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जाति पर राजनीतक उबाल

यह देखना आश्चर्यजनक है कि जो देशभर में सबकी जाति पूछते घूम रहे हैं, उनसे जब उनकी जाति पूछ ली गई तो उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया गया। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने संसद में अपने भाषण में तंज कसते हुए कहा कि “जिनकी खुद की जाति नहीं पता, वह जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं”। उनके इतना कहते ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी खड़े हो गए और उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें गाली दी गई है। उसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भी खड़े हो गए और आक्रोशित होकर कहने लगे कि “सदन में जाति कैसे पूछी गई”? पहली बात तो अनुराग ठाकुर ने किसी का नाम नहीं लिया था लेकिन कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने खुद ही उनके बयान को राहुल गांधी पर थोप दिया। प्रश्न यह भी है कि यदि जाति पूछना गाली देना है, तब जातिगत जनगणना में करोड़ों भारतीय नागरिकों की जाति पूछना क्या कहलाएगा? एक दिन पहले ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी फोटो दिखाकर प्रशासनिक अधिकारियों एवं मंत्रियों की जाति पूछ रहे थे। तब क्या वे भी उन कर्मठ अधिकारियों को गाली दे रहे थे, जो अपने परिजनों की मृत्यु का समाचार पाकर भी बजट निर्माण के अपने दायित्व को छोड़कर घर नहीं गए थे? अनेक अवसरों पर राहुल गांधी एवं अखिलेश यादव कठिन सवाल पूछने पर पत्रकारों से उनकी जाति पूछते रहे हैं। क्या यह माना जाए कि ऐसा करके वे पत्रकारों का अपमान कर रहे होते हैं? याद हो कि राहुल गांधी और कांग्रेस की ओर से पिछड़ा वर्ग के सामान्य परिवार से आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जाति को लेकर भ्रम और अफवाह फैलाने के लिए अभियान चलाया गया है। प्रेसवार्ता आयोजित करके प्रधानमंत्री की जाति का विश्लेषण किया गया है कि वे ओबीसी हैं या नहीं? यह तो वही बात हुई कि हम किसी से भी कुछ भी पूछ सकते हैं लेकिन कोई हमसे कुछ नहीं पूछ सकता? जब आप सबकी जाति पर बात करते हैं, तब कोई आपकी जाति क्यों नहीं पूछेगा? यदि राहुल गांधी, अखिलेश यादव और उनके राजनीतिक दलों को जाति पूछने पर इतना अधिक बुरा लग रहा है तब सबसे पहले उन्हें दूसरों की जाति पूछना बंद करना चाहिए। महात्मा गांधी ने कहा भी है कि हमें दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो हम दूसरों से अपने लिए अपेक्षित करते हैं। हालांकि, मामला केवल जाति पूछने का नहीं है। दरअसल, भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर विपक्ष द्वारा खड़े किए जा रहे ‘फेक नैरेटिव’ का भंडाफोड़ दिया। वित्त मंत्री ने सदन में यह तथ्य सबके सामने रख दिया कि नेहरू परिवार से जुड़े संस्थानों में एक भी अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति पदाधिकारी नहीं है। जो सब जगह इन वर्गों के प्रतिनिधित्व एवं हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं, उनके स्वयं के संस्थानों की क्या स्थिति है, यह सामने आने से राहुल गांधी का असहज होना स्वाभाविक है। याद रखें कि लोकसभा चुनाव के समय भी टिकट वितरण में ‘जिसकी जितनी आबादी-उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के अपने ही नारे का पालन कांग्रेस नहीं कर पायी थी। इसी तरह, 2011 की जनगणना में तत्कालीन यूपीए सरकार ने आर्थिक, सामाजिक के साथ जाति का कॉलम भी भरवाया था, मगर जनगणना की रिपोर्ट में यह ओबीसी और अन्य जातियों का आंकड़ा गायब हो गया। हमेशा की तरह सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के नंबर आए। सवाल यह है कि उस दौर में कांग्रेस की सरकार ने यह आंकड़ा देश के सामने क्यों नहीं रखा? तब केंद्र सरकार ने खुद माना था कि आंकड़े में गड़बड़ी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की ओर से तय की गई ओबीसी जातियों के कारण यह गलफत हुई थी। फिर कर्नाटक में भी कांग्रेस ने जातीय सर्वेक्षण कराया, वहां की रिपोर्ट भी सरकार के फाइलों में अटक गई। दूसरी बार सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस अपने पुराने रेकॉर्ड को जारी नहीं कर रही है। माना जा रहा है कि लिंगायत और वोक्कालिगा जाति के आंकड़े विवाद पैदा कर सकता है। यानी कांग्रेस और राहुल गांधी जिस जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठा रहे हैं, उसको अपनी ही सरकारों से लागू नहीं करवा पा रहे हैं। बहरहाल, कहना होगा कि जाति का यह मुद्दा आनेवाले समय में और जोर पकड़ेगा क्योंकि हिन्दुत्व को कमजोर करने के लिए विपक्ष जातिगत राजनीति पर ही जोर दे रहा है।

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