापोती करने की कोशिश की। इसी कारण उसे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय से फटकार मिली। राजनीतिक दलों को यह समझने की आवश्यकता है कि सभ्य समाज को शर्मिंदा करने वाली दुष्कर्म की घटनाओं पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर एक स्वर में निंदा की जानी चाहिए। जघन्य अपराधों पर अपना बचाव करने के लिए ओछी राजनीति करना किसी को शोभा नहीं देता है।

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