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भयावह हादसे पर ओछी राजनीति

कुछ मामले और घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन पर राजनीति होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मतिभ्रम का शिकार हो चुका विपक्ष यह बात समझने को तैयार नहीं है। ओडिशा के बालेश्वर जिले में हुए भयावह रेल हादसे में शोक संवेदनाएं व्यक्त करने की आड़ में कुछ नेता एवं उनके समर्थक सस्ती राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उनकी ही विकृत मानसिकता सामने आ रही है। इस रेल हादसे में लगभग तीन सौ यात्रियों की मौत हुई है और अनेक लोग घायल हैं। यह राष्ट्रीय शोक की घड़ी है। यह दिल दहलाने वाला हादसा है। एक झटके में सैकड़ों परिवार दु:ख के सागर में डूब गए। कोई भी संवेदना और मुआवजा उनके दु:ख को कम नहीं कर सकता। जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, वे जीवन भर इस हादसे को भूल नहीं पाएंगे। ईश्वर किसी को भी ऐसा दिन न दिखाए, जैसे दुर्घटनाग्रस्त कोरोमंडल एक्सप्रेस और यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस में जान गंवाने वाले यात्रियों के स्वजनों को देखना पड़ रहा है। इस दुर्घटना की भयावहता का पता इससे चलता है कि उसने देश ही नहीं, दुनिया का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोक संवेदनाओं का तांता लगा है। लोगों के टूटे हुए आत्मविश्वास को जगाने और शोक संतृप्त परिजनों को संभालने के लिए शासन अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है। रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव सूचना मिलते ही दुर्घाटनास्थल पर पहुंच गए। यह समझने की बात है कि रेलमंत्री सुबह से लेकर देर रात तक घटनास्थल पर बने रहे और अपनी निगरानी में राहत कार्यों का संचालन कराया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी घटनास्थल पर पहुँचे और वहाँ का स्थिति देखकर अत्यंत भावुक भी हुए। राष्ट्रीय विचार के जिन संगठनों को कांग्रेस, वामपंथी दल और तथाकथित सेकुलर बिरादरी बुरा-भला बोलती रहती है, वे ही संगठन हमेशा की तरह घटनास्थल पर लोगों की सहायता करते दिखे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर बजरंग दल तक के कार्यकर्ता तत्परता से राहत कार्यों में सहयोग करने के साथ ही घायलों को अस्पताल पहुँचाने, उनके लिए खून की व्यवस्था करने एवं अन्य सहायता जुटाने में सक्रिय दिखे। मृतकों एवं घायलों के परिजनों का ध्यान भी उन्होंने रखने का यथासंभव प्रयास किया है। परंतु दु:ख की बात है कि विपक्षी दल एवं उनके सहयोगी बुद्धिजीवी अपने वातानुकूलित कक्षों में बैठकर सोशल मीडिया पर सस्ती राजनीति कर रहे हैं, जिसकी इस समय कतई आवश्यकता नहीं है। नि:संदेह यह प्रश्न जरूरी है कि आज के समय में इस प्रकार के रेल हादसे कैसे हो सकते हैं? इस भयानक दुर्घटना ने सुरक्षित रेल संचालन के सवाल को फिर से सतह पर ला दिया है। फिलहाल दुर्घटना के कारणों की तह तक नहीं पहुंचा जा सका है, लेकिन यह सहज ही समझा जा सकता है कि या तो यह किसी तकनीकी खामी का भयावह नतीजा है या फिर मानवीय भूल का। यह ध्यान रहे कि मानवीय भूल प्रायः लापरवाही का परिणाम होती है। जो भी हो, यह शुभ संकेत नहीं है। आवश्यक है कि इस पूरे हादसे की गंभीरता से जाँच हो, ताकि फिर से ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो। जो राजनीतिक दल, नेता एवं उनके पिछलग्गू बुद्धिजीवी शोक की इस घड़ी में संवेदनाएं व्यक्त करने की आड़ में अपनी ओछी मानसिकता को प्रकट कर रहे हैं, उन्हें समझ लेना चाहिए कि उनके चेहरे बहुत ही विद्रूप दिखायी पड़ रहे हैं।

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