राजनीतिक कड़वाहट कितना भयंकर रूप धारण कर सकती है, उसका नवीनतम उदाहरण है अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमला। अमेरिका में कम्युनिस्ट धड़े ने डॉनल्ड ट्रंप को लेकर इतना अधिक नकारात्मक वातावरण बना दिया है कि बात राजनीतिक सहमति-असहमति से कहीं अधिक आगे बढ़कर नफरत की हद तक बढ़ गई है। उसी का परिणाम है कि राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान एक व्यक्ति ने उन पर राइफल से गोली चला दी। ईश्वर की कृपा रही कि डॉनल्ड ट्रंप की जान बच गई। अमेरिका में हुए इस हमले के बाद से भारत में भी एक बहस खड़ी हो गई है। दरअसल, पिछले 10 वर्ष में कांग्रेस और उसकी पीठ पर सवाल कम्युनिस्टों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा के प्रति हद दर्जे का नकारात्मक विमर्श खड़ा करने का काम किया है। जेएनयू, जाधवपुर एवं हैदराबाद विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन, शाहीनबाग के प्रदर्शन, दिल्ली दंगे, तथाकथित किसान आंदोलन जैसे कई प्रसंगों में नकारात्मक विमर्श के कारण उत्पन्न नफरत खुलकर दिखायी दी है। जहाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय विचार के संगठनों की कब्र खोदने से लेकर भारत के टुकड़े-टुकड़े जैसे अतिवादी एवं हिंसक विचार अभिव्यक्त हुए। सार्वजनिक सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी की बोटी-बोटी काटने के आह्वान किए गए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसा भाषण करनेवालों को कांग्रेस ने अपना नेता बनाया और उन्हें चुनाव में टिकट दिया। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने भी भारत के प्रधानमंत्री मोदी को लेकर अत्यधिक अतिवादी बयान दिए हैं। यहाँ तक कहा गया कि ‘युवा प्रधानमंत्री मोदी को डंडे से मारेंगे’। इसी नफरती वातावरण के प्रभाव में आकर जब एक व्यक्ति ने काशी में प्रधानमंत्री मोदी की ओर चप्पल उछाली तब भी कांग्रेस के नेताओं की ओर से उस घटना पर प्रसन्नता जाहिर की गई। अपने प्रतिद्वंद्वी राजनेता एवं विचार के प्रति यदि इस प्रकार की घृणा, नफरत और द्वेष का वातावरण बनाया जाएगा, तब उसका प्रभाव लोगों पर भी पड़ता है। संपूर्ण देश में कांग्रेस का एक बड़ा जनाधार है। पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या है। जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व प्रतिद्वंद्वी नेता एवं पार्टी के विरुद्ध असहिष्णुता के विचार को बढ़ावा देता है, तब समर्पित कार्यकर्ता भी उसी लाइन पर चलता है। कहना होगा कि कार्यकर्ता और अधिक गहरायी से उस विचार का अनुसरण करता है। राजनीतक नफरत का परिणाम अमेरिका ने कई बार भोगा है। अमेरिका में चार राष्ट्रपति और एक राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी हमलों में जान गंवा चुके हैं। पिछले चार-पांच दशकों की बात करें तो रोनाल्ड रीगन, बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू बुश जैसे चर्चित राष्ट्रपति हमलों का निशाना बन चुके हैं। भारत ने भी अपने प्रधानमंत्रियों को खोया है। हालांकि उसका कारण राजनीतिक कड़वाहट कम अपितु अन्य मुद्दे अधिक रहे हैं। भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को हमलों में खोया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु का प्रमुख कारण भी राजनीतिक एवं वैचारिक नफरत को ही माना जाता है। बहरहाल, अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप पर हुए हमले और वहाँ बने नकारात्मक राजनीतिक वातावरण से भारत को सबक लेना चाहिए। राजनीतिक कड़वाहट को कम करने के लिए भारत के सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। हमें अपने लोकतंत्र को ‘बुलेट तंत्र’ में नहीं अपितु ‘बैलेट तंत्र’ के रूप में ही विकसित करना है।
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